करुणा और दया में अपने को भी करें शामिल

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भारत की परंपरा में बच्चा जब पढ़-लिखकर योग्य हो जाता है, तब वो अपने पिता के व्यवसाय को सम्भालता है। एक तरह से मानो कि वो पिता का स्थान ग्रहण कर लेता है और पिता की जो धरोहर है उसको आगे बढ़ाने का मुख्य कारक बनता है। ठीक इसी तरह हम सभी भी हमारे प्राणप्रिय परमपिता परमात्मा के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए निमित्त हैं। करीब आठ-नौ दशक पूर्व आरंभ किये गये परमात्मा के विश्व परिवर्तन के कार्य को हमने उनके सानिध्य में रहकर सीखा है, समझा है और उस कार्य को सम्पन्न करने की योग्यता भी प्राप्त की है। हम भाग्यशाली हैं कि इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए वे सदा हमारे साथ हैं और सदा समयांतर हमें गाइड भी कर रहे हैं। यह बड़ी ही खुशी की बात है हमारे लिए। आज चारों ओर ऐसा माहौल है जहाँ मुसीबत, मुश्किलातों के पहाड़ हैं, विघ्नों का अंबार है, किंतु परमात्मा हमारे साथ होने के कारण वो हमारे उमंग-उत्साह को कभी कम होने नहीं देता। हम भी एक बल, एक भरोसे के सहारे कार्य की सम्पन्नता की ओर अग्रसर हैं।
आज विश्व के हर कोने में उथल-पुथल, विनाश, लड़ाई एवं दु:ख के पहाड़ मनुष्य के सामने चुनौतियों के रूप में हैं। ऐसे में हम सबकी जि़म्मेवारी व उत्तरदायित्य है कि हम सब दुखियों का, नि:सहाय का सहारा बनें। इसी उद्देश्य को सामने रखते हुए ब्रह्माकुमारी संस्थान की वार्षिक मीटिंग में इस वर्ष को क्रकरुणा एवं दया का वर्षञ्ज के रूप में मनाने का निश्चय किया गया है। इस अम्ब्रेला थीम के अंतर्गत देश तथा विदेश के हरेक मनुष्य आत्माओं को सुख-शांति की अंचली देना है। आज चारों ओर हर कोई लेने की आश से खड़ा है क्योंकि किसी का तो इस महामारी में जीवन ही अस्त-व्यस्त हो गया, किसी ने अपनों को खोया तो नि:सहाय हो गया। मंदी के दौर ने मनुष्य की बुद्धि का ही दिवाला निकाल दिया। वो समझ नहीं पा रहा कि क्या करे, कैसे करे, कैसे जीये! इस महामारी से उबरने की कोशिश कर ही रहे थे कि एक ओर वैश्विक लड़ाई ने मनुष्य की कमर ही तोड़ दी।
अब हम करुणा और दया वर्ष के सम्बंध में समझने की कोशिश करते हैं कि इस भगीरथ कार्य को कौन कर सकता है व कैसे कर सकता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए कौन योग्य है, क्या पात्रता होनी चाहिए, इसके बारे में समझते हैं। दु:खी, अशांत और असंतुलन का मुख्य कारण है मनुष्य का भटकता मन। अब जबकि हमें परमात्मा के कार्य की जि़म्मेवारी पूर्ण करनी है, तब हमें मुख्यत: चार बातें अपने जीवन से पूर्णत: समाप्त कर देनी ही होंगी। अगर ये चार बातें होंगी तो हम किसी पर भी करुणा व दया नहीं कर पायेंगे। वो चार बातें हैं- अलबेलापन, ईष्र्या, घृणा और नफरत। सबसे पहले हम अलबेलापन क्या है उसको सूक्ष्मता से समझने की कोशिश करते हैं। साधना के पथ पर चलते हुए अपने आप में झांककर हमें इसे जड़-मूल से समाप्त कर देना होगा। अलबेलापन हमारे पुरुषार्थ में सबसे बड़ा बाधक है। जैसे कि हम एक-दूसरे को देखते हैं, उसमें कोई कमी है, उसको ग्रहण कर लेते हैं। कई बार तो हम आश्चर्य से देखते हैं कि ये इतने साल से ज्ञान में चल रहे हैं, प्रभु-पालना में पल रहे हैं, फिर भी ये क्रोध करते हैं! तो हमने तो अभी ही ज्ञान मार्ग अपनाया है, हम कौन-सी खेत की मूली हैं! जब अभी तक वे भी नहीं कर पाये, तो हम भी कभी न कभी कर लेंगे। समय रहते हम भी सम्पन्न हो जायेंगे। लेकिन परमात्मा ने हमें पहले ही बता दिया है क्रसी फादर ऑनली, न कि ब्रदर-सिस्टरञ्ज। देखो, अगर हम इस आज्ञा का पालन नहीं करते तो हम प्रभु प्यार से वंचित हो जाते हैं और हम दूसरों को मदद करने व देने में असमर्थ हो जाते हैं।
इसी तरह अगर हमारे में ईष्र्या है तो भी हम किसी को देने में समर्थ नहीं होंगे। क्योंकि ईष्र्या के बारे में आप सभी जानते ही हैं कि ईष्र्या वो चीज़ है जो प्रभु परिवार में भी कोई उनसे आगे बढ़ता है तो उसे देख नहीं सकते। और यही सोच उनके जीवन को दीमक की तरह खोखला कर देती है। इसी तरह घृणा वाला मनुष्य कैसे किसी पर रहम कर सकेगा! घृणा व नफरत वो चीज़ है जो यदि किसी ने किसी मनुष्य के बारे में सुना है कि फलाने व्यक्ति का चाल-चरित्र ठीक नहीं है, धोखेबाज़ है, दु:खदायी है, झगड़ालू है, तो उसे देखते ही उसके मन में घृणा पैदा होती है, नफरत पैदा होती है। तो जहाँ घृणा व नफरत मन में है, तो वो भला शुभ-भावना, शुभ-कामना दूसरों के प्रति कैसे कर पायेगा! तो ये चारों चीज़ें यदि अभी भी हमारे जीवन में हैं तो क्रपरमात्म-सेवा योजना- करूणा और दयाञ्ज को सम्पन्न करने में हम कैसे सहयोगी बन सकेंगे! क्योंकि समय बहुत नाज़ुक भी है और बहुत थोड़ा भी। ऐसे वक्त पर हमें स्वयं को इन चीज़ों से बचाना भी है और परमात्मा द्वारा प्राप्त सर्वशक्तियों एवं सर्व खज़ानों से सम्पन्न भी बनना है। बिना सम्पन्नता के हम देने के अधिकारी नहीं हो सकेंगे। तो आइये, हम अपने आप को साक्षी होकर देखें, चेक करें, तीव्रता से स्वयं को चेंज करें और परमात्मा की आशाओं और उम्मीदों को पूरा करें।

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