हम सभी जब भी परमात्मा के साथ जुडऩा चाहते हैं या जुड़ते हैं तो कहते हैं मेडिटेशन सीखना है। और मेडिटेशन सीखकर अपने आप को वैसा बनाना है। परमात्मा के साथ जुडऩा है लेकिन भक्ति में भी कहा जाता है कि जब कभी कथा, पूजा, या किसी यज्ञ की शुरुआत होती है तो उसमें बहुत गहरे से सफाई होती है। सारा कुछ साफ करते हैं, क्लीन करते हैं, सभी नहाते-धोते हैं। उसके बाद यज्ञ की शुरुआत करने के लिए किसी ब्राह्मण को बुलाते हैं। मान्यता है कि उससे पवित्रता, शुद्धता आती है और उससे एक भावना बनती है।
यहाँ भी वही है अध्यात्म और भक्ति। दोनों जुदा-जुदा चीज़ें हैं, अलग-अलग चीज़ें हैं। भक्ति में ज्य़ादातर कभी-कभी वाले भी हैं, रोज़-रोज़ वाले भी हैं और महीने-महीने वाले भी हैं। इसका मतलब कभी चले गए तो कर लिया। लेकिन अध्यात्म में हर वक्त परिवर्तन की ज़रूरत है। तो परमात्मा से योग लगाना उसका सबसे बड़ा आधार है धारणायें। परमात्मा का आधार ही यही है कि जो जितना साफ है, स्वच्छ है, अन्दर से प्लस धारणाओं में भी साफ और स्वच्छ का मतलब कुछ लोगों का ये मत है कि आप सबका सबकुछ बहुत अच्छा है लेकिन पवित्रता की धारणा, खान-पान की शुद्धि ये सारी चीज़ें जब आप बताते हैं तो इतना करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन आपको बताते हुए बहुत ही हर्ष होता है कि परमात्मा से जुडऩे के लिए सबसे पहली धारणा खान-पान की शुद्धि की क्यों होनी चाहिए? क्योंकि हमारा पूरा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है। और पंच तत्वों में वैसे भी ये जो पूरी दुनिया है पाँच तत्वों से ही तो चल रही है। बाहरी पाँचों तत्वों को आप देखो। कैसे बिल्कुल ही प्रकृति तमोप्रधान हो गई है। वैसे हमारे मन की, शरीर की प्रकृति कैसी होगी अन्दर की? तो इस तमोप्रधान प्रकृति की वजह से, सात्विकता ना होने की वजह से हम स्टेबल नहीं हो पाते। या हम एक जगह स्थिर होकर बैठ नहीं पाते। हमारा हाथ, पैर, मुँह हमेशा चलता रहता, हिलता रहता। कभी लेज़ीनेस होती है,आलस्य आता है, आता ही है क्योंकि आजकल का खान-पान, रहन-सहन ऐसा हो गया है तो परमात्मा का ये भाव है कि जैसे ही खान-पान की शुद्धि होगी, सात्विकता होगी, बिना प्याज़, लहसुन के हम भोजन करते हैं तो उससे हमारे अन्दर एक स्टेबिलिटी(स्थिरता) आती है और उसका साइंटिफिक राज़ भी है कि जो प्याज़ और लहसुन ये दोनों चीज़ें हमारे अन्दर के एंटीऑक्सीडेंट हैं उनको मार देता है। जिससे हमारे अन्दर का ऑक्सीजन लेवल बढ़ जाता है। और उससे शरीर में बहुत सारे रोग पैदा हो जाते हैं।
अब हो सकता है डॉक्टर्स का अलग-अलग मत हो, लेकिन हमने तो यही देखा है। सबके विचार भिन्न हो सकते हैं,लेकिन ये हमारा अपना अनुभव है। जो अनुभव से बात की जाती है वो राइट मानी जाती है। अब दूसरों से हम कही-सुनी बातें सुनते हैं, वैसे भी सात्विकता के लिए कहा जाता है कि प्याज़, लहसुन इतना ज्य़ादा प्युअर होता तो मन्दिरों में भी हम चढ़ाते, लेकिन हम नवरात्रि के समय भी तो इसको अवॉइड करते हैं ना! तो इसलिए सात्विकता के आधार से 70प्रतिशत पवित्रता हमारे अन्दर आती है। शुद्धता आती है, स्टेबिलिटी आती है तो हमारा शरीर स्थिर होता है। और जब शरीर स्थिर होता है, साधन स्थिर होता है तो फिर मन भी बैठता है, मन भी लगता है। क्योंकि जब हमारा हाथ, पैर, मुँह दर्द करेगा तो ध्यान तो वहाँ जायेगा। हम और कुछ मनन-चिंतन कर ही नहीं पायेंगे। तो इसलिए सबसे पहले शुद्धता और पवित्रता की ज़रूरत होती है। इसलिए खान-पान की शुद्धि के बिना योग लगाना एक्सपेक्ट नहीं कर सकते, मतलब ऐसी उम्मीद नहीं रख सकते। अगर नहीं लगता है तो इसमें किसी का दोष नहीं है, हमारा ही दोष है। कई हैं जो बहुत दिन से कहते हैं कि मेडिटेशन सीख रहे हैं, योग कर रहे हैं लेकिन लग नहीं रहा है। क्यों नहीं लगता? क्योंकि कहीं न कहीं हमारी धारणाओं में कमी है। सबसे पहली धारणा में आता है खान-पान की शुद्धि। उसके बाद संयम,पवित्रता की धारणा। तो ये हमारी दो टाँगें हैं जो बहुत ही मजबूत तरीके से अपनाता है इनको, जो इसपर मजबूती के साथ खड़ा होता है वो ही परमात्मा के साथ खड़ा होता है। नहीं तो आसान नहीं है। भगवान साधारण नहीं है ना! इसलिए साधारण तरीके से उससे मिला भी नहीं जा सकता।
तो एक तो है हमको शुरू में दो, चार, दस दिन के लिए चलो कहा जाता है कि आप योग लगाओ, लेकिन जब तक हमारे अन्दर उस बात की कम्पलीट, सहज तरीके से वो धारणा नहीं आयेगी तब तक योग लगाना मुश्किल है। इसलिए शुद्धता और पवित्रता के बिना परमात्मा से जुडऩा आसान नहीं होगा। लेकिन सत्य यही है कि अगर सच में परमात्मा से जुडऩा है और शुद्धता के साथ नहीं रहेंगे, मन अगर साफ नहीं होगा, तन अगर साफ नहीं होगा तो हम वो अनुभव नहीं कर पायेंगे जो हम करना चाहते हैं। ऋषि-मुनि तपस्वी ज़रा आप सोचो शुद्ध और सात्विक होते थे तो उनके वायब्रेशन कितना दूर तक फैलते थे। लोग उनसे जुड़ते थे तो कितना अच्छा महसूस करते थे। जानवर, जंगली जानवर जो इतने हिंसक जानवर होते थे तो भी उनके पास आराम से आकर बैठते थे। तो हमें तो इस समय कहीं जंगल में भी नहीं जाना है, घर में अपने कम्फर्ट से बाहर निकलना है,वो खाना है जो परमात्मा चाहते हैं। अभी तक हम वो खा रहे थे जो हम चाहते थे। तो थोड़ा-सा परिवर्तन करें और परमात्मा से सम्बन्ध जोड़कर उससे शक्तियां महसूस करें।