भोलानाथ बाबा का भण्डारा है, भोलानाथ बाबा का यह यज्ञ है, न हम किसी के हैं, न मेरा कोई है। हम सब उसी के हैं इसलिए सब हमारे हैं, हम सबके हैं। ऐसी भावना में रहने से बुद्धि बहुत-बहुत हल्की रहती।
मीठे बाबा ने हमें यह चार मन्त्र दिये हैं- 1.अलबेले नहीं बनो, अलर्ट बनो। 2.घृणा नहीं रखो, शुभ भावना रखो। 3.ईष्र्या नहीं रखो परन्तु अपने दिल में रेस करने की, उन्नति करने की दृढ़ता रखो। 4.किसी पर भी प्रभावित नहीं होना। हम सब एक बाबा के ऊपर प्रभावित हो गये तो व्यक्ति, वैभव, वस्तु… किसी पर भी प्रभावित हो नहीं सकते। अपनी सेवा से भी प्रभावित होते तो उसमें भी कभी इगो आ जाता है। जब बाबा कहता कि मैं टच करके करा देता हूँ, तो फिर हमारी सेवा कहाँ! हम अपनी सेवा से प्रभावित हो कैसे सकते! दूसरों की सेवा देखकर खुद के नैन शीतल हों, ठण्डे हों। इससे अपार खुशी मिलती है। दूसरे करते हैं तो उसे देख नैन ठण्डे शीतल होते रहें, इससे अपने आपको बहुत बड़ा बल मिलता है। यह अलग बात है- जो ओटे सो अर्जुन, हर बात में उमंग इतना ही रखना चाहिए कि हमें हे अर्जुन बनकर हर कार्य करना है। इसके साथ-साथ यह भी बैलेन्स हो, जो भी करें उसमें इतना ही खुशी का पारा रहना चाहिए।
कई पूछते हैं दादी आपके ऊपर इतनी बड़ी जवाबदारी है, बर्डन है तो कभी फिक्र नहीं होती? नींद नहीं फिटती? मैं कहती यही बाबा की मुझे बहुत बड़ी दुआयें हैं कि मैं तकिये पर सिर रखती और मिनट डेढ़ मिनट में नींद आ जाती, यह मुझे बड़ा वरदान है। कारण, ड्रामा, बिन्दु, ओम शान्ति, बाबा आप बैठे हो, आपक ो जो चाहिए कराओ। यह पक्का याद रहता है। भक्ति मार्ग में भी एक प्रार्थना है- शल सबको सुबुद्धि दे भगवान…। मैं कहती बाबा आपकी सबको श्रीमत है, सब श्रीमत पर चलें, यही मेरी हरेक के प्रति शुभ भावना है। इसी श्रीमत से हम सबका कल्याण होता। श्रीमत पर चलते चलो तो दूसरी कोई बातें हैं ही नहीं। जहाँ मनमत होती वहाँ विघ्न आता, जहाँ श्रीमत है वहाँ विघ्न आता ही नहीं।
मेरे मन में सदा एक बात रहती- बाबा यह सब आपका परिवार है, मुझे कभी आप सभी ड्यूटी देते, दादी आप प्रेज़ीडेंट हो, दादी आप ये हो… आपकी मेरे लिए इतनी भावना है उसके लिए बहुत-बहुत थैंक्स। पर मैं बाबा को कहती- बाबा मुझे कोई प्रेज़ीडेंट कहे, मुझे बड़ा कहे… यह मुझे नहीं चाहिए। परन्तु आप मुझे कोई सेवा देते भी हो तो उसकी योग्यता भी आप ही देना। बाबा आप ही मुझे वरदान से चलाओ, मैं तो बहुत छोटी हूँ, न मैं इतनी पढ़ी, न मैं इतना भाषण करना जानती… आप सबने मुझे टोपी दी है, जैसे मैं बड़ी अक्ल वाली हूँ, लेकिन मैं आप सबकी छोटी बहन हँू। फिर भी आप सबका मेरे लिए प्यार है या शुभ कामना है, तो यह भी आप सभी का थैंक्स।
बाबा और आप सभी की दुआयें हैं। मैं तो आप सभी की दुआयें ही झोली में सदा मांगती। मुझे और कुछ नहीं चाहिए क्योंकि कार्य बाबा का है मेरा नहीं है। जैसे भोलानाथ बाबा का भण्डारा है, भोलानाथ बाबा का यह यज्ञ है, न हम किसी के हैं, न मेरा कोई है। हम सब उसी के हैं इसलिए सब हमारे हैं, हम सबके हैं। ऐसी भावना में रहने से बुद्धि बहुत-बहुत हल्की रहती। बस इतना पुरुषार्थ ज़रूर रहता कि बाबा ने जो विल पॉवर दी है, वह सदा साथ रहे, सर्वशक्तियां साथ रहें। योग का ऐसा अपना चार्ट रहे जो अन्त में बैठे-बैठे उसी कर्मातीत स्थिति में यह तन चला जाए। बस सदा यह फुरना रहता कि बाबा आपकी यादों में सभी की अत्यन्त दुआओं से ऐसी स्थिति में बैठें, जैसे कि हम सम्पन्न फरिश्ता हैं, यह पुराना तन छोड़कर फरिश्ता, कर्मातीत बनकर आपकी गोद में उड़कर आ जाएं। बस केवल यही पुरुषार्थ रहता।
तो योग की ऐसी सूक्ष्म स्थिति हो। सेवा तो दिन रात है और चलेगी। पर सेवा के साथ-साथ सूक्ष्म स्व-उन्नति पर इतना अटेन्शन रखो, जो पास विद आनर हो जाओ। अच्छा। ओम् शान्ति।