देह भान को छोडऩा देह छोडऩा नहीं… कर्मेन्द्रियजीत बनना

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अपने आप को दृष्टा होकर देखना है कि देहभान, कर्मेन्द्रियों का रस व प्रकृति, पदार्थ के रस आकर्षित तो नहीं कर रहे! हम ये सब छोड़ चुके हैं ये स्मृति बनी रहे। हमें जहाँ जाना है उसकी स्मृति का रस परमात्मा से प्राप्त कर लेना है। हमें जो करना है क्या हम वही कर रहे हैं, जो हमें करना चाहिए? या अभी भी कर्मेन्द्रियां हमें चला रही हैं!  ये देखकर,चेक कर चेंज करें और अपने को जहाँ जाना है उस तरफ मोड़ते चलें…

हम कहीं फंसे नहीं, कोई हमें खींचे नहीं, रूहानी प्यार से चलना, आत्मिक प्यार, संगमयुग का समय भगवान से प्यार करने का समय है। अभी कोई देहधारियों में बुद्धि नहीं लगानी, बाबा पर पूरा फिदा हो जाना है, पूरा समर्पित हो जाना है, बलिहार जाना है। बाबा कहते हैं ना कि कोई इन्द्रिय रस भी न खींचे, ज्ञान नहीं था तो इन्द्रियों के रस में डूबे रहते थे। बुद्धि ही औरों के तरफ थी। देखो, ज्ञान नहीं था तो क्या सोचते थे, कहा बुद्धि रहती थी। इसके घर में ऐसा, इसके घर में ऐसा, ये ऐसे, ये ऐसे औरों में बुद्धि रहती थी। सारी दुनिया की पंचायत करते रहते थे। पहला पाठ ही बाबा ने ऐसा पढ़ाया जो सबसे निकल स्व में स्थित हो गये। अपने आप को चेक करें, सबसे निकले हैं? एक बाबा में बुद्धि लगी है? स्व में स्थित हुए हैं? बाबा ने कहा है ना कि कई तो पढ़कर पढ़ाने लग जाते हैं, और कई तो पहली पोथी में ही मुंझे हुए हैं। हमने अभी तक पहला पाठ ही पक्का नहीं किया जबकि वो हमारा फाउंडेशन है।
देखने का रस, कौन कहाँ जा रहा है? किससे मिल रहा है? क्या बात कर रहा है? दूसरों में ही नज़र, सुनने का रस, तेरी-मेरी दुनिया भर की बातें, खुद का ठिकाना नहीं और दुनिया भर की पंचायत। अभी भी वो रस है, पहले लौकिक की करते थे अब अलौकिक की करते हैं। और वो सुनने के लिए तो कान भी खुले, आँखें भी खुली। अच्छा मुझे तो पता ही नहीं हैं बताओ, बताओ। मैं तो जानती ही नहीं। अरे, अगर बातें नहीं जानेंगे तो क्या देवता नहीं बनेंगे! ये समझते हैं जैसे ये व्यर्थ की पंचायत नहीं जानेंगे तो देवता नहीं बनेंगे। कोई भी रस में बुद्धि है तो बुद्धियोग ऊपर में जायेगा ही नहीं।
योग क्यों नहीं लगता है? योग में आनंद क्यों नहीं आता है? क्योंकि अभी तक इन्द्रियों के रस में लगे हुए हैं, बातें करने में लगे हैं, कोई काम नहीं है, फुर्सत में बैठें हैं, तो अदंर-अदंर में राह देखते रहेंगे कोई आये तो बात करें। बातें करने का रस, साइलेंस का रस नहीं, क्योंकि साइलेंस में रहना पसंद नहीं है, और बाबा से बात मन करता नहीं है इसलिए फिर नींद करते रहते हैं कई। क्यों नींद आती है? बाबा से प्यार से बातें करो। खाने का रस, खाऊं, खाऊं बस। आज ये बना है, आज ये बना, खाने में ही बुद्धि है। बाबा ने हमारा जीवन सादा, सरल, सात्विक बनाया है ताकि इसमें बुद्धि न जाये। पहले खाने के लिए जीते थे अब जीने के लिए, सात्विक खाना, शुद्ध खाना, ये सारे नियम, मर्यादाएं किस लिए हैं ताकि हम दैहिक रसों से ऊपर उठें, क्योंकि हमारा लक्ष्य है हरेक कर्मेन्द्रियों से, देहभान का त्याग करना। हमें संपूर्ण आत्मअभिमानी बनना है। इसी साधना से जीवन शुरू होता है और इसी साधना से मंजि़ल प्राप्त होती है। जब ज्ञान नहीं था तो हर कर्मेन्द्रियों से विकर्म किया।
