बाबा ने हमें सफेद डे्रस पहनना सीखा दिया, प्युरिटी में रहना सीखा दिया। प्युरिटी में रहना ही हमारे लिए मॉडर्न रहना है। बाबा ने पुरानी दुनिया के मॉडर्न से निकाल दिया। हम तो स्वर्ग के मॉडर्न उसके मॉडल बन रहे हैं।
अपनी स्थिति अडोल हो, व्यवहार कुशल हो। आपस में बहुत स्वीट व्यवहार रखो लेकिन किसी की स्वीटनेस से प्रभावित न हो जाओ। यहाँ पर सेफ्टी चाहिए। यह बड़ा स्वीट है, नहीं। ऐसे नहीं यह स्वीट है तो आप मक्खी बन जाओ। मधु भले बनो पर मक्खी नहीं बनो। अपने को भी स्वीट बनाओ। बाबा ने कोई हठयोग नहीं दिया है कि आपस में नहीं हँसों, हँसों, बहलो, खुशी में नाचो परंतु पर्सनल किसी के साथ हँसना,बहलना यह रॉन्ग है। मुझे पर्सनल सर्विस चाहिए, सेंटर चाहिए, साथी चाहिए… यह रॉन्ग है। परिवार से इंडिपेेंडेंट नहीं रहो। हम सब एक-दूसरे पर डिपेंड हैं। कोई-कोई कहते हैं हम तो मॉडर्न हैं। हम मॉर्डन रहना चाहते हैं लेकिन ब्र.कु. माना बैकुण्ठ के वासी। वह मॉडर्न नहीं रह सकते। मॉडर्न तो रावण के हैं। बाबा ने हमें सफेद डे्रस पहनना सीखा दिया, प्युरिटी में रहना सीखा दिया। प्युरिटी में रहना ही हमारे लिए मॉडर्न रहना है। बाबा ने पुरानी दुनिया के मॉडर्न से निकाल दिया। हम तो स्वर्ग के मॉडर्न उसके मॉडल बन रहे हैं। किसी भी प्रकार का शौक है— चाहे पार्टियों में जाने का, चाहे दूर-दूर जाकर पिकनिक आदि करने का… यह सब शौक योग की स्थिति से नीचे ले आयेंगे। यह योग की स्थिति में बाधक हैं। जितनी मर्यादा रखो उतना अच्छा है। आज माया नहीं है, कल किसी भी घड़ी माया आ सकती है। इसलिए एक-दूसरे से प्राइवेट पत्र व्यवहार न रखो। प्राइवेट लेन-देन न करो। यह सब धारणायें बनाओ। नियम-संयम ही जीवन का आदर्श है। जितना प्यारे बनो उतना न्यारे बनो। जितना नियमों का पालन करेंगे उतना स्वधर्म की स्थिति में अच्छे रहेंगे।
हम सबका एक ही लक्ष्य है, हम एक परिवार के हैं। प्रेम के व्यवहार को जानते हैं, यहाँ न कोई गुरू की गद्दी है,न कोई शिष्य है। किसी भी स्थान पर किसी का नाम नहीं है। न प्रॉपर्टी का झगड़ा है, न कुर्सी का झगड़ा है। हम सबका टाइटिल है ब्र.कु.राजयोगी। जब कभी थोड़ा संस्कारों का टक्कर होता-तो उसके दो कारण होते-एक तो अपने को सदा राइट समझते, और दूसरे को रॉन्ग समझ लेेते। जब ऐसी भावना दिल में पैदा होती है तब टक्कर होती है। जैसे बाबा ने गुरु गद्दी नहीं दिया, ऐसे किसी को बॉस नहीं बनाया। कोई बड़ा कोई छोटा नहीं। व्यवहार में सिर्फ निमित्त मात्र रहते। जब स्व का भाव छोड़ देते, मधुर बोल नहीं बोलते, थोड़ा कडुवा बोल निकलता तब टक्कर शुरू होती है। क्योंकि कटुवचन दूसरे को कांटे की तरह पिंच होता है। इसके लिए स्व के भाव में रहो, स्व के अभिमान में नहीं आओ। दूरादेशी बनो लेकिन दिमाग का नशा नहीं रखो, स्वार्थी नहीं बनो। जब इन्हीं बातों की कमी होती है तब एक-दूसरे का संस्कार आपस में टकराता है। इसके लिए बहुत सहज विधि बाबा ने सुनाई है क्रक्रपहले आपञ्जञ्ज का पाठ पक्का रखो। यह एक ऐसी विधि है जिससे सब अपने बन जाते हैं। पहले मैं- यह दूर करता, पहले आप- यह पास ले आता। दूसरा जैसे बाबा जो कहे हाँ जी करते, ऐेसे एक -दूसरे को भी हाँ जी करो। ना कभी नहीं करो। ओ.के. कहते चलो तो सब मन ओ.के. हो जायेगा। हरेक का उत्साह बढ़ाओ। उत्साह दूसरे के मन को प्रफुल्लित करता है। इसके लिए अपना सब कुछ त्याग चाहिए। बाबा ने हमें अष्ट शक्तियाँ दी हैं, उसमें सहनशीलता की शक्ति भी विशेष है। कोई भी बड़ा बना है तो उसने दुनिया की अनेक बातों को सहन किया है। तो हम भी जब एक-दूसरे की छोटी-छोटी बातों को सहन करेंगे तब प्यारे बनेंगे।
एक बात की सबसे रिक्वेस्ट करती हँू- ईश्वरीय मर्यादायें हम सबका धर्म है, इन्हें कभी भी लूज़ नहीं करो। माया को कहीं से भी घुसने न दो। हम मन मौजी नहीं हैं, बाबा के मौजी हैं। इसलिए मन की मौजों को त्याग दो। और बाबा के अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलो।