नवरात्रि में नया बनकर नये युग में प्रवेश करें …

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नवरात्रि का आध्यात्मिक अर्थ है नव या नए युग में प्रवेश करने से ठीक पहले की ऐसी घोर अंधियारी रात्रि, जिसमें क्रशिवञ्ज अवतरित होकर मनुष्यात्माओं के पतित अवचेतन मन में कुसंस्कार को बदल ज्ञान अमृत द्वारा उद्धार करना। परमात्मा हमारी पुरानी स्मृतियों को परवर्तित कर नये युग की तैयारी करने के समय के रूप में मनायें।

भारत में परंपरागत तरीके से नवरात्रि मनायी जाती है। नवरात्रि का भावनात्मक अर्थ है दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा-अर्चना और नवरात्रि का आध्यात्मिक अर्थ है नव या नए युग में प्रवेश करने से ठीक पहले की ऐसी घोर अंधियारी रात्रि, जिसमें क्रशिवञ्ज अवतरित होकर मनुष्यात्माओं के पतित अवचेतन मन(कुसंस्कार) का ज्ञान अमृत द्वारा तरण(उद्धार) कर देते हैं। अवतरण अर्थात् अवचेतन मन का तरण। ऐसी तरित-आत्माएं फिर चैतन्य देवियों के रूप में प्रत्यक्ष होकर कलियुगी मनुष्यों का उद्धार करती हैं। इस प्रकार पहले शिवरात्रि होती है, फिर नवरात्रि और फिर नवयुग आता है। महाविनाश से यह वसुन्धरा जलमग्न होकर कल्पांत में अद्भुत स्नान करती है, फिर स्वच्छ होकर नौ लाख देवी-देवताओं के रूप में नौलखा हार धारण करती है।

  1. नवरात्रि का पहला दिन दुर्गा देवी के रूप में मनाया जाता है। वह क्रशैलपुत्रीञ्ज के नाम से पूजी जाती है। बताया जाता है कि वह पर्वतराज हिमालय की पुत्री थी। इसलिए पर्वत की पुत्री ‘पार्वती या शैलपुत्री’ के नाम से शंकर की पत्नी बनी। दुर्गा को शिव-शक्ति कहा जाता है। हाथ में माला भी दिखाते हैं। माला परमात्मा के याद का प्रतीक है। जब परमात्मा को याद करेंगे तो जीवन में सामना करने की शक्ति, निर्णय करने, सहन करने, सहयोग करने इत्यादि अष्ट शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसलिए दुर्गा को अष्ट भुजा दिखाते हैं।
  2. नवरात्रि का दूसरा दिन देवी ‘ब्रह्मचारिणी’ का है, जिसका अर्थ है– तप का आचरण करने वाली। तप का आधार पवित्रता होता है, जिसके लिए जीवन में ब्रह्मचर्य की धारणा करना आवश्यक है। इस देवी के दाहिने हाथ में जप करने की माला और बाएं हाथ में कमण्डल दिखाया जाता है।
  3. नवरात्रि के तीसरे दिन देवी क्रचंद्रघण्टाञ्ज की पूजा की जाती है पुराणों की मान्यता है कि असुरों के प्रभाव से देवता काफी दीन-हीन तथा दु:खी हो गए, तब देवी की आराधना करने लगे। फलस्वरूप देवी क्रचंद्रघण्टाञ्ज ने प्रकट होकर असुरों का संहार करके देवताओं को संकट से मुक्त किया।

इस देवी के मस्तक पर घण्टे के आकार का अद्र्धचंद्र, 10 हाथों में खड्ग, शस्त्र, बाण इत्यादि धारण किये दिखाये जाते हैं। चंद्रघण्टा देवी की सवारी शक्ति का प्रतीक सिंह है जिसका अर्थ है कि शक्तियां(देवियां) अष्ट शक्तियों के आधार से शासन करती हैं।

