”निजानंद स्वरूपम शिवोहम…शिवोहम”,
”प्रकाश स्वरूपम शिवोहम…शिवोहम”,
”ज्ञान स्वरूपम शिवोहम…शिवोहम”
1937 में परमात्मा शिव ने परकाया प्रवेश कर अपना परिचय दिया और नये स्वर्णिम दुनिया की नींव रखी। विशेष तौर पर माताओं-बहनों को शिव शक्ति बनाकर निमित्त बनाया। उन्हें सृष्टि चक्र के सम्पूर्ण ज्ञान से अवगत कराकर, सुसस्ंकारों से सिंचन कर, सृष्टि परिवर्तन का कार्य आरम्भ कराया।
ब्रह्मा बाबा(दादा लेखराज) को दिव्य साक्षात्कार में पहले विष्णु चतुर्भुज का दिव्य साक्षात्कार हुआ फिर महाविनाश का परिवर्तन का साक्षात्कार हुआ, स्वर्ग का साक्षात्कार हुआ और आत्मा का अनुभव हुआ लेकिन उसके बाद कराची से फिर वह मुम्बई कुछ कार्य अर्थ आये तो मुम्बई में उनका जो मकान था वहाँ सतसंग चल रहा था, आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि सतसंग के बीच से उठकर ब्रह्मा बाबा(दादा लेखराज) कहीं गए हों। क्योंकि वो ऐसा करने में गुरु जी का अपमान समझते थे। लेकिन तब अचानक पिताश्री जी को कुछ फील हुआ और वह वहाँ से उठे और उठ करके अपने कमरे में गए जो बहुत ही असाधारण था। उनके बड़े बेटे की बहू भी पीछे-पीछे गई तो उसने जो दृश्य देखा जिसका वर्णन करके वह हमेशा सुनाते थे कि पिताश्री अपने पलंग पर अपनी चारपाई पर अर्ध पद्मासन में बैठे थे और जैसे ध्यान मग्न थे, आँखें बंद थी यह दृश्य देखकर उनकी बहू सामने जाकर बैठ गई। उनको भी पिताश्री जी के व्यक्तित्व में एक आकर्षण महसूस हुआ जो खींची हुई वहाँ जाके नीचे बैठ गई और जैसे ही सामने बैठी तो धीरे-धीरे पिताश्री जी की आँखें जो बंद थी वो खुली और उनकी आँखों से एक तेजोमय लाल प्रकाश जो सारे कमरे को प्रकाशित कर रहा था, इतना प्रकाश था, इतना तेज था चेहरे पर, उसके बाद जैसे उनके मुख से आकाशवाणी हो रही हो इसी तरह आकाशवाणी हुई कि क्रक्रनिजानंद स्वरूपम शिवोहम्…शिवोहम्ञ्जञ्ज, क्रक्रप्रकाश स्वरूपम शिवोहम्…शिवोहम्ञ्जञ्ज, क्रक्रज्ञान स्वरूपम शिवोहम्…शिवोहम्ञ्जञ्ज और यह तीन महावाक्य उच्चारण होने के बाद धीरे-धीरे पिताश्री जी के नैन बंद हुए और वह प्रकाश जैसे लुप्त हो गया। उसके बाद पिताश्री जी अपनी स्वाभाविक स्थिति में आए और आते ही उनके मुख से यही आवाज़ निकली कहाँ गया वह प्रकाश, कहाँ गया वह प्रकाश? बहू ने पूछा पिताश्री जी आपको क्या अनुभव हो रहा है,तब उन्होंने कहा एक बहुत तेजोमय प्रकाश था हज़ारों सूर्य से तेजोमय प्रकाश और वो प्रकाश मेरे सामने आकर ऐसा महसूस हुआ कि जैसे मेरे भीतर आकर कुछ उच्चारण करके गए तब बहू ने सुनाया कि तीन महावाक्य मैंने सुने आपके मुख कमल से। यह था परमात्मा का सबसे प्रथम अवतरण परकाया प्रवेश एक साधारण मनुष्य तन में और वह परमेश्वर ने अपना परिचय दिया कि क्रक्रनिजानंद स्वरूपम शिवोहम्…शिवोहम्ञ्जञ्ज, क्रक्रप्रकाश स्वरूपम शिवोहम्…शिवोहम्ञ्जञ्ज, क्रक्रज्ञान स्वरूपम शिवोहम्…शिवोहम्ञ्जञ्ज। यह प्रथम अवतरण था और प्रथम परिचय ईश्वर ने अपना दिया उसके बाद पिताश्री जी जैसे कई बार ध्यान मग्न स्थिति में जाने लगे और हर बार वह तेजोमय प्रकाश कोई न कोई महावाक्य उच्चारण करके जाते थे। जैसे ही परमात्मा का अवतरण होता था तो सारे घर में एक चुम्बकीय आकर्षण फैल जाता था।
हर एक को महसूस होता था कि बाबा के कमरे में कुछ हो रहा है। सभी आकर के सामने बैठ जाते थे और धीरे-धीरे हर रोज़ कोई न कोई महावाक्य उच्चारण होने लगे और इस तरह से सत्संग आरंभ हो गया। परिवार वाले ही वो सत्संग करते थे और जैसे ही बैठते थे तो एक दिव्य अलौकिक अनुभव करते थे। धीरे-धीरे अड़ोस-पड़ोस के लोग भी सत्संग में आकर बैठने लगे। और उस सत्संग की विशेषता तो ये थी कि जब पिताश्री ú की ध्वनि लगाते थे और उस ú की ध्वनि में जो भी सामने बैठे हुये थे वो ध्यान में चले जाते थे। तो तब किसी को विष्णु चतुर्भुज का साक्षात्कार होता था, किसी को श्रीकृष्ण का साक्षात्कार होता था, किसी को स्वर्ग का साक्षात्कार होता था, किसी को महा परिवर्तन का। ऐसे विभिन्न साक्षात्कार होने लगे और धीरे-धीरे ये आवाज़ समाज में फैलने लगा कि दादा के सत्संग में जो भी जाता है उन्हें बहुत दिव्य अलौकिक अनुभव होता है। धीरे-धीरे समाज के लोग भी आने लगे और वह सत्संग बढ़ता गया। इतने लोग आते रहे लेकिन जहाँ इतने लोग सहजता से आते गए फिर धीरे-धीरे परीक्षा का दौर भी शुरू हुआ।
परिवार वालों ने जब यह जाना कि वहाँ जा रहे हैं सत्संग में और उन्हें कोई सूझ-बूझ नहीं रहती है। कब काम खत्म करें और सत्संग में जल्दी जाएं, कब काम खत्म करें जल्दी सत्संग में जाएं क्योंकि उसी सत्संग में तो यह दिव्य अनुभव होता था। इसीलिए सबको आकर्षण होता था। धीरे-धीरे परिवार वालों को जब पता चलने लगा तो परिवार वालों ने रोक लगाना शुरू किया कि कोई ज़रूरत नहीं है रोज़-रोज़ सत्संग में जाने की। फिर जब वो अनुभव सुनाते थे कि हमें श्रीकृष्ण का दर्शन होने लगा, रोज़ हम श्रीकृष्ण का दर्शन करते हैं। वहाँ के पेपरों में आ गया कि बाबा कोई जादू करते हैं, लोगों को ईश्वर का दर्शन कराते हैं और इस तरह से अपनी तरफ खींच रहे हैं। मीडिया में आ गया, न्यूज़पेपर में आ गया और उसके बाद जब बहुत लोग आने लगे तो नैचुरल है कि जो भी सदस्य सत्संग में आते थे तो परिवार वालों ने उन पर रोक लगाना शुरू कर दिया। विशेषकर मातायें-बहनें ही ज्य़ादा आती थीं।
इसीलिए माताओं को रोकना शुरू किया, कन्याओं को रोकना शुरू किया लेकिन परमात्मा ने यह दिव्य कार्य जो आरंभ किया उसमें पिताश्री जी को एक विज़न दिया कि नई दुनिया के सृजन के लिये आपको निमित्त बनना है और उस विज़न में यह भी बताया कि जिस तरह माँ अपने बच्चे के अंदर अच्छे संस्कारों का सिंचन करती है तो नई दुनिया के लिए भी स्वर्ग की सृष्टि का सृजन करने के लिए माता प्रथम गुरू है। जब वही माता शिव शक्ति बनती है और शिव शक्ति बनकर जो भी भाई-बहनें आते हैं उनके अंदर भी अच्छे संस्कारों का सिंचन करेगी।