एक मिनट साइलेंस में बैठें और अपने मन से पूछें आज से कौन-सी बात करनी है। और मन तुरंत रिप्लाई करेगा कि आज से ये बात करनी है। गुण देखना हमें पता है, निंदा नहीं करना, खुश रहना, दु:खी नहीं होना, नाराज़ नहीं होना, सबको एक्सेप्ट करना हमें पता है। इम्प्लीमेंट भी करना है। इतनी सारी बातें जो निकली हैं ना इनमें से सिर्फ एक सिलेक्ट कर लीजिए, एक करते हैं सिर्फ। ये जो सारी ज्ञान की बातें होती हैं ना ये सारी एक-दूसरे के साथ इंटरकनेक्ट होती हैं। अगर आप सिर्फ किसी के गुण देखते हैं मतलब उनके अन्दर की कमज़ोरी आपको दिखाई ही नहीं देती। आपका ध्यान ही नहीं जाता उस तरफ तो एक बात को आपको पक्का करने से क्या होगा? आपका मन हमेशा साफ रहेगा। मैल आयेगी ही नहीं, दाग पड़ेगा ही नहीं क्योंकि अवगुण देखा ही नहीं ना, कमज़ोरी देखी ही नहीं। तो मन में आयेगी ही नहीं, और जब मन में आयेगी ही नहीं तो ओवर थिंकिंग होगी ही नहीं। ओवर थिंकिंग होता ही तब है जब निगेटिव बातें मन पर चलती हैं। जब किसी के अन्दर का अवगुण दिखेगा ही नहीं तो जजमेंटल किस बात पर होंगे? क्रिटिकल उनके बारे में किस बात पर होंगे। अपने आप एक्सेप्टेंस (स्वीकृति) आ गई। क्योंकि हमने उसके अन्दर सिर्फ गुण ही देखा। गुस्सा किस पर करेंगे? जब हमें उनके अन्दर कोई गलत बात दिखाई ही नहीं दी। तो ओटोमेटिकली हमारे से दुआएं जा रही हैं।
जब आप इनमें से किसी भी एक बात को पकड़ लेंगे तो उसकी पूरी चेन बनती जायेगी सारी बातों के साथ। जब नाराज़ होंगे ही नहीं, बुरा कुछ लगेगा ही नहीं तो माफ करेंगे किस बात के लिए! और जब माफ करना ही नहीं होगा तो भूलने के लिए कुछ रहेगा ही नहीं। ये सारी चीज़ें हो जायेंगी एक छोटी-सी चीज़ से। सामने वाले के अन्दर सिर्फ विशेषता देखनी है, सिर्फ गुण देखने हैं। ज्ञान इतना ब्यूटीफुल है, इतना पॉवरफुल है ऐसे लिस्ट देखें तो लगेगा कि ओहो बाबा! मुझे इतनी सारी चीज़ें करनी हैं क्या? मेरे अन्दर इतनी सारी चीज़ों को चेंज करना है! इनको ऐसे देखकर ऐसे नहीं सोचना कि इतनी सारी चीज़ें करनी हैं। इतनी सारी चीज़ें नहीं करनी हैं। इनमें से एक चीज़ करनी है। यद्यपि अगर हम ये सिम्पल चीज़ लें कि अवगुण नहीं देखना, गुण देखना है।
अब सारा दिन सामने वाले के अन्दर जो दिखाई देता है ना कि कौन-सी कमज़ोरी है, कौन-सी गलती है और ये सिर्फ अपने काम के क्षेत्र में नहीं घर में भी तो दिखाई देता है, बच्चों के अन्दर भी तो दिखाई देता है। ये बात ठीक नहीं है, ये बात ठीक नहीं है। अब क्यों नहीं अवगुण देखना, क्यों गुण देखना है। गुण ग्रहण करना। और क्यों कमज़ोरी नहीं देखना? कैसे नहीं देखेंगे, सामने दिख रही है, दिखाई दे रही है। तो नहीं देखने का क्या मतलब है! दो चीज़ें कौन-सी हैं जो देखती हैं एक है ये आँखें, इन आँखों से सबकुछ दिखाई देगा। सिर्फ आपके आस-पास के लोगों की गलती नहीं दिखाई देगी सारी सृष्टि पर जो गलती हो रही है वो भी तो हम इन आँखों से देखते हैं ना! फोन उठाओ लोगों की गलतियां दिखाई देती हैं, टीवी ऑन करो तो लोगों की गलतियां दिखाई देती हैं। जो नहीं भी देखना हो वो यहाँ से, वहाँ से कोई फॉरवर्ड करके हमें सबकी गलतियां दिखाता है। सिर्फ अपने घर में, अपने देश में नहीं दूसरे देशों में कौन-कौन क्या-क्या गलतियां कर रहा है वो भी सारा दिन दिखाई दे रही हैं। वो सब दिखाई देंगी हमें, आँख बंद नहीं हो सकती, कान बंद नहीं हो सकते।
