मन की बातें

प्रश्न : मैं कोरबा से लवलीन हूँ। अपने को शक्तिशाली बनाने के लिए आप मास्टर सर्वशक्तिवान की प्रैक्टिस करने को कहते हैं, लेकिन मुझे शिव शक्ति के स्वमान में रहना ज्य़ादा अच्छा लगता है। क्या दोनों स्वमान में कोई अंतर है? कृपया इसे क्लीयर करें।
उत्तर : शिव शक्तियों की मंदिरों में पूजा हो रही है। भिन्न-भिन्न रूप से उनका गायन हो रहा है। और परमात्मा ने हमें आकर ये इतना सुन्दर टाइटल दिया है, वरदान दिया है कि तुम मास्टर सर्वशक्तिवान हो, और विशेष रूप से उसे हमारी बहनों और माताओं को ये टाइटल दिया है कि तुम शिव शक्ति हो। यानी शिव की शक्ति हो। अर्थात् शिव की शक्तियां तुम्हारे पास हैं। और मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ भी यही है कि सर्वशक्तिवान बाबा की शक्तियां हमारे पास हैं। दोनों सेम चीज़ हैं। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। लेकिन अगर आपको मैं शिव शक्ति हूँ इसका अभ्यास ज्य़ादा अच्छा लगता है तो आपको यही करना चाहिए। दोनों में कोई अन्तर नहीं है, दोनों में समान प्राप्ति होगी। लेकिन आपको कुछ चीज़ों का ध्यान रखना भी आवश्यक है। हमें शक्तिशाली बनना है। हमारा मूल प्रश्न ये था तो ये जो स्वमान हैं ये तो हमारी सोयी हुई शक्तियों को जगाते हैं। सर्वशक्तिवान से हमें अनेक शक्तियां मिल चुकी हैं। लेकिन जब हम इन शक्तियों का अभ्यास करते हैं कि मैं शिव शक्ति हूँ, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, परमात्म शक्तियां मेरे पास हैं तो हमारी सोयी हुई शक्तियां जागने लगती हैं। लेकिन मनुष्य को एक चीज़ पर और ध्यान देना चाहिए कि हमारी शक्तियां जाती कैसे हैं? कोई ये भी अभ्यास करता हो और व्यर्थ संकल्पों में भी रहता हो। किसी को भय भी बहुत हो या कोई निगेटिव बहुत सोचता हो। किसी को क्रोध बहुत आता हो तो इससे ये शक्तियां नष्ट होती रहती हैं। इन पर ध्यान देना भी परम आवश्यक है। साथ-साथ प्युरिटी के द्वारा शक्तियां बहुत बढ़ेंगी, त्याग के द्वारा शक्तियां बहुत बढ़ेंगी। ज्ञान भी एक बहुत बड़ा बल है, श्रेष्ठ चिंतन भी हमें शक्तियां देगा। और फाइनली जितना हम योग अभ्यास करेंगे हम शक्तिशाली बनते जायेंगे। इन सभी चीज़ों का अभ्यास शक्तिशाली बनने के लिए हरेक को करना ही चाहिए।