अभी भी ब्राह्मण जीवन में लक्ष्य नहीं है, अपने आप पर अटेंशन नहीं है। अभी भी अपने आप में देखो कर्मेन्द्रियों से विकर्म होते रहते हैं। कर्मेन्द्रियों का सही उपयोग हो रहा है या नहीं! वाणी बिगड़ती रहती है। खोटे कर्मों में साथ देते हैं कितनी शक्ति वेस्टकरते हैं। बाबा कहते हैं ज्ञान नहीं था तो हर कर्मेन्द्रियों से पाप किये अब लक्ष्य रखना है मुझे कि हर कर्मेन्द्रियों से पुण्य आत्मा बनना है। बाबा समझाते हैं पर बनने का लक्ष्य तो मुझे रखना है ना! जब तक खुद लक्ष्य नहीं बनायेंगे,अटेंशन नहीं रहेगा।लक्ष्य बनाओं अब मुझे हर कर्मेन्द्रियों से पुण्य आत्मा बनना है। हर कर्मेन्द्रियों को कमल फूल समान बनाना, चरण कमल, हस्त कमल, नयन कमल, मुख कमल, देवताओं की महिमा क्या है? ये ही है ना! भक्ति में गाते थे ना कृष्ण की महिमा हसीतम् मधुरम्,चलीतम् मधुरम्, खलीतम् मधुरम्, मधुराधीपति मधुरम् मधुरम्। क्या पर्सनैलिटी थी देवताओं की, और हमारा लक्ष्य है देवता बनना तो बुद्धि में क्लीयर होना चाहिए कि देवता बनना माना क्या बनना है? योगी का गायन है योगी जन उसको कहें, क्रशीतल जिनके अंगञ्ज जिनकी हर कर्मेन्द्रियां शीतल हों माना विकार की कोई अग्नि नहीं। हम योगी हैं पक्का है ना सबको, हम भोग मार्ग छोड़ चुके हैं। योग मार्ग के राही बने हैं। हमारी हर कर्मेन्द्रियां शुद्ध, शीतल, योगी की दृष्टि महासुखकारी हम हर एक को किस नज़र से देखते हैं। नाराज़गी से देखते हैं? ईष्र्या, द्वेष से देखते हैं, अवगुण की दृष्टि से देखते हैं।
हमारी दृष्टि क्या है? हमारी आपस में दृष्टि क्या है? हम एक-दो को किस नज़र से देखते हैं? बाबा कहते हैं रूहानी नज़र से देखो, गुणग्राही दृष्टि से, शुभ दृष्टि से देखना। तो कहीं भी हिसाब नहीं बनेगा। निगेटिव दृष्टि से देखा तो हिसाब बना। इसलिए बाबा ने पहला पाठ हमें क्या सिखाया कि खुद को देह से अलग आत्मा समझो। ये सत्य वो नहीं जानते थे भक्ति में योगी बनने के लिए परिवार से दूर चले गये। दुनिया से दूर जंगल में चले गये। हमें बाबा ने सहज योग सिखाया। हमें हर क्षण देह द्वारा कर्म करना है और हर क्षण देहभान से न्यारा रहना है। कितना अटेंशन चाहिए? जीवन भर जो अभ्यास करेंगे, जो मनन-चिंतन स्मृति में रहेेगा वही अंत में याद रहेगा। अगर चाहते हैं अंत में बाबा याद रहे तो जीवन भर बाबा को याद करो।

मुझे बार-बार अपने आप को देहभान से डिटैच करते रहना है, महसूस क रना है। बाबा सुनाते, समझते हैं हमारा काम क्या है? हमारा क ाम क्या है ? समझना, अभ्यास करना, अनुभव करना। सारा दिन में वो फॅालो करना है। रोज़ की मुरली रोज़ मुझे अभ्यास में लानी है। भक्ति में तो सत्य ज्ञान नहीं था हर एक ने अपनी मतें सुनाई और अनेक मतें हो गई। आज बाबा ने कहा ना एक सत्य मत मैं ही देता हँू अब हमें कुछ ढूंढना नहीं है। हमें सत्य मिल चुका है। अब हमें क्या करना है? अभ्यास में लाना, आचरण में लाना है। जो बाबा बात कहते है उसे मुझे महसूस करना है जो एहसास करेंगा वो चेंज तुरंत