एक बार हमारी आदरणीय गुल्ज़ार दादी से ऐसे ही चिटचैट हो रही थी। दादी से हमने कहा कि दादी बाबा तो कहते हैं कि समय आपके लिए रूका हुआ है क्योंकि हम बच्चे तैयार नहीं हैं इसलिए समय विनाश ज्वाला प्रज्वलित नहीं हो रही है, समय रूका हुआ है और दूसरी ओर हम ब्राह्मणों को देखते हैं, इस ब्राह्मण संसार को देखते हैं वहाँ ऐसा नज़र आता है कि ब्राह्मणों की चाल जिस तरह से है सतोप्रधानता की तरफ जाने की बजाय कभी-कभी लगता है कि दुनिया के आकर्षणों में जा रहा है तो क्या कभी विनाश होगा ही नहीं! अगर समय हमारे लिए रूका हुआ है लेकिन हम तैयार होने के बजाय हम दूसरी ओर जा रहे हैं तो क्या विनाश होगा ही नहीं! क्योंकि मैंने दादी से कहा कि जब बाबा साकार में थे और आप सभी ने जो तपस्या की है वो सतोप्रधानता तपस्या थी, वो समय को जल्दी ले आती। लेकिन अब वो तपस्या कहाँ है? ब्राह्मणों के जीवन में तपस्या कहाँ है?
तो दादी मुस्कुराकर कहने लगी कि समय तो आयेगा और ब्राह्मण ही लायेंगे। लेकिन किसी भी धर्म को चार अवस्था से गुजरना पड़ता है ब्राह्मण भी धर्म है। ब्राह्मणों का घराना नहीं कहा जाता है। घराना राजाई को कहा जाता है। तो ब्राह्मणों का घराना नहीं है, ब्राह्मणों का कुल है। ब्राह्मण एक धर्म है। तो कोई भी धर्म को चार स्टेजेस से गुजरना पड़ता है। जैसे देवी-देवता धर्म वाली आत्मायें भी चारों अवस्थाओं से गुजरी। इसी तरह ब्राह्मण भी धर्म है। इसीलिए बाबा के समय भी वो सतोप्रधानता थी, फिर धीरे-धीरे सतो आई, फिर रजो और अब तमो और अब और भी कुछ देखना बाकी है दादी ने कहा। अभी तो तमोप्रधानता भी देखेंगे ब्राह्मण धर्म में। जो कभी सोचा नहीं होगा, ऐसा होगा। मैंने कहा फिर दादी, फिर दादी ने कहा कि दो प्रकार के बच्चे हो जायेंगे एक हैं जिसको लगेगा कि यहाँ जो हो रहा है इससे तो दुनिया अच्छी। वो दुनिया में चले जायेंगे, माया उनको खींच लेगी। और दुनिया तो अच्छी ही होगी ना! क्योंकि ये आत्मायें तो पूरे 84जन्म साथ रही हैं। तो जो सबसे ज्य़ादा सतोप्रधान है वो सबसे ज्य़ादा तमोप्रधान भी तो बनेगी कि नहीं बनेगी! दुनिया पीछे से आई तो उनकी तमोप्रधानता भी तो कम है क्योंकि उनकी सतोप्रधानता भी ऐसी नहीं थी। इसलिए दुनिया तो अच्छी ही होगी।
यहाँ जो देखने को मिलेगा वो वहाँ भी नहीं मिलेगा ऐसा भी होगा, ऐसा दादी ने कहा। जब मैंने ये सवाल पूछा था तो दादी ने कहा अभी तो ये कुछ नहीं है। लेकिन आगे चलकर ऐसा-ऐसा दृश्य देखेंगे तो दो प्रकार बच्चे जो हो जायेंगे उसमें से एक होगा जो कहेंगे इससे तो दुनिया अच्छी, वो दुनिया की तरफ वापिस मुड़ जायेंगे। और जो दूसरी प्रकार के बच्चे हैं जो निश्चयबुद्धि हैं, जिन्होंने भगवान को देखकर अपने को बनाया है,उनके अन्दर बेहद का वैराग्य आयेगा। और इतना वैराग्य आयेगा कि उसको लगेगा कि छोड़ो सब बातें अभी। अब तपस्या ही करो। और उस बेहद के वैराग्य से जो तपस्या आरम्भ होगी वो रियल तपस्या होगी। अभी जो योग कर रहे हैं वो तपस्या नहीं है दादी ने कहा। हाँ इतनी देर विकर्म नहीं कर रहे हैं, लेकिन जो विकर्म भस्म होना चाहिए वो वाला योग भी नहीं है। अभी हम जो कर रहे हैं हाँ विकर्म बनता नहीं है लेकिन जो विकर्म दग्ध होना चाहिए वो भी नहीं है। ठीक है समय सफल हो रहा है, बाबा को याद करने बैठे हैं तो बाबा की याद कभी पॉवरफुल होती है, कभी साधारण होती है, कभी नींद भी आ जाती है, झुटका भी आ जाता है। सब होता है इसमें। इसलिए इसको तपस्या शब्द नहीं कहेंगे, तपस्या तो तब होगी जब रियल में बेहद का वैराग्य देखने के बाद ये हो रहा है, ऐसा भी होता है, दादी ने कहा ये सब होगा। लेकिन अन्दर में वही एक वैराग्य क्रियेट करेगा कि बस अभी सब बातें छोड़ो बाबा को याद करो। और उस समय जो एकदम बेहद की वैराग्य वृत्ति से जो याद में बैठेेंगे तो एकटिक हो जायेंगे, एकाग्र हो जायेंगे। और उस स्थिति से समय को ले आयेंगे। वो आत्मायें विनाश ज्वाला को प्रज्वलित करेंगी। अभी जिस तरीके से चल रहे हैं ये कोई विनाश ज्वाला को प्रज्वलित नहीं करती है। इसीलिए ये सब होना है और उसके लिए तैयार, मानसिक तैयारी चाहिए क्योंकि अगर नहीं होगी तो क्या होगा माया खींच कर दुनिया में ले जायेगी। इसीलिए इस तपस्या के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति बहुत ज़रूरी है। अभी से उसका अभ्यास ज़रूर करना है।