चिंता काहे की जब प्रभु अर्पण होए

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ङ्क्षचता एक अग्नि है जो जलाकर भस्म करती है- खुशी को, शांति को, सुखों को, हेल्थ को तब खाना भी अच्छा नहीं लगेगा, लोगों से व्यवहार भी अच्छा नहीं लगेगा। चिंतायें भी भिन्न-भिन्न तरह की हैं।

संकल्प मनुष्य का बहुमूल्य खज़ाना है। एक संकल्प उसे बहुत सुखी कर देता है और कोई एक ही संकल्प उसके दुखों में वृद्धि कर देता है। एक ही संकल्प में मनुष्य खुशी में डांस करने लगता है और एक ही संकल्प से निराशा की चादर ओढ़ा कर सुला देता है। संकल्प का बड़ा महत्त्व है। हम क्या सोचते हैं, क्या नहीं सोचते हैं, हमें क्या सोचना चाहिए, क्या नहीं सोचना चाहिए इसकी अवेयरनेस(जागरूकता) संसार में बहुत थोड़े लोगों को है। अनेक लोग व्यर्थ में बहे चले जा रहे हैं, लेकिन उन्हें इसका कोई आभास नहीं है। इससे उनकी शक्तियां नष्ट होती जा रही हैं। कमज़ोर पड़ रहे हैं। मनुष्य का ब्रेन इस समय बहुत ही कमज़ोर है। और अगर मनुष्य और संकल्प चलाता रहता है तो ये मन और कमज़ोर होता जाता है। सेंसिटिव(संवेदनशील) होता जायेगा, सहनशक्ति नहीं रहेगी, ज्य़ादा सोचने लगेगा। व्यर्थ संकल्पों के भी कई प्रकार हैं- एक विकल्प होते हैं, बुरे संकल्प, विकारों के संकल्प, दूसरे व्यर्थ संकल्प होते हैं बिना मतलब मनुष्य सोचे जा रहा है।
मनुष्य ज़रा अपने से पूछ कर देखे कि क्या सोच रहा है? उसको शायद अपने पर हँसी आयेगी। तीसरे निगेटिव संकल्प होते हैं, चौथे साधारण संकल्प होते हैं, पाँचवें कर्म के संकल्प होते हैं। जो काम हम कर रहे हैं ऐसे श्रेष्ठ संकल्पों की भी कई श्रेणियां हैं। सबसे ऊंच थॉट, सुपर थॉट, महान थॉट और परम संकल्प। हाईअर थिंकिंग, ऊंची थिंकिंग, पॉजि़टिव थिंकिंग, शक्तिशाली थिंकिंग, प्युअर थिंकिंग ये सब थॉट्स के ही प्रकार हैं। जो श्रेष्ठ विचार मनुष्य के मन में आते हैं, स्वमान के विचार, श्रेष्ठ विचार, दूसरों को सुख देने के विचार, दूसरों का कल्याण करने का विचार, शुभ संकल्पों से भरे हुए विचार ये भिन्न-भिन्न तरह के विचार मनुष्य के मन में चलते हैं। आप कभी अपने को सारे दिन में दस बार चेक करें। हर घंटे में एक बार चेक कर लेना। रूक कर देखना कि हम क्या सोच रहे हैं! तो आपको पता चलेगा कि हम वो सोच रहे हैं जिसको सोचने की हमें ज़रूरत ही नहीं है। हम बिना मतलब ही सोचे चले जा रहे हैं। हम बहुत बार कह चुके हैं कि मन की सामान्य स्थिति में मनुष्य के मन में एक मिनट में लगभग पच्चीस संकल्प उठते हैं। जब मनुष्य ज्य़ादा सोचता है तो ये स्पीड बढ़कर तीस, पैंतीस, चालीस पहुंच जाती है। योगी जन, ज्ञानी जन इसको घटा देते हैं। बीस-पंद्रह तक ले आते हैं। और जो महायोगी हैं वो इसे पाँच से कम ले आते हैं एक मिनट में। और फिर कुछ लम्बा समय दो-चार संकल्पों में स्थित होकर बैठ जाते हैं। उससे मन बहुत पॉवरफुल हो जाता है।