  1. नवरात्रि के चौथे दिन देवी क्रकुष्माण्डाञ्ज के रूप में पूजा की जाती है। बताया जाता है कि यह खून पीने वाली देवी है। कालिका पुराण में देवी की पूजा में पशु बलि का विधान है। इसी मान्यता के आधार पर देवियों के स्थान पर बलि-प्रथा आज भी प्रचलित है। वास्तव में, हमारे अंदर जो भी विकारी स्वभाव और संस्कार हैं उस पर विकराल रूप धारण करके अर्थात् दृढ़ प्रतिज्ञा करके मुक्ति पाना है।
  2. नवरात्रि के पाँचवें दिन देवी क्रस्कन्द माताञ्ज के रूप में पूजा की जाती है। कहते हैं कि यह ज्ञान देने वाली देवी है। इनकी पूजा करने से ही मनुष्य ज्ञानी बनता है। यह भी बताया गया है कि स्कन्द माता की पूजा ब्रह्मा, विष्णु, शंकर समेत यक्ष, किन्नरों और दैत्यों ने भी की है।
  3. नवरात्रि के छठवें दिन देवी क्रकात्यायनीञ्ज के रूप में पूजा की जाती है। क्रकतञ्ज एक प्रसिद्ध महर्षि बताये जाते हैं जिनके पुत्र क्रकात्यञ्ज ऋषि थे। इनके ही गोत्र से महर्षि क्रकात्यायनञ्ज उत्पन्न हुआ। महिषासुर दानव का वध जिस देवी ने किया था, उस देवी का प्रथम पूजन महर्षि कात्यायन ने किया था और इस कारण ही वह देवी कात्यायनी कहलाई। इनका वाहन सिंह दिखाया जाता है।
  4. नवरात्रि के सातवें दिन देवी ‘कालरात्रि’ के रूप में पूजा की जाती है। इनके शरीर का रंग काला और सिर के बाल रौद्र रूप में बिखरे हुए दिखाये जाते हैं। इनका वाहन गधे को दिखाया गया है जिसका अर्थ है कि कलियुग में एक सामान्य गृहस्थ की हालत प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए गधे जैसी हो जाती है और जब वह गधा अपने मन-बुद्धि में कालरात्रि जैसी देवी को बिठा लेता है तो देवी उस गृहस्थ को परिस्थितियों से पार निकाल ले जाती है।
  5. नवरात्रि के आठवें दिन देवी ‘महागौरी’ के रूप में पूजा की जाती है। कहते हैं कि कन्या रूप में यह बिल्कुल काली थी। शंकर से शादी करने हेतु अपने गौरवर्ण के लिए ब्रह्मा की पूजा की, तब ब्रह्मा

ने प्रसन्न होकर उसे काली से गोरी बना दिया। इसका आध्यात्मिक रहस्य यही है कि एक आत्मा को परमात्मा से सम्बंध जोडऩे के लिए खुद के सभी कालेपन अर्थात् विकार और बुराइयों को समाप्त करना ही होता है। एक सच्चे और साफ मन को ही परमात्मा स्वीकार करते हैं अर्थात् उसे अपना बना लेते हैं। इस देवी का वाहन वृषभ बैल दिखाया जाता है जो कि धर्म का प्रतीक है।

  1. नवरात्रि के नौवें दिन देवी ‘सिद्धिदात्री’के रूप में पूजा की जाती है। कहा गया है कि यह सिद्धिदात्री वह शक्ति है जो विश्व का कल्याण करती है। जगत का कष्ट दूर कर अपने भक्तजनों को मोक्ष प्रदान करती है।
    इस तरह नौ देवियों के आध्यात्मिक रहस्यों को धारण करना ही नवरात्रि पर्व मनाना है। वर्तमान समय स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा इस कलियुग के घोर अंधकार में माताओं-कन्याओं द्वारा सभी को ज्ञान देकर फिर से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। परमात्मा द्वारा दिए गए इस ज्ञान को धारण कर अब हम ऐसी नवरात्रि मनायें कि जो अपने अंदर महिषासुर, शुंभ-निशुंभ और मधु-कैटभ जैसे विकार हैं, वह खत्म हो जायें, मर जायें। तो हे आत्माओं! अब जागो, केवल नवरात्रि का जागरण ही नहीं करो बल्कि इस अज्ञान नींद से भी जागो। यही सच्ची-सच्ची नवरात्रि मनाना और जागरण करना है। ऐसी नवरात्रि की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।

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