सम्पूर्ण सम्पन्न बनने की अपने में हो तीव्र इच्छा शक्ति

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अब आवश्यकता है तीव्र इच्छा शक्ति की कि मुझे क्या बनना है। कितना लेना है बाबा से। तो जो भी रही-सही, अपनी कोई भी कमी है उसको हमें भरना है।

म्पन्नता मिन्स स्वयं में भरपूरता। भरपूरता के बाद ही सम्पूर्णता आती है। अगर कोई भी बात का अभाव है तो वह चीज़ परफेक्ट नहीं कही जाती। परफेक्ट बनना है, सम्पूर्ण बनना है तो अपने आप में हर बात की भरपूरता चाहिए। कोई चीज़ आप बनाते हैं तो उसमें जो डालना है वह सब चाहिए। उसमें से कोई एक चीज़ की भी कमी होगी तो परफेक्ट बनी ऐसा नहीं कहेंगे। कहेंगे बहुत अच्छी बनी है पर नमक कम है या थोड़ी मिर्चि कम है, तो कमी खलती है। हमारे पास यह है, यह है पर यह नहीं है, कोई भी चीज़ का अभाव या कमी पूरा सुख नहीं देता। तो जैसे स्थूल चीज़ों में हम चाहते हैं कि सबकुछ हो, ऐसे अभी हम स्वयं को भरपूर कर रहे हैं तो ज्ञान भी चाहिए, गुण भी चाहिए, शक्ति भी चाहिए, कला भी चाहिए, विशेषता भी चाहिए, अच्छी अनुभूतियां भी चाहिए तो अपने आप को देखना है कि बाबा ने तो सबकुछ दिया है। सब खज़ाने दिए हैं। हमने अपने आप को कहाँ तक भरा है, कौन-सी कमी है? क्या विचार है,उन कमियों के साथ ही चलते रहना है? बहुत लम्बा समय बाबा ने पुरुषार्थ का दिया।
भगवान को जो ज्ञान देना था, प्यार देना था पुरुषार्थ कराना था वो सबकुछ बाबा ने करा दिया। बाबा ने तो अपनी लीला समेट ली, अब हमें क्या करना है? कोई भी चीज़ का पुरुषार्थ करते हैं तो उस पुरुषार्थ की सफलता तब कही जाती है जब लक्ष्य को अचीव करते हैं, मंजि़ल पर पहुंच जाते हैं। तब कहेंगे हमारी मेहनत सफल हुई। हम सभी भी पुरुषार्थ कर रहे हैं। हमें अपने आप से पूछना है कि बाबा ने लक्ष्य दिया है तो चल रहे हैं या मैंने अपने आप में भी इसको स्वीकार किया है? क्योंकि जब तक हम खुद अपना लक्ष्य नहीं बनाते बाबा तो कहते हैं, दादियां कहती हैं, दीदीयां कहती हैं पर मेरा अपना लक्ष्य हो कि मुझे ऐसा बनना है। जब तक हम दिल से खुद स्वीकार नहीं करते तब तक हम बन नहीं सकते। इसलिए रोज़ अमृतवेले योग के बाद बाबा के सामने हमें पक्का करना है, रिवाइज़ करना है कि मुझे आपके जैसा बनना है, मुझे सम्पूर्ण बनना है, मुझे पास विथ ऑनर बनना है, मुझे विनाश के पहले कर्मातीत बनना है। यह अपने आप में दृढ़ करना है। फिर खुद को हम देखते हैं कि बाबा की हम सब बच्चों को सबसे बड़ी देन है सम्पूर्ण बनने का ज्ञान, समझ, मार्गदर्शन। भक्ति में लगन थी तो देखो घरबार छोड़कर, सन्यास लेकर जंगलों में जाकर तप करते थे। कितना कष्ट सहा उन्होंने। उनको जो गुरु मिले, जिस गुरु ने जो कहा वो उन्होंने किया। सत्य है या नहीं वह तो पता ही नहीं था। लेकिन लगन थी, पुरुषार्थ था।
हमारे पास सत्य है, पूरा ज्ञान बाबा ने दिया है कि कैसे बाप समान सम्पन्न बन सकते हैं। अब आवश्यकता है तीव्र इच्छा शक्ति की कि मुझे क्या बनना है। कितना लेना है बाबा से। तो जो भी रही-सही, अपनी कोई भी कमी है उसको हमें भरना है। जब से जिसने अलौकिक जन्म लिया, वो ब्राह्मण जीवन हमारा अंत तक चलेगा। पर कौन-से ब्राह्मण जीवन में आनंद आएगा, सुख महसूस होगा, जो निर्विघ्न, निरोगी होगा। बार-बार माया से युद्ध चले क्योंकि खुद में जब माया आती है तभी विघ्न आता है। जो भी विघ्न आते हैं हमारी अपनी कमी-कमज़ोरी के कारण आते हैं। जहाँ शक्ति है वहाँ वह परिस्थिति विघ्न नहीं लगती। क्योंकि शक्ति है तो हम उसको पार कर देते हैं। कोई लडऩे आ रहा है पर हमारे में भी पॉवर है तो हम कहेंगे आने दो हम भी तैयार हैं, फिर डरते नहीं हैं।
तो इस पवित्र योगी जीवन में हमें ऐसी पॉवर से चलना है कि उसमें कोई विघ्न न रहे माना कोई भी परिस्थिति हमारी खुशी को, आनंद को, हमारी अवस्था को बिगाड़ ना सके। तो सबसे पहले आवश्यक है दिव्य बुद्धि जो बाबा के सद्ज्ञान से हमें प्राप्त होती है। सद्ज्ञान से सद्मति आती है और सद्मती से सद्गति होती है। बुद्धि सदा शुद्ध रहे, सत्य रहे क्योंकि जीवन में हमें बहुत छोटी-छोटी सी बातों से लेकर हर कदम में निर्णय करने होते हैं। यह सोचना नहीं सोचना, यह करना नहीं करना, यह बोलना नहीं बोलना, यह खाना नहीं खाना, यह देखना नहीं देखना हर कदम निर्णय लेने होते हैं। वहाँ हमारी दिव्य बुद्धि किस प्रकार की है सही निर्णय सही कर्म सुख का आधार है। आज बाबा का सत्य ज्ञान मिला, तीसरा नेत्र मिला हम आत्माओं में जागृति आई,अवेयरनेस आई। बाबा ने कहा है ना कि ज्ञान से रोशनी मिलती है। बुद्धि कहाँ भी जाती है हम समझ सकते हैं, क्या राइट है क्या रॉन्ग है, क्या हमें करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए।
तो देखो जीवन बदल गया वरना हमारा जीवन देहभान में, विकारों में, व्यर्थ में, दुनियावी बातों में, इंद्रिय रसों में इन्हीं बातों में चल रहा था। हम इस दुनिया की, इस जीवन की बातें सोचते रहते थे पर जैसे ही बाबा के सत्य ज्ञान से बुद्धि जागी,सत्य बनी तो हमारा नया जन्म हुआ। अब हम सिर्फ लौकिक, दैहिक, भौतिक बातों के लिए नहीं जी रहे हैं, अब हमारा जीवन आत्म कल्याण के लिए और विश्व कल्याण के लिए सेवा भी कर रहा है।

वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका राजयोगिनी ब्र.कु. गीता दीदी,माउण्ट आबू

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