पर्वों का भाव

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परमात्मा को इन पाँच तत्वों से परे वाली जो स्थिति है उसके आधार से जाना है। इस समय उसको इतना महत्व हम क्यों नहीं दे पा रहे हैं,क्योंकि हमको उस निराकार को समझने के लिए पाँच तत्वों की देह से अपने आपको परे ले जाना होगा।

पर्व या त्योहार के पीछे का कोई न कोई इतिहास ज़रूर होता है। और कहते हैं इतिहास दोहराता है। जितने भी भारत के विशेष पर्व हैं उसमें भी एक पर्व महाशिवरात्रि का आता है। उस पर्व की गरिमा किसी से छुपी नहीं है। लेकिन उसकी महत्ता उन पर्वों से थोड़ी-सी कम हो जाती है। जिसको हम विशेष रूप से बहुत ज्य़ादा याद रखते हैं जैसे दशहरा, दीपावली, होली, या और जो पर्व हैं उनके बारे में तो हम बहुत अच्छी तरह से जानकारी रखते भी हैं और देते भी हैं लोगों को। लेकिन महाशिवरात्रि पर्व ऐसा पर्व है जिस पर न कोई ऐसा स्पेशल, न कोई छुट्टी होती है और न ही कोई इस ओकेज़न(अवसर) को ज्य़ादा महत्व देते हैं। देते हैं लेकिन और पर्वों के मुकाबले बहुत कम। कारण उसका क्या है क्योंकि हम और पर्वों को साकार रूप से, आराम से एक-एक चीज़ को देखते हुए उनके बारे में कथाओं में, पुराणों में, और-और चीज़ों में पढ़कर या किसी से सुनकर बहुत सारी बातें जान गये। जोकि साकार रूप में इस दुनिया में दिखाया जाता है कि रामचन्द्र जी ने ऐसा किया, कृष्ण ने ऐसा किया, तो उस आधार से हम उन त्योहारों के साथ न्याय करते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि का पर्व एक निराकार परमपिता परमात्मा के अवतरण का पर्व है। क्योंकि वो ज्योतिबिन्दु स्वरूप है, निराकार है, देह रहित है तो उस बात को समझने के लिए हमें थोड़ा समय लग रहा है। इसलिए इस पर्व को हम थोड़ा-सा आसान तरीके से ले लेते हैं, सहज तरीके से ले लेते हैं लेकिन हम फोकस नहीं कर पाते। सारे त्योहारों और पर्वों का सार महाशिवरात्रि पर्व से ही शुरू होता है। क्योंकि निराकार परमात्मा शिव का यादगार इस दुनिया में, इस भारत वर्ष में, चाहे दुनिया में ज्योतिबिन्दु परमात्मा को दिखाने के लिए शिवलिंग का निर्माण किया गया। और अन्य स्थानों पर कुछ ऐसा चिन्ह दर्शा दिया गया। जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या बेबिलोन हर जगह कुछ न कुछ परमात्मा का सिम्बल(प्रतीक) बनाया गया। लेकिन वो शरीर वाला नहीं है, शरीर के बिना है, देह रहित है। तो परमात्मा को इन पाँच तत्वों से परे वाली जो स्थिति है उसके आधार से जाना है। इस समय उसको इतना महत्व हम क्यों नहीं दे पा रहे हैं,क्योंकि हमको उस निराकार को समझने के लिए पाँच तत्वों की देह से अपने आपको परे ले जाना होगा। कहते हैं जो जैसा होता है दूसरे को वैसा देखता है। वैसे ही परमात्मा ज्योतिबिन्दु स्वरूप हैं तो वो हम सबको भी वैसा ही देखकर प्यार करते हैं।
जब उसके बारे में कम बातें हुई हैं, कम बातें लोग जानते हैं तो लोग जैसे भी मूर्ति देखी, जैसे भी मूर्तिकार को मूर्ति बनाते हुए देखा, वैसा मान लिया कि भगवान का स्वरूप ऐसा ही है। अब हनुमान जैसा भगवान इस दुनिया में अगर है तो हनुमान जैसा बच्चा पैदा हो जाये तो वो तो स्वीकार नहीं होगा, लेकिन मूर्ति के सामने हम जाके मान के आ जाते हैं कि भगवान ऐसा है। तो पूरी तरह से तो नहीं स्वीकारा ना! नहीं तो हमारे घर में ऐसा बच्चा पैदा हो तो हम उसको एक्सेप्ट कर लें, उसको स्वीकार कर लें,लेकिन नहीं कर सकते। कारण,क्योंकि हम काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं वास्तविकता ये है कि परमात्मा निराकार ज्योतिबिन्दु स्वरूप हैं और जितनी भी विश्व में आत्मायें हैं वो सारी या तो महान आत्मा हैं, या पुण्य आत्मा हैं, या देव आत्मा हैं, या फिर मनुष्य आत्मा है लेकिन कोई भी परमात्मा नहीं है। लेकिन इन बातों को कौन समझायेगा, किसको समझायेगा। उन्हें तो जो भी दिखाई दे रहा है उसे मानते हैं। लेकिन वो भी अंधविश्वास के आधार से। उस पर उनको छोटा-सा बिलीफ(विश्वास) है, बाकी दिन वो बदलता रहता है। उस पर भी पूरी तरह से वो अडिग नहीं है। उस भाव को समझाने के लिए परमपिता शिव निराकार का दिव्य अवतरण होता है। और उस दिव्य अतवरण को ही हम महाशिवरात्रि पर्व के रूप में मनाते हैं।
परमात्मा आकर हम सबको इस अंधेरे से का मतलब ये अज्ञानता की बात है,जिससे हम ये सारी बातें नहीं समझ पा रहे हैं। उससे हमें निकालकर फिर से प्रकाश की ओर ले जा रहे हैं। और वो जो प्रकाश की ओर ले जाने का सिलसिला है वो लम्बा है। क्योंकि जो इतने समय से देह के रूप में देख रहा है वो एकाएक निराकार के रूप में तो नहीं देख पायेगा ना! निराकार के रूप में देखने के लिए उसको थोड़ा टाइम लगेगा। तो इसीलिए शिवलिंग में ज्योतिबिन्दु, एक छोटी-सी आँख और तीन धारियां बनी होती हैं जो परमात्मा के ज्योतिबिन्दु होने का यादगार है। और जितने भी बड़े-बड़े तीर्थ स्थान हैं वहाँ भी ज्योति
स्वरूप परमात्मा को दिखाया गया। वहाँ कोई मूर्ति नहीं है। सारे नाम में या तो गुण हैं या कत्र्तव्य हैं, तो इस तरह से परमात्मा को हम परख सकते हैं। इस महाशिवरात्रि पर, क्योंकि ये लेख तो एक छोटा-सा माध्यम होता है जिसमें हम एक छोटा-सा क्लू(संकेत) देते हैं कि आप किसी चीज़ को जानें कैसे? लेकिन उसको ठीक से जानने के लिए नज़दीकी जो सेवाकेन्द्र हैं ब्रह्माकुमारीज़ के, वहाँ पर जाकर सत्य परिचय परमात्मा का ज़रूर लेना चाहिए, क्योंकि ये समय अभी वही चल रहा है।
जब तक हम असलियत के साथ रूबरू नहीं होंगे तब तक हम पूरी तरह से भगवान से प्राप्तियां नहीं कर पायेंगे, शक्तियां नहीं ले पायेंगे, अपने आपको अच्छा नहीं बना पायेंगे। ये एक तरह से अनुग्रह है, विनती है कि आप सभी इस बात को समझकर, सुनकर, पढ़ कर चाहे जैसे भी एक बार सेवाकेन्द्र पर ज़रूर जायें और वहाँ जाकर इस कोर्स को समझें। परमात्मा को समझें, आत्माओं को समझें और अपने भाग्य को समझें ताकि महाशिवरात्रि पर्व को उसकी तरह से मना सकें जैसा वो चाहता है।

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