मान लीजिए कि हम एक कारखाने के मालिक हैं, जो एक दिन में 50 हज़ार यूनिट्स का निर्माण करते हैं। यह बुद्धिमानी नहीं है कि उनमें से केवल एक अंश उपयोगी है, जबकि बाकी का कोई उपयोग नहीं। क्वांटिटी तो है लेकिन क्वालिटी कुछ यूनिट्स में ही है। इसका मतलब बाकी यूनिट्स का कोई उपयोग नहीं है। इसी तरह हमारा मन भी एक आंतरिक फैक्ट्री है। वह भी एक दिन में लगभग 30-40 हज़ार विचारों का सृजन करता है। प्रत्येक संकल्प, विचार में शब्दों या कार्यों के माध्यम से एक शक्तिशाली शक्ति में परिवर्तित होने की क्षमता होती है। इस आंतरिक कारखाने के मालिक के रूप में हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक विचार उपयोगी हो।
हमारा जीवन शब्दों और व्यवहारों में आने वाले संकल्प, विचारों की एक लम्बी श्रृंखला है। जिसमें कई तरह के क्वालिटी वाले विचार होते हैं। उसमें पॉजि़टिव भी हो सकते हैं और निगेटिव भी। अगर हम इंट्रोस्पेक्ट करें तो ज्य़ादातर विचार निगेटिव श्रेणी में पाये जायेंगे। बहुत थोड़ी मात्रा में उपयोगी व कार्य व्यवहार से सम्बंधित होंगे।
जिस तरह एक किसान बीज बोने से पहले उसकी गुणवत्ता की अच्छी तरह जाँच करता है, उसी प्रकार हमें अपने विचारों की जाँच करनी चाहिए कि कौन से बीज वाणी और कर्म के रूप में बदल देते हैं। जिसकी प्रचुर गुणवत्ता होती है, वे तो हमें शक्ति प्रदान करते हैं और हमारे जीवन में आनंद और खुशी की वृद्धि करते हैं। दूसरे शब्दों में हमें अपने विचार कारखाने का स्वामित्व लेने की आवश्यकता है।
पहला, हर विचार और संकल्प के चार प्रभाव होते हैं। यह आपकी भावना पैदा करता है, यह आपके शरीर की हर कोशिका को प्रभावित करता है। यह उस व्यक्ति तक पहुंचाता है जिसके बारे में आप सोचते हैं और यह वातावरण में विकीर्ण होता है। तो आपके विचार, आपकी भावनाएं, स्वास्थ्य, रिश्ते और पर्यावरण से जुड़े हैं। और ये सब आपके जीवन को प्रभावित करते हैं।
दूसरा, हर घंटे के बाद एक मिनट के लिए अपने विचारों का निरीक्षण करें और उन्हें चार श्रेणियों में वर्गीकृत करें। सकारात्मक विचार, जो शांति, प्रेम, खुशी और स्वीकृति के विचार हैं। नकारात्मक विचार, अहंकार, चोट, क्रोध, घृणा या ईष्र्या के होते हैं। आवश्यक विचार दिन प्रतिदिन की गतिविधियों से सम्बंधित होते हैं, चिंता, जलन, भय या चिंता की भावनाओं के बिना। व्यर्थ विचार भूत, भविष्य या अन्य लोगों के बारे में होते हैं। यह सब हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। जो नियंत्रण में नहीं, वो हमारे भीतर खेत में घासफूस, कांटे की तरह है। वे हमारे जीवन से आनंद और खुशियों को छीन लेते हैं।
स्वयं को सशक्त बनाने की पहली अवस्था है, सबके प्रति शुद्ध विचार और शुभ भावना उत्पन्न करना। इस तरह के विचार हमारे मन रूपी फैक्ट्री में सृजन करने से हम अपने आप को तरोताज़ा महसूस करते हैं। मन को धीमा करना, कई व्यर्थ विचारों की भीड़ से मुक्त रहना और अपने अवचेतन मन से सोचने के नए तरीके विकसित करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान का अध्ययन करना। हर संकल्प, विचार आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा का उत्पाद बन जाता है। क्योंकि जानकारी आपके विचारों का सबसे बड़ा श्रोत है। तो हे मालिक, आप अपने ही फैक्ट्री के मालिक बनें, ना कि छोटा-सा वर्कर। हमें इस तरह से अपने आप को सशक्त बनाकर आनंद की ओर आगे बढऩा है।