जि़म्मेदारियों को बोझ न समझ अपना भाग्य समझें

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आपको चार घंटे में एक कार्य पूर्ण करना है ये आपकी जि़म्मेदारी है। अब आपकी मनोस्थिति कैसी होती है, आपका मन तुरंत तेज दौडऩे लगता है या कंट्रोल में रहता है? आप नर्वस हो जाते हैं या धैर्यवत् रहते हैं?

जिसका जि़म्मेदार स्वयं भगवान हो, वे परेशान कैसे हो सकते हैं? जि़म्मेदारी तो हर व्यक्ति के पास कुछ ना कुछ होती ही है। रोज़ ही कई जि़म्मेदारियों का वहन(निभाना) मनुष्य करता है। एक टीचर की भी जि़म्मेदारी होती है कि वो बच्चों को ठीक से पढ़ाये। स्टूडेंट्स की भी जि़म्मेदारी होती है कि वह ठीक से पढ़े। माता-पिता की जि़म्मेदारी अपने बच्चों के प्रति। कोई बड़ा काम आपको दे दिया गया, उसकी जि़म्मेदारी आपके ऊपर है। आपको बच्चों की शादियां करानी हैं उनकी जि़म्मेदारी, पढ़ाना-लिखाना या कहीं ज्य़ादा खर्च करना है उनकी जि़म्मेदारियां हैं। हर एक की अपनी क्या-क्या जि़म्मेदारियां हैं और क्या-क्या कत्र्तव्य हैं इसको मनुष्य को अच्छी तरह पहचान लेना चाहिए। कईयों की जि़म्मेदारी उन्हें बोझिल कर देती है और कईयों की जि़म्मेदारियां उन्हें आगे बढ़ा देती हैं, बहुत कुछ सिखा देती हैं, शक्तिशाली बना देती हैं। इसलिए जि़म्मेदारियां संभालना, ये एक बहुत बड़ी क्वालिटी है। कई लोग कहा करते हैं कि भई हम काम तो करेंगे, पर जि़म्मेदारी नहीं लेंगे वो साधारण आत्माएं मानी जायेंगी। जि़म्मेदारी लेने वाला व्यक्ति नेतृत्व करेगा और वो नेता बन जायेगा। और जि़म्मेदारी में सफल होना ये भी अपने हाथ में है। उसमें हमारा स्वभाव बहुत स्वीट हो, अभिमान ना हो। हमें कार्य करने की बहुत तत्परता हो, हममें केयरलेसनेस ना हो, तो हमारी टीम भी ऐसी हो जायेगी और तब जि़म्मेदारियां, हमें सुख देने वाली बन जायेंगी। हमारा नाम रोशन करने वाली बन जायेंगी। परंतु जि़म्मेदारियों को बोझ न बनने दें।
बाबा कहा करते थे, बाप बच्चों को जि़म्मेदारियां देते हैं लेकिन जो बच्चे अपनी जि़म्मेदारियां बाप को अर्पित करके ट्रस्टी होकर जि़म्मेदारियों को पूर्ण करते हैं वो सदा सफल होते हैं। भगवान ने तो हमें बड़ी-बड़ी जि़म्मेदारी दे दी। विश्व को बदलना है। संसार को भगवान का संदेश देना है। लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को सुंदर बनाना है। मनुष्य को देवत्व की ओर ले चलना है। और तुम्हारी अपने लिए बहुत जि़म्मेदारियां हैं। मनुष्य की अपने लिये भी जि़म्मेदारियां होती हैं, परिवार के लिये भी, समाज के लिये भी और विश्व के लिये भी। जब जॉब करते हैं तो जो कार्य सौंपे जाते हैं तो उन्हें पूर्ण करने की जि़म्मेदारी होती है। आपको चार घंटे में एक कार्य पूर्ण करना है ये आपकी जि़म्मेदारी है। अब आपकी मनोस्थिति कैसी होती है, आपका मन तुरंत तेज दौडऩे लगता है या कंट्रोल में रहता है? आप नर्वस हो जाते हैं या धैर्यवत् रहते हैं? आपकी विवेक शक्ति स्टेबल रहकर ठीक-ठीक काम करती है या जल्दी-बाजी में आकर आप कुछ का कुछ निर्णय लेने लगते हैं और खेल बिगड़ जाता है। जि़म्मेदारी निभाते हुए आपके साथ एक टीम भी है। उसे