जब कुछ नहीं… हमारा तो !

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इस दुनिया में कहा जाता है कि दु:ख की पहली सीढ़ी अपने आपको शरीर समझना या मेरा कहना है। इस दुनिया में जो कुछ भी मेरा है उसके साथ दु:ख जुड़ा हुआ है। तो जब मेरा है ही नहीं कुछ भी तो उसको मेरा मानना माना उसके साथ गहराई से जुड़ जाना, और जुडऩे के बाद दु:ख पक्का है। हम सभी ज्ञानी, समझदार और अवेअरनेस में रहने वाली सभी आत्माओं को, जो बुद्धिमान हैं, बुद्धिजीवी हैं सभी को पता है लेकिन इसकी हमेशा कॉन्शियसनेस नहीं रहती। ये कॉन्शियसनेस न रहने के कारण हम हर वक्त दु:ख फील करते हैं। मतलब जीना बड़ा आसान है। कहावत भी है कि ख्यालों को बदलने से भी सूरज निकलता है, या यूं कहें कि ख्यालों को बदलने से नया दिन निकलता है। तो हर दिन हम चाहें तो ख्याल बदलें तो एक नई शुरुआत या नया सुख हम क्रिऐट कर सकते हैं। तो दु:ख हमारी क्रियेशन है या ना समझी हमारी क्रिएशन है? हम सबको सबकुछ समझ में आ रहा है कि इस दुनिया में हमारा कुछ भी नहीं है कुछ भी माना कुछ भी नहीं है। सबकुछ छोड़कर जाना है। जब तक हमारा कुछ-कुछ है तब तक हमको दु:ख है। और ये जो मेरापन है इसकी हर पल हर क्षण अवेअरनेस, जागृति हो तो शायद इससे छुटकारा भी मिले। लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर बाद हमको ये सारी चीज़ें भूल जाती हैं, तो इसका अभ्यास इतना आवश्यक है, इतना ज़रूरी है कि इसका मतलब इस ब्रह्माण्ड का सबकुछ ऊर्जा है। सबको पता है ऊर्जा न तो पैदा होती है, न ही उसको नष्ट किया जा सकता है।
इसका मतलब जो कुछ भी है आज-कल में परिवर्तित हो जाता है फिर हम उसको यूज़ कर लेते हैं। 30-40-50 साल यूज़ करते हैं, फिर चले जाते हैं, फिर पैदा होते हैं फिर यूज़ करते हैं, फिर चले जाते हैं। तो ये आने-जाने का सिलसिला सबका बरकरार बना रहता है। लेकिन दु:ख से छूटने एक आधार, एक कारण हमको मिल जाये तो सभी जीने लग जायें। तो हम सभी को एक समझदारी डेवलप करनी चाहिए। अपने अन्दर इसकी पूर्ण जागृति चाहिए कि सबकुछ जो कुछ हमारे साथ, मेरे के साथ जुड़ा हुआ है, जब तक उसमें थोड़ा भी मेरापन है चाहे वो घड़ी है, चाहे वो कोई छोटा पेन है, किताब है कोई भी चीज़ है जिसको अगर थोड़ा भी कुछ हो जाये तो तकलीफ होती है। माना कितना मेरापन है। तो दु:ख तो हमने एक, या तो कहें कि हम दु:ख को लेने को आतुर हैं। जानबूझ कर हम दु:ख लेना ही चाहते हैं, इससे निकलना ही नहीं चाहते। आधार पता है फिर भी हम नहीं कर पा रहे, तो इसे कहते हैं सोना।
पूजा-पाठ का जो एक्ज़ेक्ट मतलब है, पूजा-पाठ का जो मतलब लोग समझते हैं वो है पूरी तरह से जागकर अपने आपको इस जागृति में जिलाना कि मैं इस शरीर से अलग हूँ। मतलब मेरापन का एक कितना गहरा रहस्य है। ये मेरापन ही जीवन का वो जाल है जिससे हमको हरपल दु:ख मिल रहा है। और शायद जो मेरा हम समझ रहे हैं उसको हम बचा भी इसलिए नहीं पाते क्योंकि इस दुनिया में जो भी है वो हमारा हो ही नहीं सकता तो हम उस पर कब्जा भी नहीं कर सकते। उसके साथ रह भी नहीं सकते। रहने और सहने इन दोनों बातों से अगर आपको किनारा करना है, हर पल, हर क्षण को अगर हमें एन्जॉय करना है तो बार-बार हमको ये याद दिलाना है कि मुझे कुछ ही दिनों में जाना है और वो एन्जॉयमेंट भी हमारे जीवन को सफल बनने में मदद करेगा। एक दिन की बात नहीं है हर पल को सफल करने की बात है। लम्बे काल के अभ्यास से सारा कुछ छोड़कर अगर हम इसमें जुड़ जायें तो जि़ंदगी बड़ी सुकून वाली हो जायेगी, शंाति वाली हो जायेगी।
आज सोचो हम सब ज्ञानी होने के बावजूद भी अगर ये कहें कि हमको रात को नींद नहीं आती, या रात भर आज ऐसा होता रहा है, संकल्प चल गया ये सोच के तो हम सबसे अच्छे तो वो लोग हैं जो आराम से खा-पी कर सो रहे हैं। एन्जॉय कर रहे हैं। तो क्यों न हम इसे अच्छे से समझें और पूरी तरह से इस बात को अपने अन्दर डाल दें कि दु:ख में एक पल भी मुझे नहीं जीना है।

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