प्रश्न : मेरा नाम सुनंदा है। मेरी दो बेटियां हैं एक 21 साल की और दूसरी 17 साल की। ये दोनों पहले एक दूसरे से बहुत लड़ती थीं, लेकिन अब इन दोनों ने आपस में बात करना ही बंद कर दिया है। मैं सिंगल पैरेंट हूँ इसलिए मुझे उन दोनों की चिंता रहती है कि आखिर ये कैसे एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहें। मैं जब ऑफिस जाती हूँ, बाहर रहती हूँ तो इन दोनों की चिंता बनी रहती है, क्या किया जाये?
उत्तर : मुझे लगता है बचपन में इन दोनों का एक-दूसरे से बहुत प्यार रहा होगा और प्यार में एक-दूसरे से उमीदें ज्य़ादा हो जाती हैं। और अगर एक-दूसरे से बात ही नहीं करेंगे, निगेटिव फीलिंग है एक-दूसरे के लिए, मुंह अलग-अलग दिशाओं में रहेंगे तो इससे घर का वातावरण बहुत भारी रहेगा। आजकल बच्चे बहुत ही मानसिक बीमारियों से पीडि़त होते जा रहे हैं। उनके देह में हार्मोन्स की चेंज भी बहुत होती है तब भी उन्हें बहुत कठिनाइयां होती हैं। वो इर्रिटेट(चिढऩा) रहते हैं। इनकी आपको चिंता करने की बजाय कुछ अच्छे उपाय अपनाने चाहिए। चिंता से तो ये समस्या हल नहीं होगी। एक तो इन्हें पवित्र भोजन खिलायें। मैं परमपवित्र आत्मा हूँ, बच्चों को भी भोजन बनाने में लगायें और खुद भी बैठ कर ये अभ्यास करें। सवेरे उठकर पाँच मिनट आप अपनी दोनों कन्याओं को योगदान दें। इसकी चर्चा हम बहुत बार कर चुके हैं। और फिर माइंड टू माइंड उनसे बात करें। उनके स्वमान को जगाएं। तुम तो बहुत अच्छी आत्मा हो, तुम तो भगवान के बच्चे हो, तुम तो पीसफुल हो, तुम तो दोनों बहनें हो ना तुम्हारा तो आपस में बहुत प्यार है। तुम तो क्रोधमुक्त हो, पीसफुल हो। ये संकल्प कई बार सवेरे उठकर पाँच मिनट प्रयोग करेंगे तो जब वो उठेंगे तो धीरे-धीरे उनके मन में ये जाग्रति होगी कि नहीं हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। जो संकल्प आप भेजेंगी वही संकल्प उठते ही उनके मन में आयेंगे और थोड़ा-सा, हालांकि आप भी जॉब पर जाती हैं और एक नई टेंशन भी रहती है लेकिन फिर भी अपने घर में आधा घंटा सवेरे और आधा घंटा शाम को कम से कम इतना योग का अभ्यास अवश्य करें तो घर का माहौल भी पीसफुल होगा। नहीं तो ये बात आपके लिए भी टेंशन बनी रहेगी। और अकेली जान क्या-क्या करेगी। और आप बहुत प्यार से उनके पास बैठकर उनसे बात भी कर सकती हैं। आत्मिक दृष्टि रखकर, स्वमान के साथ, ऑर्डर से नहीं कि तुम बात क्यों नहीं करती हो? दोनों को बहुत प्यार से समझायें। तुम दोनों बहुत अच्छी हो, बहुत समझदार हो। उनकी सोयी हुई शक्तियों को जगाना है। कई बार ऐसा भी होता है अगर किसी एक को थोड़ा ज्य़ादा प्यार देते हैं तो दूसरे भाई या बहन को उनसे ईष्र्या होने लगती है। तो ये भी कारण होते हैं आपस में मतभेद के। इसीलिए दोनों के साथ समानता का व्यवहार रखें। क्योंकि ये चीज़ अब बढ़ती जा रही है। देखने में तो वो बच्चे हैं ना लेकिन वो दोनों आत्मायें हैं, न जाने हज़ार साल से क्या-क्या उन्होंने अपने अन्दर समाया है। एक-दूसरे के लिए ऐसे एटीट्यूड बना लिए हैं। ये मृत्यु आदि तो यात्रा में एक पड़ाव है, आत्मायें तो चलती आ रही हैं ना। और इस पड़ाव को पार करके एक नया दूसरा जीवन लेती है और फिर पड़ाव आता है मृत्यु के रूप में। फिर नया जीवन आता है तो न जाने क्या-क्या अपने साथ लाये हैं। लेकिन उसको राजयोग के बल से ही समाप्त किया जा सकता है।

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