बाबा की सबसे पहली विशेषता रही संपूर्ण निश्चय। ब्रह्मा बाबा को शिव बाबा ने टच किया और ब्रह्मा बाबा ने उस संकल्प में थोड़ा-सा भी संशय नहीं लाया। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा क्या होगा, कैसे होगा, मैं सब-कुछ छोड़ तो दँू लेकिन आगे स्थापना कर सकँूगा या नहीं कर सकँूगा? नयी बात थी ना! दुनिया में द्वापर से लेकर अभी कलियुग तक जो बात किसी ने नहीं कही थी कि प्रवृत्ति में रहकर भी आप निर्विकारी रह सकते हैं, पवित्र रह सकते हैं। यह बात किसी ने कही है? अभी तक भी इतने साधु, संत, महात्मा, महामण्डलेश्वर आदि जो भी हैं, वे भी विश्वास नहीं करते कि आग और कपास साथ में हों और आग नहीं लगे, यह हो ही नहीं सकता- वे ये शब्द बोलते हैं लेकिन हम क्या बोलते हैं? आप सभी भी प्रवृत्ति में रहते हैं ना! आपका दिल क्या कहता है? आग और कपास होते भी अपवित्रता की आग नहीं लगती है ना! नयी बात है ना यह! झगड़ा जब शुरू हुआ, वो किससे हुआ? इससे ही ना!
मुझे याद है, शुरू-शुरू में सिन्ध-हैदराबाद में बहुत हंगामा हुआ। बाबा को पंचायत में बुलाया गया। पंचों ने बाबा से कहा कि आप इन माताओं और कन्याओं से कहो कि पवित्र न रहें। हमारे आगे आप वायदा करो। बाबा ने कहा कि मैं यह वायदा नहीं कर सकता और यह बात उनसे कह भी नहीं सकता क्योंकि शिवबाबा ने मुझे यही आज्ञा दी है कि तुमको पवित्र बनकर, पवित्र दुनिया की स्थापना करनी है। इसका फाउण्डेशन ही यह है और मैं कहँू कि पवित्र नहीं बनो तो पवित्र दुनिया स्थापन होगी कैसे? उन्होंने कहा कि इन माताओं-कन्याओं को मार पड़ेगी, बंधन पड़ेंगे,आपके खिलाफ विरोध होगा। बाबा ने कहा कि मेरे को शिवबाबा का डायरेक्शन है, मैं उसको टाल नहीं सकता। इतनी हिम्मत चाहिए ना!
बाबा को ज़रा भी संशय नहीं आया। बाबा इतना बड़ा जवाहरी था। कभी सोचा कि मेेरे परिवार का क्या होगा? मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? वे भूखे तो नहीं मरेंगे! ऐसा सोचा? नहीं। सबकुछ समर्पण कर दिया। उनमें यही लगन थी कि बाबा जो कहता है मुझे वैसे ही करना है। इसको कहा जाता है निश्चय। आपको पता है, आपके सामने आदर्श हैं कि ब्रह्माकुमार-कुमारी बनेंगे तो क्या-क्या करना पड़ेगा, कैसे करना पड़ेगा। आपके आगे उनका एग्ज़ाम्पल है ना, जिन्होंने आपसे पहले ही पवित्र गृहस्थ जीवन अपनाया है। उनको देखकर आपने निर्णय लिया कि हमें भी ऐसे रहना है, ऐसे करना है। ब्रह्मा बाबा के आगे कोई दृष्टांत, एग्जाम्पल नहीं था। नयी बात थी। इतनी नयी बात कि लोग असम्भव मानते थे। उस असम्भव को बाबा ने सम्भव बनाकर दिखाया। संकल्प मात्र में भी, स्वप्न मात्र में भी बाबा को संशय नहीं आया। इसको कहते हैं, बाप समान। बाप समान बनना माना साक्षात् बाबा बनना। तभी हम साक्षात्कार मूर्त बन सकते हैं।