अमृतवेले मंथन ऐसे करो जो मक्खन भी मिले और छाछ भी

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बाबा कहता है भारत को स्वर्ग बनाता हूँ और विश्व की सब आत्माओं से चुन करके उनको अपना साथी बनाता हूँ ताकि सारी विश्व स्वर्ग बन जाये। सिर्फ भारत थोड़े ही बनेगा, आधा कल्प नर्क कैसे बना है, वह तो जानते हैं। पाँच विकारों ने मायावी दुनिया में फंसा करके मजबूर बना दिया, मजदूर बिचारा मजबूर होकर काम करता है। पर अभी बाबा याद दिलाता है कि तुम मास्टर हो, मालिक हो ईश्वर को देख खुश हो जाओ, एक-एक प्रभु का प्यारा है सबसे न्यारा है तो एक जैसे नहीं हो सकते हैं, यह भेंट करना भूल है परन्तु हर एक न्यारा और बाबा का प्यारा है। पार्ट भी जो कल था वो आज नहीं है, न्यारा है। ड्रामा है ना!
चिंतन में ड्रामा और बाबा की नॉलेज ने घर कर लिया है इसलिए मंथन भी वही चलता है। बाबा कैसे इस तन में आता है, क्या करता है? मैंने तो देखा है, आप भी ऐसे अच्छी तरह से देखो, समझो, अनुभव करो तो कभी देह अभिमान का भूत आता नहीं है, सबको अच्छा लगता है। हमको तो गले लगाके अपना बनाया है। ऐसे प्यारे बाबा को कितना प्यार करना चाहिए। तो हमारी नज़र ऐसी हो जो मेरी नज़रों में होगा वही औरों को दिखाई पड़ता है। तो कर्म बड़े बलवान हैं, बाबा सर्वशक्तिवान है, याद रखो। अमृतवेले से मंथन ऐसे करो जो मक्खन भी मिले छाछ भी मिले। अगर मंथन करना नहीं आता है तो न रहता है मक्खन, न रहता है छाछ। ऐसा मंथन करने वाले सदा शीतल रह करके सर्वशक्तिवान से शक्ति लेकर बाप समान बनने की धुन में रहते हैं।
ज्ञान मार्ग में न कोई पॉजिशन चाहिए, न पैसा चाहिए, इससे जो फ्री रहते हैं उनका दिमाग ठण्डा रहता है, स्वभाव सरल रहता है, सहजयोगी हैं। न अधीन हैं, न किसी को अधीन बनाके रखा है। मैं मर जाऊं तो यह कहाँ से खायेगा? बाबा ने प्रैक्टिकल अपना मिसाल दिखाया, अव्यक्त हो करके भी ऐसी हमारी सम्भाल कर रहा है, वन्डरफुल है। किसी को यह फीलिंग नहीं है हमने साकार को नहीं देखा, ऐसी पालना अव्यक्त हो करके कर रहा है। फिर कहता है मैं नहीं करता हूँ, कराने में होशियार है। भगवान किसी का भाग्य बनाने में बहुत होशियार है। एक त्याग से भाग्य बनाया, दूसरा कर्म से भाग्य बन गया।

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