अभी सभी से न्यारा बनना है। अपनी देह से ही जब न्यारे बनना है, तो सभी बातों में भी न्यारे हो जायेंगे। अब पुरुषार्थ कर रहे हो न्यारे बनने का। न्यारे बनने से फिर स्वत: ही सभी के प्यारे बन जाते हो। प्यारे बनने का पुरुषार्थ नहीं होता है, पुरुषार्थ न्यारे बनने का होता है। अगर सबका प्यारा बनना है तो पुरुषार्थ क्या करना है? सर्व से न्यारे बनने का। अपनी देह से न्यारे तो बनते ही हो लेकिन आत्मा में जो पुराने संस्कार हैं उन्हों से भी न्यारे बनो। प्यारे बनने के पुरुषार्थ से प्यारे बनेंगे तो रिज़ल्ट क्या होगी? और ही प्यारे बनने की बजाय बापदादा के दिल रूपी तख्त से दूर हो जायेंगे। इसलिए यह पुरुषार्थ नहीं करना है। कोई भी न्यारी चीज़ प्यारी ज़रूर होती है। इस संगठन में अगर कोई न्यारी चीज़ दिखाई दे तो सभी का लगाव और सभी का प्यार उस तरफ चला जायेेगा। तो आप भी न्यारे बनो। सहज पुरुषार्थ है ना! न्यारे नहीं बन पाते हैं, इसका कारण क्या है? आजकल का लगाव सारी दुनिया में किस कारण से होता है? (अट्रेक्शन पर) अट्रेक्शन भी स्वार्थ से है। इस समय का लगाव स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है। तो स्वार्थ के कारण लगाव और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते। तो उसके लिए क्या करना पड़े? स्वार्थ का अर्थ क्या है? स्वार्थ अर्थात् स्व के रथ को स्वाहा करो। यह जो रथ अर्थात् देह-अभिमान, देह की स्मृति, देह का लगाव लगा हुआ है। इस स्वार्थ को कैसे खत्म करेंगे? उसका सहज पुरुषार्थ, क्रस्वार्थञ्ज शब्द के अर्थ को समझो। स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे। सिर्फ एक अर्थ को जानना है, जानकर अर्थ-स्वरूप बनना है। तो एक ही शब्द का अर्थ जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे।