बाबा कहते हैं कि सर्वंश त्यागी बनो, वैरागी बनो। समर्पित का अर्थ ही है सर्वंश त्यागी। समर्पित माना ही पुरानी दुनिया से वैरागी और पक्के सन्यासी, पक्के त्यागी, पक्के तपस्वी और सच्चे-सच्चे माला के मणके बनकर जायें।
यह संगमयुग पुरुषोत्तम युग है, इसे चढ़ती कला का, वरदानी युग भी कहते हैं। इस युग में आप सबको समर्पित होने का भाग्य मिला है। यह भाग्य भी कोटो में कोई, कोई में भी कोई को मिलता है। तो हमें आप समर्पित पाण्डवों को देख बहुत-बहुत खुशी हो रही है। हम सबकी एक आश है कि हम बाबा को प्रत्यक्ष करें, यह आश अभी तक पूरी नहीं हो रही है, क्यों? हमारी आश है कि हमारे यज्ञ के जो सभी पाण्डव हैं, वह ऐसा करके दिखावे जो हरेक कहे कि मेरी स्थिति बाबा के ज्ञान और योग के अनुसार निर्विघ्न है अर्थात् हम बाबा आपके पक्के क्रमायाजीत बच्चेञ्ज हैं। माया कमज़ोर करती है वह तो बहुत सुना है। लेकिन अभी हम मायाजीत हैं, ऐसा ठप्पा सभी का लगना चाहिए। ऐसी यहाँ भी की प्रतिज्ञा का प्रत्यक्ष प्रमाण बाबा को मिलना चाहिए। पाण्डव माना ही जिन्होंने प्रीत बुद्धि का प्रत्यक्षफल दिखाया। भल उनके सामने कितनी भी परीक्षायें आई, जंगल में भी जाना पड़ा तो भी विजयी बनकर दिखाया। ऐसे आप पाण्डव इस पाँच दिन के अन्दर ऐसी एकता की नींव लगाकर जाओ जो आप यहाँ से जहाँ भी जाओ तो सब देखकर कहें कि यह जादू की नगरी से पूरा ही बदलकर आये हैं। जो कुछ भी छोटी-मोटी, तेरी-मेरी बातें हों… सब खत्म करके हम बाबा के सच्चे बच्चे, सच्ची गोदी में बैठकर चलेंगे- ऐसी यहाँ भी करके जाना। योग का अभ्यास तो करना ही है, साथ-साथ इस भ_ी में कुछ नवीनता करके जाना है। जैसे बाबा कहते हैं कि सर्वंश त्यागी बनो, वैरागी बनो। समर्पित का अर्थ ही है सर्वंश त्यागी। समर्पित माना ही पुरानी दुनिया से वैरागी और पक्के सन्यासी, पक्के त्यागी, पक्के तपस्वी और सच्चे-सच्चे माला के मणके बनकर जायें। हम क्रविजयी मालाञ्ज के विजयी रत्न हैं, विजयी रत्न थे इसलिए अभी क्रविजयी रत्नञ्ज बनके ही जाना है क्योंकि बार-बार दिल में यह ज़रूर आता कि अब घर जाना है या आप समझते हैं हम तो अभी युवा हैं, हमें तो अभी इस दुनिया में रहना है? युवा, बूढ़े सब समझते हैं हमें घर जाना है। कभी-कभी युवा समझते हैं हम तो अभी युवा हैं लेकिन बाबा कहते आप सब वानप्रस्थी हो, वानप्रस्थी माना युवा नहीं। वानप्रस्थियों की बुद्धि में रहता है कि कभी भी पंछी उड़ जाए, हम तैयार हैं।
तो हमारी आश है कि एक-एक पाण्डव ऐसा अपना बैलेन्स सीट क्लीयर करो,जो धर्मराज भी फूलों से स्वागत करके, सलाम करके वतन में भेजे। सभी बाबा के ज्ञानी तू आत्मा बच्चे अपना बैलेन्स सीट ऐसा बनाओ जो धर्मराज दिल से खातिरी करे। यह नहीं कि देख तुमने यह गलत किया, यह तू भोग- तो यह सब यहाँ खत्म करके जाओ। क्या यह पॉसिबल है? हमारा रिमार्क है कि अन्त में बाबा बाहें पसार कर कहे आओ बच्चे आओ, ऐसे गले लगाकर वतन में भेज दे, ऐसी स्थिति बनानी है। दिल कहे 100प्रतिशत हमारा यह रिकॉर्ड हो। बाबा की श्रीमत अनुसार हमारा मन-वचन-कर्म हो। बाबा हमें सर्टीफिकेट दे कि यह संस्कारों से, संकल्पों से, दृष्टि, वृत्ति सभी से पास विद ऑनर है। ऐसी कमाल करो तब कहेंगे समर्पित।