यही अमूल्य घडिय़ा हैं आत्मा को आयरन से रीयल गोल्ड बनाने की

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हमारा प्राणों का प्राण, जान का जिगर एक बाबा है, हमारा बाबा के सिवाए है ही कौन। वही हमारा बाबा है जिसको दुनिया नहीं जानती। हमने अपने बाबा को पाया बाकी कौन-सा सुख चाहिए! कौन-सी सम्पत्ति चाहिए? कौन-सा परिवार चाहिए! एक में सब आ जाता।

जब हम यही पहला लेसन पक्का करते कि मैं आत्मा हूँ ही इन इन्द्रियों से परे। आत्मा है ही आनन्द स्वरूप, प्रेम स्वरूप। इसी में ही हम स्थित होते जाएं तो आत्मा है ही गोल्ड। देह समझने से आत्मा आयरन हो गई है। यही अमूल्य घडिय़ां हैं जिसमें आयरन एजड आत्मा को एक धक से, संकल्प से सेकण्ड में सोना बना सकते। इसलिए कहते लोहा गर्म हो तो एक धक हथौड़ा लगाओ और मोल्ड हो जाता। तो अभी हम आत्मा भी बिल्कुल तमोप्रधान गर्म लोहा हो गई हैं। बाबा ने एक ही धक लगाकर मोड़ दिया। बाबा ने योग अग्नि में मुझ लोहे स्वरूप आत्मा को पिघला दिया और सब संस्कार खत्म कर सुन्दर आत्मा बना दिया। बाबा ने कहा तुम मेरी हो माना मैं सोना बन गई।
जब कहा तुम मेरी हो तो देह और देह के सब सम्बन्ध खत्म हो गये। यह हक बाबा ने तब लगाया जब आत्मा बिल्कुल गर्म आयरन हो गई। तो मोड कर गोल्ड बना दिया। बाबा ने गोल्ड बनाया फिर लोहा क्यों बनते? फिर क्यों कहते कि मुझे थोड़ी-थोड़ी देह की आकर्षण होती। आप मुये मर गई दुनिया। हमारा प्राणों का प्राण, जान का जिगर एक बाबा है, हमारा बाबा के सिवाए है ही कौन। वही हमारा बाबा है जिसको दुनिया नहीं जानती। हमने अपने बाबा को पाया बाकी कौन-सा सुख चाहिए! कौन-सी सम्पत्ति चाहिए? कौन-सा परिवार चाहिए! एक में सब आ जाता, तो मैं किसके साथ बुद्धि लगाऊं। एक संकल्प करो तो सब खत्म हो जाता। घर चले जाओ, नीचे क्यों आते। मेरे संस्कार हैं -यह कौन कहता? मैं हूँ ही सच्चा जेवर। फिर कहकरके अपने को आर्टीफिशियल जेवर क्यों बनाते? कई कहते हैं मुझे शान्ति की अनुभूति ही नहीं होती। मैं कौन हूँ? जब कहते मुझे खुशी की, शान्ति की अनुभूति नहीं होती तो मैं किसकी हुई? रावण की या बाप की? रावण का ठिकाना ही नहीं, उसका गुण है अशान्ति फैलाना, झगड़ा कराना। बाबा का गुण है शान्ति, प्रेम। आपकी वह प्रॉपर्टी है, आप उस प्रॉपर्टी को त्याग दूसरे की प्रॉपर्टी क्यों लेते। हमारा संस्कार है कि हम एक बाप की सन्तान हैं फिर हमसे कौन-सा विकर्म होगा! कहाँ मेरी वृत्ति-दृष्टि जायेगी! वृत्ति में है हम सब एक बाबा के बच्चे हैं। बाबा ने ब्रह्मा का भी फोटो नहीं रखने दिया, फिर हम दूसरों को कैसे याद कर सकते!
बाबा ने जन्म से ही हमारा सबकुछ परिवर्तन कर दिया। पहले हम कभी 4 बजे उठते थे क्या? तो बाबा ने पहले तो निन्द्रा को परिवर्तन किया। गॉडली स्टूडेंट कह हमारी पढ़ाई को परिवर्तन कर दिया। ड्रेस बदल दी, भोजन बदल दिया, क्या कभी दिल होती है कि मैं होटल में जाकर खाऊं। क्या ऐसा कभी संकल्प उठता कि आज अच्छी पिक्चर आई है, ज़रा देखकर आऊं। आज अच्छा श्रृंगार कर शादी में तो जाऊं। ऐसा संकल्प भी उठता है? या ऐसा कभी संकल्प उठता, दुनिया वालों की तरह रमी(ताश) खेलें। तो यह सब बाबा ने जन्म लेते ही परिवर्तन कर दिया है ना! जन्म होते ही तन-मन-धन सब परिवर्तन हो गया। बाकी क्या परिवर्तन करना है?
सर्विस में फिर यह विघ्न आता, कहते यह अच्छी सर्विस करती, यह नहीं करती। इस बहन को चांस मिलता हमें नहीं मिलता। इसका सेंटर बहुत अच्छा है, मेरा नहीं, लेकिन मैं पूछती कौन-सा एग्रीमेंट में मिला कि यह तेरा सेन्टर है? कहते मेरी तो रूचि नहीं होती। मेरी दिल नहीं होती, यह सब तब तक है जब तक अपनी स्व स्थिति में स्थित होने का अनुभव नहीं है। बाबा की यादों में खो जाओ तो बाकी क्या चाहिए।
नैचुरल चलो तो मेहनत नहीं लगेगी। कर्तापन में जब चलते, करना है, करूँगा तो मेहनत ज़रूर लगेगी। परन्तु बाबा मुझसे करा रहा है, सहज करते चलो। कर्तापन में आयेंगे तो थक जायेंगे। आज मेरी रूची नहीं , आज मेरा मन नहीं, आज मेरी दिल नहीं… अरे यह किसकी सेवा करते हो! किसको जवाब देत हो? ऐसा जवाब देते जैसे मैं सेठ हूँ। सेठ बाबा है- मैं जवाब देती ओ सेठ आज मेरी रूची नहीं है। आज उमंग नहीं है। माना आज पंख हैं, कल पंख टूट गये तो फिर उड़ेंगे कैसे।
हमें तो बाबा ने 21 जन्मों के लिए पंख दे दिये। बाबा ने हमारे ऊपर हाथ फेर दिया, न कोई बोझ है, न कोई चिन्ता है। क्या आप सबको मदोगरी की चिन्ता है? भण्डारी की चिन्ता है क्या? दाल रोटी कैसे मिलेगी यह चिन्ता है क्या? बाबा ने सबको सुखधाम बनाकर दिया है, जहाँ पवित्रता, शान्ति सुख का दिन रात पाठ पढ़ते हो।
मैं बहुत बार ऐसा अनुभव करती हूँ कि जैसे मैं आत्मा इस शरीर से अलग खड़ी हूँ, मैं हीरा हूँ, मुझ हीरे में कौन सा दाग है! मैं देखती मेरा हीरा बिल्कुल फस्र्ट क्लास है। बाबा ने मेरा हीरा चमकता हुआ फ्लोलेस बनाया। बाबा के बच्चे वर्से के अधिकारी फ्लो वाले हैं ही नहीं। दागी हीरा पूजा में थोड़े ही आयेगा।

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