करेगा। परिवर्तन करने में समय क्यों लगता है? भगवान कहे और हम कर क्यों नहीं कर पा रहे है? क्योंकि हम एहसास नहीं कर पाया रहे हैं। कौन आया है? और वो क्या कह रहा है? अगर मुझे समझमें आ रहा है तो समझमें आना का मतलब क्या है? स्वरूप बनना। जीवन में समान बनना। हम इस हॉल में बैठे हैं। पता हैं हॉल अलग हमें अलग है इस सोफ, कु र्सी पर बैठे, पता है ना सोफ अलग है। मैं अलग हँू। हमने वस्त्र पहने हैं समझ रहे है ना वस्त्र अलग है मैं अलग हँू। और गहराई से समझना है। शरीर अलग है मैं आत्मा अलग हँू। शरीर तत्व है, मिट्टी है मैं आत्मा लाइट हँू, माइट हँू। जीवन में सारी भौतिकता और भोग की उत्पत्ति इस शरीर के भान से ही हुई। खुद को देह समझा, इसलिए खाने में पीने में, नहाने में, सोने में इन चीजों में बुद्धि लगी हैं। फिर शरीर के संबंध, वैभव, पदार्थ, प्रवृत्ति। अब बाबा ने हमें महसूस कराया, अब खुद में स्थित होना है। खुद को उँच बनाना है। खुद को शुद्ध बनाना है। तो आत्मा स्मृति का अभ्यास, मुरली में भी बाबा कहते है मैं मुख द्वारा बोल रहा हँू, तुम कान द्वारा सुन रहे हो। हमें ये प्रैक्टिस करनी होगी। ज्ञान आ गया वो तो बाबा ने ही बातया, पर ज्ञान मात्र से देहीअभिमानी नहीं बन जायेंगे। हमें प्रैक्टिस करनी होगी। हमें बार-बार खुद को डिटैच करना होगा। मुरली से पता चलता है ना कि ब्रह्मा बाबा ने कितना अभ्यास किया। बाबा कि जीवन कहानी में भी पढ़ते हैं। बाबा लिखते थे आत्मिक दृष्टि का अभ्यास करते थे, यशोदा आत्मा, बाबा कि धर्म पत्नी का नाम यशोदा था ना। बाबा लिख-लिखकर पक्का करते थे। अनेक जन्मों से देह दृष्टि का अभ्यास रहा है। अब ये पाठ पक्का क रो। भल पवित्र रहते हैं तो भी देह संबंध का भान रहता है देह संबंध के अधिकार से व्यवहार करते हैं। बाबा कहते हैं ना कि वो रग जाती नहीं। हमें वो अभ्यास करना है। नारायण आत्मा है, बाबा के बेटा का नाम नारायण था। राधिका आत्मा है, बाबा कि पुत्रवधु का नाम राधिका था। लिखो अपने-अपने परिवार के नाम, डयरी में लिखो, पाठ पक्का करो। अशरीरीपन की स्थिति के ये स्टैप है। आत्म स्मृति, कर्मद्रिंया से डिटैच मैं मुख से बोल रही हँू। कान से सुन रही हँू। मैं आंखों से देख रही हँू। भल देखने में शरीर आयेगा पर देखते हुए भी आत्मा को देखना, ये प्रैक्टिस करनी होगी। देहसंबंधों में ये पक्का करो बेटा भी आत्मा, बेटी भी आत्मा, पत्नी भी आत्मा। मन ही मन ये अभ्यास पक्का करो। और तीसरा अभ्यास लक्ष्य रखो, अटेंशन रखना है मुझे हर कर्म आत्मास्वधर्म में स्थित होकर करना है। आत्मा का धर्म कौन सा? हमारा स्वधर्म कौन सा? शांति और पवित्रता। पता है ना मुझ आत्मा के मूल धर्म कौन से है? शांति, सुख, आनंद, प्रेम ,पवित्रता, ज्ञान और शक्ति। मुझे हर कर्म शांति से रहना है। प्यार से, ज्ञान स्वरूप बनकर करना है, शुद्धि से करना है। तो आत्म अभिमानी स्थिति बनें। ये तो अभ्यास है। और जीवन भर के अभ्यास से स्थिति बनती है। ये साधारण शरीर छिप जाए, मेरा ज्योति स्वरूप प्रत्यक्ष हो। मेरा स्वरूप कौन सा है? ज्योति स्वरूप आत्मा है। ये स्थूल हड्डी-मांस का शरीर गायब हो जाए और मेरा ये ज्योति स्वरूप प्रत्यक्ष हो जाए। आप ने