लोगों के शब्द सुनाई देंगे, लोगों की गलतियां दिखाई देंगी। लोगों की कमज़ोरियां-अवगुण दिखाई देंगे। कौन-सी आँख को दिखाई देंगे, इन स्थूल आँख को दिखाई देंगे। इन स्थूल कानों को सुनाई देंगे। लेकिन अभी हमने क्या सीखा कि अवगुण को नहीं देखना, गुण ग्रहण करना। इन स्थूल आँखों से दिखाई देगा, लेकिन यहाँ मन में वो ग्रहण नहीं होना चाहिए। मन-चित्त पर अगर किसी का अवगुण आया आँखों में दिखाई देगा, और मुख से राय भी देनी है। आप ऐसा नहीं आप ऐसा कर लीजिए। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो ये एक्शन लिया जायेगा। ये तो सारा दिन करना है। अगर हम किसी रोल में हैं, हम उसके लिए जि़म्मेवार हैं, और कुछ तो नहीं आप अपने बच्चे की आप ब्रिंगिग के लिए जिम्मेवार हैं, अगर आपने उनको बोला ही नहीं कि आपके अन्दर जो गलती हैं आपको उनको कैसे चेंज करना है। तब तो पैरेंटिंग में प्रॉब्लम आ जायेगी। लेकिन फिर भी क्यों कहा कि अवगुण नहीं देखना, उसको मन में नहीं रखना है…
अब इसकी प्रैक्टिस करते हैं कोई एक पर्सन को चूज़ कर लीजिए अपनी लाइफ में और उसकी एक गलती जो आपको पता है उसके अन्दर वो गलती है, वो कमज़ोरी है, वो अवगुण है। वन पर्सन, वन हैबिट। इतना ही चूज़ करना है अभी। एक व्यक्ति उसकी एक आदत। ज्य़ादा टाइम नहीं लगता दूसरों की सिलेक्ट करने में। अपनी चूज़ करने में फिर भी थोड़ा टाइम लग जाये, दूसरों की तो फ्रैश है ना हमारे माइंड में। क्योंकि रोज़ दिखाई देती है पर जल्दी याद आ जाती है। बहुतों की नहीं देखनी एक की, एक आदत सिलेक्ट हो गई। अब सुपोज़ किसी के अन्दर सिम्पल आदत है कि वो टाइम पर अपने कामपर नहीं पहुंचते और किसी के अन्दर आदत है ऐसे ही बातें छुपा देते हैं उसको गोल गोल घुमाकर, किसी बात को मोड़ देते हैं। ऑनेस्टी नहीं है, ट्रांसपेरेन्सी नहीं है, और कोई कोई तो बहुत अच्छे से बड़े-बड़े झूठ भी बोलते हैं। कोई सही तरीके से नहीं करते हैं। कोई काम चोरी करते हैं बोलते हैं हाँ कर देंगे, समय पर पूरा नहीं करते हैं। ऐसे तो लम्बी लिस्ट है बहुत सारी चीज़ों की। हमें इन लोगों के साथ काम करना है, हमें इन लोगों से काम करवाना भी है। लेकिन हमें अवगुण नहीं रखना है, नहीं देखना है। क्यों नहीं देखना है पहले तो ये कि सुपोज़ आपके ईर्द-गिर्द सिर्फ पांच लोग हैं सारा दिन में, सिर्फ पांच ही लोग और पांच ही लोग में एक कमज़ोरी भी है। ऐसे तो हमारे अन्दर ज्य़ादा है लेकिन उन पांच लोगों में एक कमज़ोरी है। और मैंने अगर पांच लोगों की एक एक कमज़ोरी मन में रखी, मन में रखने का मतलब क्या है, यहाँ सें मुझे दिखाई दे रहा है कि वो लेट आते हैं। यहाँ से मुझे सुनाई दे रहा है कि वो झूठ बोल रहे हैं। आँखों और कानों तक देखना है मन पर रखने का क्या मतलब है? उसके बारे में चिंतन करना बताओ इसको तो कितना समझाऊं, ये तो फिर झ्ूाठबोलता है। ये सच बोलेगा कैसे, इसको कौन सुधारेगा , इस पर विश्वास किया कैसे जाये। हर बार सॉरी बोलता है लेकिन फिर भी। ये हमारी अपनी चरनिंग शुरु हो जाती है। मतलब हम उसके अवगुण का मंथन करते हैं। उसका झूठ वहाँ है वो दिखाई देगा लेकिन उसका मंथन यहाँ चलना शुरु होता है। हम अपने मन के अन्दर उसके अवगुण के बारे में बात करना शुरु करते हैं। तो अब वो जो कमज़ोरी है वो आँखों में नहीं, कानों में नहीं वो यहाँ बैठना शुरु हो गई है। आँखों और कानों से देखेंगे ना कोई प्रॉब्लम नहीं आने वाली। वो तो दिखेगा ही लेकिन प्रॉब्लम कब आती है जब यहाँ(मन) पर आती है। हमने उसका चरनिंग करना शुरु किया तो यहाँ पर दाग लगता है। अब एक दिन में मुझे