असुर संहारिनी, भक्तों की रक्षा करने वाली- शिव शक्तियां

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हम सबका उद्धार करने वाली उद्धारमूर्त शक्तियां हैं तो हमारे में सर्व के प्रति स्नेह, सहयोग की भावना रहती है या किसी के प्रति घृणा की, ईर्ष्या की, नफरत की भावना भी रहती है? हमें बाबा से सर्व शक्ति लेकर सबको जीयदान देना है, प्राणदान देना है।

सर्वशक्तिवान बाप ने गुप्त रूप में हम शक्तियों को शक्ति दी है। असुर संहारिनी, भक्तों की रक्षा करने वाली हम सब शिव शक्तियां हैं। शिव शक्ति अर्थात् शिव परमात्मा से प्राप्त हुई शक्ति जिससे हम असुर संहारिनी बने हैं। स्वयं से अथवा सारे विश्व से आसुरी वृत्तियों को समाप्त करने का काम हमारा है। शक्तियों का ही गायन है असुर संहारिनी, दूसरे तरफ शीतला देवी का भी गायन है। तो सभी को भक्तों का आहवान सुनाई दे रहा है? भक्त हमें पुकार रहे हैं, चिल्ला रहे हैं ओ माँ, ओ माँ… इन शक्तियों को ब्रह्मचारिनी कन्या ही दिखलाया है। आज जब मैं आपके सामने आई तो मैं भक्तों की आवाज़ सुनकर आई थी। प्यारे बाबा के गुण गा रही थी- ओ सर्वशक्तिवान बाबा, आपने हमें कितना गुप्त रूप में रखा है, जिनका आज भक्त गायन कर रहे हैं। स्वयं से पूछना है- क्या मैं वही पतित संस्कारों को संहार करने वाली शक्ति हूँ? शक्तियों को सहस्र भुजाधारी दिखलाते हैं, तो क्या हम ऐसी शक्तियां हैं?
सवेरे योग में यही महसूस हो रहा था कि हमारे हाथ में ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र हैं, योग का स्वदर्शन चक्र है। दैवी गुण रूपी कमल फूल है, भिन्न-भिन्न भुजा में भिन्न-भिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं। ये हमारा यादगार है कि हम सदा शस्त्रधारी भुजायें हैं। कोई भुजा हिलती-डुलती तो नहीं है? बाबा ने हमें अष्ट शक्तियां दी हैं। क्या ऐसे कहेंगे कि 6 शक्तियां तो हैं, दो नहीं हैं? हम असुर संहारिनी हैं तो स्वयं में देखो कि आसक्ति रूपी असुर तो नहीं हैं? मान-शान रूपी असुर तो नहीं हैं? मोह रूपी असुर तो नहीं है? शक्तियां कहें मेरे में छोटा-मोटा असुर है तो क्या उन्हें असुर संहारिनी कहेंगे? शक्तियां जितनी संहारी हैं उतनी कल्याणी हैं। निर्भय, निर्वैर हैं। हमारे में भय है? हमारा किसी से वैर है? शक्तियों की महिमा में ऐसा नहीं कहा जाता है कि भक्तों की वैरी हैं, नहीं। असुरों की संहारी भक्तों की रखवाली करने वाली हैं। हम सबका उद्धार करने वाली उद्धारमूर्त शक्तियां हैं तो हमारे में सर्व के प्रति स्नेह, सहयोग की भावना रहती है या किसी के प्रति घृणा की, ईष्र्या की, नफरत की भावना भी रहती है? हमें बाबा से सर्व शक्ति लेकर सबको जीयदान देना है, प्राणदान देना है। बाबा ने हमें कितना महान बनाया है, कितनी हमारी भक्त महिमा करते, कितना हमारा मान-शान-गायन आधाकल्प से भक्त गाते हैं। जब ऐसी ऊंची सीट पर बैठ अपना यादगार देखते तो बाबा के गुण गाते। जग मेरे मान-शान का गायन करता, मेरे बोल के साथ मेरा गायन है। हमें कहा ही गया है जगत अम्बा, दुर्गा काली, शक्ति। मैं जगत की माँ हूँ, सब मेरे लिए छोटे बच्चे हैं क्योंकि बाबा कहते कि बिचारों को यही ज्ञान नहीं है कि इनका बाप कौन है। बिचारे उनको कहा जाता है, जिनको ज्ञान नहीं। बाबा ने हमें त्रिकालदर्शी, महान से महान बनाया है, कितनी ऊंची सीट पर बाबा ने बिठाया है।
भाषण करने से पहले देखो मेरी स्टेज ठीक है, जो भक्त मेरा साक्षात्कार करें! जब तक हम स्वयं की सीट पर या स्टेज पर नहीं बैठे हैं तब तक हम दूसरों की क्या सेवा करेंगे! अगर सदा मेरी वह स्थिति नहीं तो भक्त मेरा क्या साक्षात्कार करेंगे? सबको सर्विस का बहुत शौक रहता है, जोश रहता है। सेवा के साथ-साथ स्वयं के स्थिति की सीट भी ठीक है? जैसे लॉ और लव का बैलेन्स, जीवन में बराबर रखते हैं, वैसे सेवा के साथ-साथ स्वयं की स्टेज है? प्लैन बनायेंगे तन-मन-धन से सर्विस में लग जायेंगे, परन्तु कई बार अपनी स्टेज खो बैठेंगे। उसको भाषण के लिए कहा मुझे नहीं कहा, इसे सब चान्स देते हैं, मुझे नहीं। बड़े का मान रखते हैं, छोटों का नहीं। पता नहीं कितने सवाल सर्विस की स्टेज के साथ उठाते हैं। गये स्टेज तैयार करने और अपनी स्टेज खराब कर दी। उस समय अपनी स्टेज को तैयार करने का नहीं रहता। अरे तुम अपना रिकार्ड क्यों खराब करते हो? सदा ये सोचो हम गॉडली स्टूडेंट हैं। सब सब्जेक्ट में हमारा बैलेन्स बराबर हो।

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