तो हम विचार करेंगे कि हम अपने संकल्पों की अनमोल निधि को ऐसे ही तो नहीं गंवा रहे! खज़ाना है ये हमारा। मनुष्य को कोई चिंता लग जाये तो शरीर भी सूखने लगता है। लोग देखते ही कहते कि क्या चिंता लग गई है भई तूझे। चिंता चिता के समान है ये कहावत है। ङ्क्षचता एक अग्नि है जो जलाकर भस्म करती है- खुशी को, शांति को, सुखों को, हेल्थ को तब खाना भी अच्छा नहीं लगेगा, लोगों से व्यवहार भी अच्छा नहीं लगेगा। चिंतायें भी भिन्न-भिन्न तरह की हैं। आपको कोई बीमारी हो गई है, ऐसी बीमारी जो लाइलाज तो नहीं है लेकिन बहुत सीरियस, बहुत पेनफुल(दर्दभरी), जिससे बहुतों की मृत्यु होती है, अब आपको ये बीमारी लग गई, चिंता भी साथ लग गई। मैं ठीक हो पाऊंगा या नहीं। मैं ठीक से जी पाऊंगी या नहीं। मेरे बच्चों का क्या हाल होगा, चिंता लग गई। और इन संकल्पों से जुड़े हुए हज़ारों संकल्प मन में उठने लगे। हमारे पास तो पैसा भी नहीं है। पता नहीं डॉक्टर्स हम लोगों की केयर करेंगे भी या नहीं, दवाईयां ठीक मिलेगी या नहीं, हमारा भाग्य पता नहीं कैसा है, हमें ही बार-बार बीमारियां आती हैं। अनेक व्यर्थ संकल्प इस चिंता के कारण मनुष्य के मन में चलने लगते हैं। अगर हम अपनी खुशी को कायम रखते हैं तो बीमारियां जल्दी ठीक हो जाती हैं। खुश रहने से हमारे जो भिन्न-भिन्न ग्लैंड्स(ग्रंथियां) हैं उनसे जो स्राव होता है वो बहुत अच्छे कैमिकल का होगा जो आपको हेल्दी कर देगा। आपके हार्मोन्स बहुत हेल्दी पैदा होंगे, बहुत कुछ ठीक होने लगेगा। हमें ये ध्यान देना है कि चिंता करने से तो बात बनेगी नहीं,समाधान ढूंढना है। चिंताओं को पैदा करने वाली बातें तो हज़ारों हैं कोई कमी नहीं आजकल, लेकिन हम ईश्वरीय ज्ञान लेकर श्रेष्ठ चिंतन के द्वारा उन चिंताओं से स्वयं को मुक्त कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि चिंताओं से मुक्त होने का इलाज हमारे पास है ही नहीं, है। लेकिन हमें जलना नहीं है, परेशान नहीं होना है। ईश्वरीय ज्ञान इसी चीज़ में हमें बहुत मदद करता है।
ज्ञान की बहुत सुन्दर-सुन्दर बातें हमें निश्चिंत करती हैं। चिंतायें प्रभु अर्पण कर दो, उसके हाथ में दे दो,वो सम्भालेगा। दूसरा ये जो विश्व के ड्रामा का ज्ञान हमको मिला है इसका प्रयोग करके अपने को निश्ंिचत करें। ये बहुत डीप फिलॉसफी (दर्शनशास्त्र) है कि जब आप निश्चिंत होंगे, आप बेफिक्र हो जायेेंगे तब आपसे जो पॉजि़टिव एनर्जी फैलेगी वो बिगड़े हुए कामों को बना देगी। ये बात सदैव याद रखनी है। तो अच्छे स्वमान से, अच्छे चिंतन से स्वयं को इन चिंताओं से, इन परेशानियों से मुक्त रहने का एक सुनहरा संकल्प आप कर लें तो ये जो व्यर्थ का फोर्स चलता है मन में इससे आप मुक्त हो जायेंगे, आपके घरों में खुशहाली आ जायेगी। आपका जीवन भी हेल्दी रहेगा। आप भी बीमारियों से मुक्त रहेंगे और सबकुछ सफल होगा।

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