त्रासदी में तत्वों से पार ले जाता है योग

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आज मानव मन की दशा किसी से छुपी हुई नहीं है। हर कोई आज पूरी तरह से त्रस्त(भयभीत) है, तनाव ग्रस्त है। अगर कोई कर्म कर रहा है तो उसमें कोई न कोई लोभ है, इच्छायें हैं, लालसा है, विलासा है जो हमारे पाप कर्मों के खाते को और बढ़ाता जा रहा है। पुण्य तो सोच ही नहीं सकता कि आज मानव पुण्य का काम कर रहे हैं। सो पुण्य क्या है? पुण्य सिर्फ ये है कि जितना ज्य़ादा से ज्य़ादा हम इन तत्वों के साथ रहते हुए, इन तत्वों के बीच में रहकर पूरे विश्व की आत्माओं को वो दें जो उनको इस समय ज़रूरत है, तो तत्व भी सतोप्रधान होंगे। तत्वों में बल आयेगा और हम इन तत्वों से कभी आहत नहीं होंगे। उदाहरण के लिए मैं आपको एक बात कहना चाहूँगा कि जैसे कहा जाता है कि अगर कोई भी बहुत करीबी आपका हो और कोई भी चीज़ आपको उसे देनी हो तो आप ज्य़ादातर उसको वो चीज़ें देते हैं जो चीज़ें उसके लायक हैं, लेकिन वो व्यक्ति बार-बार आपको उस चीज़ को खराब करके दे तो एक समय ऐसा आयेगा कि आप चीज़ तो देंगे लेकिन वो देंगे जो पहले से खराब हुई पड़ी है, या दिखा देंगे। अच्छी चीज़ अपने लिए रखेंगे।
ऐसे ही प्रकृति है। पूरे दिन, पूरी रात जो हमारी सोच और संकल्प चलते हैं उसमें हमारी सोच और संकल्पों में सिर्फ और सिर्फ काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार की बातें ही हैं, और कुछ भी नहीं हैं। यही पूरे विश्व में वायब्रेट हो रहा है। पूरे विश्व की आत्माओं को यही बातें जा रही हैं। और वही हमको रिवर्ट(लौटना) होकर मिल भी रही हैं। प्रकृति ने हमको ये एक बहुत सुन्दर शरीर दिया जब हमने बहुत अच्छा कर्म किया था। अब धीरे-धीरे हम प्रकृति के तत्वों को डैमेज कर-कर के वो शरीर लौटाते चले गये, तो आज हमको वैसा ही शरीर प्राप्त हो रहा है जो हमने प्रकृति को लौटाया है। इसलिए अगर प्रकृति को मुझे सच में अच्छा देना है तो सबसे पहले उन तत्वों को उन सभी को वो चीज़ें हमको प्रदान करनी पड़ेंगी जो उनके लिए सुखदाई हो। प्रकृति का हर तत्व हमको कितना सुख देता है बिना टैक्स लिए सुख देता है। हवा, पानी, अग्नि, धरती और आकाश। बिना शर्त, बिना कंडीशन हमको सुख देते हैं। इस दुनिया में बिना कंडीशन जो हमको सुख देता है, सेल्फलेस सर्विस करता है उसकी रक्षा हम करते हैं। ये सबसे अच्छा उदाहरण है हमारे जीवन के लिए कि देखो हम आपके बारे में कितना सोचते हैं। पानी के बारे में कितना सोचते हैं। जल को संरक्षण देने के बारे में सोचते हैं, हवा को शुद्ध करने के बारे में सोचते हैं। सोचते हैं ना! क्यों सोचते हैं, क्योंकि ये नि:स्वार्थ भाव से हमारी सेवा करते हैं। लेकिन जैसे ही हम सभी स्वार्थी हुए तो और-और चीज़ों पर हमारा ध्यान चला गया प्रकृति को छोड़कर, लेकिन आपको पता हो कि बिना प्रकृति के तो हमारा शरीर नहीं रहेगा ना! इसलिए प्रकृति की तरफ से प्राकृतिक आपदायें हमको डिस्टर्ब कर रही हैं।
इसलिए जो योग ब्रह्माकुमारीज़ में सिखाया जाता है उसका सबसे बड़ा रोल यही है कि जब हम अच्छे सोच और संकल्प में जीवन जीना शुरु करते हैं तो ऑटोमेटिकली हमारे अन्दर से जो थॉट हमारे ब्रेन को जाते हैं, हमारे स्पाइन कॉर्ड को जाते हैं, हमारे पूरे बॉडी पार्टस को जो भी चीज़ें जाती हैं उससे वायब्रेट होकर चारों तरफ वही तरंगे वायब्रेट होकर फैल जाती हैं। और उससे सिर्फ वही चीज़ें चारों तरफ जाती हैं, जो लोग उससे मिलते हैं वो सारी चीज़ें उनको मिल भी जाती हैं। तो आप सोचो प्रकृति को हम नैचुरल बिना किसी एफर्ट(प्रयत्न) के एक छोटा-सा अभ्यास करके उसको बहुत कुछ प्रदान कर सकते हैं। तो क्यों न हम प्रकृति को इस तरह से सतोप्रधान बनायें। अच्छी सोच और अच्छे सकंल्पों के लिए एक बार परमात्मा से शक्ति लेकर जिस प्रकृति ने आपको इतना सुख दिया है, इतना अच्छा जीवन दिया है, इतने समय तक इतना सुन्दर वस्त्र दिया है वो आप कैसा लौटा रहे हैं। इसलिए आज शरीर अपंग पैदा हो रहे हैं क्योंकि हमने शरीर उसको ऐसा लौटाया है।
अब समय आ गया है कि प्रकृति को सही चीज़ दें ताकि जब ज़रूरत पड़े या हमारा जीवन नया मिले तो हमको प्रकृति की तरफ से तोहफे के रूप में अच्छा शरीर मिले। वो शरीर जिस शरीर के अन्दर कोई रोग न हो, निरोगी काया हो।
तन इतना सुन्दर हो कि उसमें कोई रोग नहीं है तभी तो तन को आपको चलाने में आसानी होगी। इसका एक मात्र तरीका है प्रकृति को अच्छी बातें देना, अच्छे संकल्प देना, अपने शरीर की प्रकृति को बैलेन्स देना, इसको वो खिलाना जो सात्विकता हो, जो प्रकृति को पसंद है, ना कि मांसाहार, ऐसी चीज़ें जो शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं। वो अगर हम देंगे तो त्रासदी हम देख रहे हैं। इसलिए इसका उदाहरण जो सामने दिख रहा है उससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। चलो हम जाग जाते हैं और अपने आपको ऐसे समय में, तत्वों से पार जाने के लिए परमात्मा के साथ जुड़कर इन तत्वों को सतोप्रधान बनाने की सेवा करते हैं और अच्छे शरीरों का निर्माण करते हैं।

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