विवेक से सही दिशा चुनें

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जितना हम सही दिशा को लेते हैं, सात्विक दिशा को लेते हैं और अपनी ऊर्जा को वहाँ यूज़ करते हैं उतनी बैटरी चार्ज होना शुरू होती है और व्यक्तिउस विवेक शक्तिसे बहुत ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है।

आज मनुष्य की बुद्धि बहुत पॉवरफुल शक्ति है। इंसान का जब जन्म होता है संसार में तो ईश्वर से उनको दो गिफ्ट मिलती है, कौन-सी दो गिफ्ट? पहली गिफ्ट मिलती है बुद्धि, जो अपने जीवन में सही-गलत को अच्छी तरह समझ सके और निर्णय ले सके। और दूसरी गिफ्ट मिलती है फ्रीडम ऑफ च्वॉइस(कोई भी चीज़ चुनने की स्वतंत्रता)। एक स्वतंत्र इच्छा कि अब तुम्हें क्या करना है, सही-गलत को पहचान लिया। आप एक छोटे बच्चे के आगे झूठ बोल कर देखो वो भी तुरंत आप से कहेगा कि आपने झूठ बोला है, या कभी-कभी आप बच्चों को कह दो कोई मेहमान आए हैं उनको कह दें कि पापा घर में नहीं हैं या मम्मी घर में नहीं हैं,बच्चा इतना इनोसेंट होता है कि वह जाकर मेहमान से यही कहता है कि मम्मी ने कहा कि वह घर में नहीं है। झूठ यहाँ वास्तविकता नहीं है लेकिन बच्चे की बुद्धि ने अभी तक ये स्वीकार नहीं किया कि मम्मी-पापा ने ऐसा क्यों बोला। अगर बच्चा आपसे कहता है कि आपने झूठ बोला ना तो बड़े क्या कहते हैं? अरे तू समझता नहीं चुप बैठ, बीच में बोलने की आदत पड़ी है, तो जैसे ही आप ये बात कहते हैं, बच्चा समझता है कि मैंने कुछ गलत तो नहीं बोला और अंदर ही अंदर कन्फ्यूज़ होता है कि मैंने क्या गलत बोला! अरे जो मम्मी-पापा ने बोला वो मैंने बोल दिया। फिर वो सोचता है कि मम्मी-पापा जो कह रहे हैं, वो समझदार हैं इसलिए कह रहे हैं कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है। और यही अंतरद्वन्द्व उसे उन बातों को कहने पर मजबूर करता है जो माता-पिता ने या बड़ों ने थोपा और वही उसका संस्कार बन जाता है। फिर जब बच्चा झूठ बोलने लग जाता है तो बड़े क्या कहते झूठ बोलता है, कहाँ से सीखी ये गंदी आदत? बच्चा कभी-कभी कह देगा आपसे ही तो सीखा। आपने कहा मैं समझदार नहीं हूँ।
कहने का भावार्थ ये है कि व्यक्ति की जैसी प्रकृति होती है सात्विक, राजसिक, तामसिक, आत्मा ओरिज़नल सात्विक प्रकृति से संसार में आती है ईश्वर के धाम से। जब इस संसार में आए तो बड़े सात्विक स्वरूप में हम आए, शुद्ध स्वरुप में आए, लेकिन फिर घर का माहौल, संग जो हमें प्राप्त होता है वो जिस तरह का होता है अगर सात्विक है तो वह दिशा प्राप्त करते हैं, राजसिक है तो वह दिशा में जाते हैं या तामसिक है तो फिर वह दिशा अपना लेते हैं। इसलिए फिर अपने विवेक को यूज़ करना बंद कर देते हैं और गलत कार्य की ओर आगे बढ़ते जाते और यही समझने लगते हैं कि गलत ही सही है। यही जि़ंदगी है और इसीलिए जो हमें फ्रीडम ऑफ च्वॉइस मिली थी कि कौन-सा चूज़ करना सही या गलत वो चुनाव हमें करना था, लेकिन हमने गलत चुनाव अपनी लाइफ के लिए कर लिया और तब से बैटरी फास्ट डिस्चार्ज होने लगी। और जितना हम सही दिशा को लेते हैं, सात्विक दिशा को लेते हैं और अपनी ऊर्जा को वहाँ यूज़ करते हैं उतनी बैटरी चार्ज होना शुरू होती है और व्यक्ति उस विवेक शक्ति से बहुत ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है। इसीलिए बुद्धि बहुत कुशल है और यह बुद्धि हमेें जिस दिशा में ले जानी है उसी दिशा में हम ले जाते हैं इसीलिए बैटरी चार्ज और डिस्चार्ज होती है।
उसके बाद जब हम कर्म में आते हैं, तो कर्म आत्मा के ऊपर अपना प्रभाव छोड़ देता है जिसको कहते हैं संस्कार। और वो कर्म जब प्रभाव छोड़ देता है तो वो हमारा व्यक्तित्व बनाता है, पर्सनैलिटी क्रिएट करता है। इसीलिए आज संसार में इतने करोड़ों मनुष्य हैं, लेकिन एक की पर्सनैलिटी न मिले दूसरे से। हर व्यक्ति भिन्न है क्यों? क्योंकि हर एक के कर्म भिन्न हैं, हर एक के संस्कार भिन्न हैं।

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