देखा होगा रात के अंधेरे में ट्रेवल करते हैं दूर से मोटर आती है, क्या देखाई देता है? लाइट दिखाई देती है उनके फोकस ही इतने पॉवरफुल होते हैं कि दूर से लाइट दिखाई देती है। मोटर गायब हो जाती है। हमारा ये फोकस इतना पावरफुल हो कि लाइट दिखाई दे, ये छिप जाये। मुझे इतनी निरतंर आत्म स्मृति रहे। मैं प्रकाश बिंदु , प्रकाश के घेरे में। हर कर्मद्रिंया से आत्म-अभिमानिता का तेज दिखाई दे। देखो, नाम रूप तो ये ही है ना अंत तक ये भी ही रहेगा ना। ये थोड़े ही बदलेगा बदलना क्या है? आत्मा स्थिति बदले। बाबा कहते है ना आप में बाप दिखाई दे। तो चेहरा तो ये ही रहेगा पर मेरी स्थिति, स्मृति, वृत्ति, स्थिति बाप समान बने वो दिखाई दे। चेहरा तो यह ही साधारण है पर अदंर में खुशी है। तो देखती है ना पूछेंगे ना भई क्या बात है? तो चेंज क्या हुआ? अदंर खुशी है। चेहरा यह ही है, पर अदंर खुशी है। चेहरा यह ही पर अदंर चिंता, टेंशन, परेशानी है। तो कहते है ना कि भई क्या बात है? टेशन में लग रहे हो। तो अदंर
की स्थिति, वृत्ति, चेहरे द्वारा दिखाई देती है ना तो जितनी हम आत्मअभिमानी स्थिति बनायेंगे, जितना बाबा याद रहेगा तो हमारे चेहरे से क्या दिखाई देगा। वो चीजें दिखाई देंगी। ये हमें स्थिति बनानी है। हमारे चेहरे के हाऊ,भाव से दिखाई दे, अनुभव में आये। ये तपस्वी आत्मा। सच्चा योग दुनिया जानती नहीं हम जानते है डायरेक्ट बाबा से योग लगते हैं। लौकिक परिवार या जहा आप नौकरी धंधा आदि करते हैं वहाँ या जहां ईश्वरीय परिवार के साथ पढ़ते, सेवा करते हैं। हमें उनसे सर्टिफिफेट मिलना चाहिए वो कहे हमारे बीच में ये तपस्वी है। ये ज्ञानी है ये भक्त नहीं है ये सर्टिफिफेट तो है, हमारी सेवाओं का सर्टिफिफेट मिलता है कि ब्रह्माकुमार, कुमारियों बहुत अच्छी सेवा कर रही हैं। ये सर्टिफिफेट मिले कि ये योगी आत्मा है। ये तपस्वी आत्मा है। इनके तप से हम भी तर जायेंगे। भक्ति में कहानी बातते है ना नैया मेरी मंझधार में कैसे पार जाए तो सबको निश्चय रहता कि इस शक्ति के कारण हमारी भी नैया पार
हो जायेगें। जहां-जहां हम सच्चे योगी है, साथियों को अनुभव हो कि ये हमारी बीच में योगी आत्मा है। हमारी वृत्ति, प्रवृत्ति, स्थिति ऐसी हो जो लोग कहे ये तो योगी आत्मा है तब बाबा ने संडे की मुरली में कहा था कि तपस्वी की निशानी क्या है? कौन सी पर्सनैलिटी है? प्योरिटी की पर्सनैलिटी, प्योरिटी की पर्सनैलिटी हमें बनना है। रॉयलिटी, रॉयलिटी माना जरा़ भी अपवित्रता नहीं, कितने ऊँचे लक्ष्य से बाबा हमें पढ़ाते है। इतनी पालना हमें देते है इतना प्यार हमेें बाबा देेते तो हमें भी गहराई से सोचना है और अपना लक्ष्य प्रैक्टिकल रहे। ऐसे नहीं मुरली सुन ली काम पूरा हुआ। मुरली के बाद ही तो काम शुरू होता है। सारा दिन क्या अटेंशन रखना? सारा दिन क्या अभ्यास करना? भट्टी में आते हैं फुसते हैं यहा पर तो इतना काम नहीं फुर्सत है वहा आप को इतना समय नहीं यह तो फुर्सत है अपने आप को देखो। सच मे वापस घर जाने की तैयारी हम कर रहे है? ये सारा पुरूषार्थ है हमारी रिटर्न जर्नी सहज हो जाए इसकी तैयारी बाबा करवा रहे हैं।

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