पांच लोग मिले और पांच लोग में एक कमज़ोरी देखी तो मैंने पाँच कमज़ोरियों का यहाँ चिंतन किया। अगर मैंने पांच कमज़ोरियों का एक दिन में चिंतन कर लिया तो मैंने आत्मा की शक्ति को घटा दिया। क्योंकि मेरे मन में निगेटिव चरनिंग चल रही है। अगर आप किसी की विशेषता का चिंतन करें तो आपके कितने थॉट चलते हैं ये भी चेक करना है। अगर आप किसी की अच्छाई का चिंतन करें ये बहुत अच्छे से काम करते हैं। एक लाइन, दूसरी लाइन ज्य़ादा से ज्य़ादा ये हमेशा से ही अच्छे से काम करते हैं। बस उसके बाद माइंड बोलना बंद कर देता है। अगर आप किसी की विशेषता का चिंतन करेंगे तो दो लाइन से ज्य़ादा नहीं निकलके आने वाला है यहाँ फिर उसके बाद फुल स्टॉप हो जायेगा। विच इज़ गुड ज्य़ादा नहीं सोचना लेकिन अगर आप उसकी कमज़ोरी का चिंतन करेंगे फिर आप देखिये कितनी थॉट्स क्रियेट होती है। दो में ही नहीं फुल स्टॉप होता माइंड का तो पाँच, दस, बीस कभी-कभी तो रात को नींद ही नहीं आती उनकी गलतियों का ही चिंतन चल रहा है उसने मुझे ऐसा क्यों बोल दिया, उसने मुझे ऐसा कर दिया। ये है ऑवरथिंकिंग। तो जिसको जिसको भी ऑवर थिंकिंग खत्म करना है तो उसको ये देखना होगा कि ऑवर थिंकिंग होती कब है? होती क्यों है? क्योंकि हम कमज़ोरी का ङ्क्षचतन करते हैं तो माइंड उसमें सिम्पल चीज़ है अगर हमें कोई कहे कि स्प्राउट्स खा लो तो कहेंगे हाँ थोड़ा सा देना, थोड़ा सा, कहेंगे कि हेल्दी है अच्छे से खा लो तो कहेेंगे कि नहीं मुझे बस थोड़ा सा देना। लेकिन फिर सामने कोई चिप्स का पैकेट लाकर रख दे, कोई चाट पापड़ी लाकर रख दे उसको नहीं बोलते कि थोड़ा सा देना। पूरी प्लेट खाने के बाद बोलते हैं कि और आप खायेंगे? नहीं वैसे तो पेट भर गया है लेकिन टेस्टी बहुत है। टेस्ट के लिए हम थोड़ा सा और खा सकते हैं। इट इज़ सिम्पल। हेल्दी चीज़ कम खाते हैं, और अनहेल्दी चीज़ टेस्ट की वजह से ज्य़ादा खाते हैं। विशेषता मन सोचेगा, एक दो थॉट सोचेगा बोलेगा कि हाँ है विशेषता उसके अन्दर। कमज़ोरी सोचेगा तोबोलता ही जायेगा अन्दर बोलता ही जायेगा इट्स ऑवर थिंकिंग। दिस इज़ ऑवर थिंकिंग। ऑवर थिंकिंग कभी भी अच्छी बात की हो ही नहीं सकती। ऑवर थिंकिंग मिन्स निगेटिव थिंकिंग। अब इतना सारा सोच लिया। अब यहाँ क्रियेट होकर आ गया। अब कोई न कोई मिलेगा। किसी ने सिर्फ उसका नाम ही ले लिया ना तो हमारे यहाँ मन में जो सारा भरा हुआ था ना तो वो सारा हमारे मुख से निकल कर आता है। तो ऑवर थिंकिंग मल्टीप्लाय हो जायेगी। कि वो सिर्फ अब यहाँ आँखों में ही नहीं रहेगी वो हमारे शब्दों में भी आयेगी। हम बोलते-बोलते, हम अपनी भाव भावना भी उसमें थोड़ा सा एड कर देंगे। ये है ही ऐसा कितना भी समझाओ ये नहीं सुधरने वाला। पूरा डिपार्टमेंट ही इसकी वजह से खराब हुआ पड़ा है। ये सब अपने आप होता है हम कोई इंटेंशली नहीं करते। किसी को कोई बात सुनायेंगे सुपोज़ वो ही ज्ञान की प्वाइंट डॉ. मोहित ने सुनाई, वो ही ज्ञान की प्वाइंट अभी मैं आपसे शेयर कर रही हूँ। लेकिन बताने के तरीके में थोड़ा डिफ्रेंस ही आयेगा। क्यों डिफ्रेंस आयेगा? सुनाने वाले की भाव और भावना इसी तरह कोई भी बात आप सुनेंगे किसी से भी सुनेंगे या किसी को भी सुनायेंगे भाव और भावना एड होती जाती है। वो बात एड इट इज़ नहीं जाती है। वो भाव और भावना के साथ एड होकर जाती है। वो हम दूसरे के माइंड पर भी हम वो गंद रख देते हैं।और जैसे ही हमने मन की थॉट को मुख पर लाये तो यहाँ मन पर रिकॉर्डिंग और हो गई।