नीति में प्रीति रखो। नियम-संयम को जीवन का श्रृंगार समझो। मर्यादायें हमारे संगमयुग का ताज हैं। जितना उसमें रहो उतना सेफ रहेंगे।
बुद्धि के अभिमान का त्याग, सेवा का त्याग, साथियों का त्याग, अंदर से हुआ पड़ा हो। लेकिन कोई त्यागी माना वैरागी नहीं है। हम आपस में इतने प्यारे भी हैं। बाबा ने कहा है कि हम अकेले आये, अकेले जाना है…लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अकेले मौज करें। यह भी ठीक नहीं। परिवार भी साथ में है। बाबा का बच्चों से प्यार कितना है। कितना प्यार से बाबा आते, हम बच्चों क ो सजाते, हम बच्चों का भी फिर इतना ही बाबा से प्यार है, इसमें बाबा सर्टिफिकेट देते हैं। मुरली से, सेवा से तो नम्बरवन प्यार है, लेकिन धारणाओं से भी नम्बरवन प्यार हो। सामने देखने वाले हमारी धारणाओं को देखते हैं। तो धारणा भी नम्बरवन चाहिए। हम सभी की पहली धारणा है-पावन बनना। काम महाशत्रु पर विजय प्राप्त करना। बाबा के सिवाए कोई यह दावा नहीं करता कि मैं आया हँू तुम बच्चों को पावन बनाने। अगर इसी सब्जेक्ट में आप नम्बरवन विजयी हो तो आप सबसे महान हो। इसके लिए दृष्टि, वृत्ति, वायब्रेशन, व्यवहार सबमें बिल्कुल पावन बनो। ऐसे पावन रहो
जो दूसरों को भी पावन बनने की प्रेरणा मिल जाए। इसी में ही माया आती। इसी माया को जीतना ही मायाजीत बनना है। कई बार हम आप सबका दिल से यह गुण गाती कि आपने एक बाबा से वायदा रखा है कि मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई। दिल में बाबा को बसाया है। परंतु जब कोई कहाँ थोड़ा भी किसी की अटैचमेंट में आते तो 5 मंजि़ल से नीचे गिर पड़ते। जब कोई 5वीं मंजि़ल से गिरता है तो रहम पड़ता, तरस पड़ता है, इसके लिए मर्यादाओं को सदा साथ रखो। बाबा ने हम सबको ज्ञान दिया है कि हम आत्मायें भाई-भाई हैं। परंतु यह नॉलेज है कि आत्मा भाई है, दृष्टि भाई की हो लेकिन व्यवहार भाई-बहन का हो। ऐसे नहीं बहन को कहो- आओ भाई जी। व्यवहार में ईश्वरीय मर्यादाओं का नियम रखना पड़ता। अगर नियमों में पक्के रहो तो कभी 5वीं मंजि़ल से नहीं गिरेंगे। अगर कोई गिरता है तो पहले मर्यादा का किसी-न-किसी प्रकार से उल्लंघन करता है। वैसे तो बाबा ने हमें बहुत रमणीक गुह्य ज्ञान दिया है, हम उसी में मस्त रहें। लेकिन यह परिवार है, परिवार में हम सभी मिलकर रहते हैं, यह क्लास है। क्लास में एक तरफ भाई, दूसरी तरफ बहनें बैठती, यह भी मर्यादा है। बाबा कहते-आपस में रूहरिहान करो तो यह रूहरिहान क्लास के लिए दी गई है। ऐसे नहीं हम अकेले में बैठकर रूहरिहान करें। माया देखती रहती है कि कहाँ से खिड़की खुली हुई है, उसी जगह से वह प्रवेश करती है। तो माया को आने का मौका न दो क्योंकि अकेले में बैठकर रूहरिहान करेंगे तो थोड़ी-थोड़ी दिल की लेन-देन शुरू हो जायेगी। ऐसे में माया अंदर घुस जायेगी। यह है माया का दरवाज़ा इसलिए नीति में प्रीति रखो। नियम-संयम को जीवन का श्रृंगार समझो। मर्यादायें हमारे संगमयुग का ताज हैं। जितना उसमें रहो उतना सेफ रहेंगे। बाबा ने कभी एक साथ टेबल पर बैठकर भाइयों को खाने की छुट्टी नहीं दी, टेबल पर हँसी-मज़ाक करने की छुट्टी नहीं दी। यह छोटी-छोटी बातें भी ध्यान पर रखना बहुत ज़रूरी है। भल हम आत्मा भाई-भाई हैं, नॉलेज है हम बिन्दु हैं लेकिन नॉलेज के साथ मर्यादायें भी रखना ज़रूरी है।
अपनी स्व-स्थिति की उन्नति का आधार है ड्रामा। ड्रामा कहा माना फुलस्टॉप आया। एक सेकण्ड बीता फुलस्टॉप। यह ऐसी नॉलेज है जो अपने को सदा निश्चिंत रख सकते हैं। ड्रामा की नॉलेज ही हमें निर्मोही बनाती है। हर एक का अपना-अपना पार्ट है, इसलिए किसी के पार्ट से फीलिंग नहीं आती। हरेक की अपनी विशेषता है, अपनी खूबी है। वह गुण देखो, विशेषता देखो तो संस्कार नहीं टकरायेंगे। जो कई बार थोड़ा संस्कारों का टक्कर होता, बुद्धि डिस्टर्ब होती—ड्रामा का फुलस्टॉप लगाकर अपनी बुद्धि को डिस्टर्ब होने मत दो।