आरम्भ से ही मुझे बाबा के मस्तक से लाइट-माइट का साक्षात्कार होता ही रहा। बाबा का त्याग भी प्रैक्टिकल था, तपस्या में सदा तत्पर थे और सेवा में हमने उन्हें अथक होकर सभी को सुख देते देखा। हमने बाबा को कभी भी सहज साधारण मूड में नहीं देखा। अव्यक्त होने के तीन वर्ष पहले से ही बाबा एकदम न्यारे बन गये थे। कोई भी बात जैसे कि सुनते हुए भी नहीं सुनते थे। निमित्त बनकर यज्ञ कारोबार चलाते थे। कराची में बाबा ने देह के सम्बन्ध तोड़कर एक परमात्मा से कैसे जोडें़- यह अभ्यास किया और कराया। योग कराने के बाद हम बाबा से पूछते थे- बाबा आप कहाँ थे? तो बाबा कहते थे कि क्रक्रमैं तुम बच्चों को ही दृष्टि नहीं दे रहा था, सारे विश्व की आत्माओं को दृष्टि दे रहा था। मैं तो सारे विश्व का पिता हँू।ञ्जञ्ज कभी बाबा कहते थे कि चलो बच्चे, वाणी से परे, निर्वाणधाम, वहाँ बैठते हैं जहाँ सब आत्माएं रहती हैं। ऐसे बाबा विभिन्न बातों का अभ्यास करते और करवाते थे। अव्यक्त होने के बाद अब भी बाबा बेहद विश्व सेवा कर रहे हैं।
साकार में बाबा जब थे तो तब कईयों को घर बैठे उनका साक्षात्कार होता था। ऐसे अव्यक्त होने के बाद कई विदेशी भाई-बहनों को ब्रह्मा बाबा का और मधुबन का साक्षात्कार हुआ है। हरेक को लगता है कि यह हमारा बाप है, ऐसे नहीं लगता कि ये केवल हिन्दुओं का ही है। सबको अपनेपन की भासना आती है। उनको लगता है कि यह हमारा परमात्मा से सम्बन्ध जुड़ाने वाला बाप है। वे ज्ञान तो सुनते हैं लेकिन ब्रह्मा बाबा को देखते ही कहते हैं- मेडिटेशन समझ में आ गया। हम सभी जनवरी अव्यक्त मास में
बाबा ने जो शिक्षाएं दी हैं- विचार सागर मंथन करें, ज्ञान की गहराई में
जायें, जिससे बुद्धि को परचिंतन करने की फुर्सत नहीं मिले। बीती बातों का चिंतन नहीं, फालतू बातें सुनना नहीं, ज़रूरत की बातें सुनाई पड़े।
वैसे तो मैं बाबा के पास पीछे आई हँू, लेकिन समर्पित होने के पहले जब घर में रहती थी, तब भी मेरे सामने बाबा फरिश्ता रूप में घूमते थे। गीता पढ़ते समय भी अनुभव करती थी कि बाबा मेरे सामने खड़े हैं और मुझे बुला रहे हैं। भक्ति में मैंने बूढ़े ब्राह्मण में सत्य नारायण स्वामी को देखा था तो जब मैं बाबा के पास आई तो सत्य नारायण स्वामी जैसे ही भासना आई।
मुझे सदा अव्यक्त स्थिति का गुप्त नशा और निशाना रहता था। मैं तीनों बाप- साकारी, आकारी व निराकारी को सामने खड़े अनुभव करती हँू। साकार को फॉलो करना है। आकारी ब्रह्मा बाबा को देखती हँू कि कैसे इतनी बड़ी जि़म्मेवारी सम्भालते हुए संपूर्ण बने, निराकारी को सदा नज़रों के सामने रखती हँू। जब भी समय मिलता है विदेही स्थिति का अभ्यास करती हँू।
मैंने बाबा को कभी साधारण मनुष्य सदृश्य नहीं देखा। पाँच तत्वों के शरीरधारी एकदम हल्के-फुल्के फरिश्ता अनुभव होते थे। उनका बोल-चाल, उठना-बैठना अनोखा ही था। उनकी गंभीर मुद्रा से लगता था कि वे प्रभु-प्रेम में डूबे हुए हैं। उनके नैन से और मुख से एक अपूर्व तेजस्विता छलकती थी। वे जीवनमुक्त अवस्था में प्रत्येक कार्य दिव्यता के साथ करते थे। सत्यता, पवित्रता और दिव्यता के अवतार दिखाई देतेे थे।