आप एक्टिव रखते हैं या लेज़ी, उन पर क्रोध करते हैं या प्यार का साम्राज्य। आपका अभिमान आड़े आ रहा है या आपकी सद्भावनाएं, सब जि़म्मेदारियों में मुख्य रूप से पार्ट प्ले करती हैं। किसी के अच्छे रिज़ल्ट, तो किसी के बुरे रिज़ल्ट लेकिन जि़म्मेदारी मिलते ही परेशान हो जाना, जि़म्मेदारी मिलते ही बहुत नर्वस हो जाना, बोल बिगड़ जाना, टेंशन में आ जाना, परेशानी फील करने लगना, भारी फील करने लग जाना, ये चीज़ें व्यर्थ संकल्पों को बहुत बढ़ा देती हैं।
एन्जॉय करें अपनी जि़म्मेदारियों को, याद रखें स्वयं सर्वशक्तिवान मेरा साथी है, मैं तो निमित्त हँू, करनहार हँू। करावनहार तो शिवबाबा बैठा है ना। उसकी शक्ति से सारा कार्य सहज ही पूर्ण हो जायेगा। तो जि़म्मेदारियों को खेल समझकर, अपना श्रेष्ठ भाग्य समझकर, अपनी योग्यता समझकर उसका आनंद लेंगे। अगर भगवान जि़म्मेदारी देता है तो जि़म्मेदारी को पूर्ण करने का बल भी प्रदान कर देता है। इसलिए हम बहुत-बहुत हल्के हो जायें। जितने हम हल्के होंगे, जि़म्मेदारियां भी सहज पूर्ण हो जायेंगी। हम सफलता को प्राप्त होंगे, और अगर हमने अपने मन को भारी कर लिया, हम टेंशन में आ गये क्या होगा, ऐसे करूँ-वैसे करूँ, ये लोग साथ देंगे या नहीं देंगे। हम सफल ना हुए तो क्या हो जायेगा? यदि इस तरह का चिंतन चलने लगा तो जो जि़म्मेदारी हमें मिली, जिसे हम निभा रहे हैं उसमें बाधाएं बहुत आयेंगी, और हमें हार-जीत, सफलता-असफलता का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए भगवान हमारा साथी है। अपने में बहुत विश्वास रखते हुए हम करेंगे ही, हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा, ये ईश्वरीय नशा अपने साथ ले लें। याद रखें कल्प-कल्प हमने इन जि़म्मेदारियों को पूर्ण किया है। सफलता को प्राप्त किया है, विजय को प्राप्त किया है। अब भी सफलता हमारी ही होगी।
आज तक रिजल्ट देखा है कि जो बाबा को साथ लेकर चलते हैं। करन-करावनहार की स्मृति में रहकर कार्य करते हैं, अनेक साथी उनके बन जाते हैं। मैंने कई जगह देखा बड़ा मकान तो चालू कर दिया पर पैसा कहाँ से आयेगा। सभी भाई-बहन कहते थे कि हो जायेगा बहन जी। फिर बहन जी को थोड़ा डर-सा रहता था कि पता नहीं कितना समय लगेगा? कहीं बीच में काम नहीं रूक जाये, लेकिन सभी ने हिम्मत बढ़ाई, उमंग-उत्साह बढ़ाया। पैसा आता गया, मकान बनता गया। समय से पहले एक सुदंर सेवाकेंद्र बनकर तैयार हो गया। तो हमें स्वयं में विश्वास, बाबा की शक्तियों में विश्वास, अपने ईश्वरीय परिवार में विश्वास रखकर हर जि़म्मेदारी का वहन करना चाहिए। बस हमें ये सीख लेना है कि हमें अपना संगठन कैसे तैयार करना है, कैसे उसमें बल भरना है? हम ऐसा व्यवहार करें कि ना हमें व्यर्थ संकल्प चलें, ना जो हमारे साथी उनके व्यर्थ संकल्प चलें। ना हमें टेंशन रहे, ना उन्हें टेंशन रहे। हम भी हल्के रहें और सबको भी हल्के करके आगे बढ़ायें। तो जि़म्मेदारियां सचमुच हमें शक्तिशाली बनायेंगी, हमें अनुभवी बनायेंगी, हमारे विवेक को जगायेंगी। हमें व्यर्थ संकल्पों से मुक्त करेंगी।

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