मन पॉवरफुल और बुद्धि अच्छी होगी तो हार-जीत दोनों को स्वीकार करेंगे

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विद्यार्थियों को एक चीज़ ज़रूर सीख लेनी चाहिए… अपने टारगेट तो बहुत हाइएस्ट रखने ही चाहिए, मेहनत भी अच्छी करनी चाहिए, एक्स्पेक्टेशंस सदैव बहुत सुंदर होने चाहिए पढ़ाई में, लेकिन जो कुछ प्राप्त हो जाए किसी भी कारण या अकारण से, उसे स्वीकार करके आगे बढऩा ही चाहिए।

हर मनुष्य जीवन में खुशी, शांति, प्रेम, सफलता और सहजता चाहता है। सब कुछ सहज प्राप्त हो जाए, जीवन ईज़ी हो जाए इसके लिए मन में सुंदर, श्रेष्ठ, पॉजि़टिव संकल्पों का चलना परम आवश्यक है क्योंकि अगर कोई व्यर्थ संकल्पों में बहुत रहता है तो उसके मन की शक्तियां क्षीण होती हैं, ब्रेन कमज़ोर पड़ता है, उसके चारों ओर का औरा बहुत निर्बल हो जाता है। इसका प्रभाव जीवन की सफलता पर, एग्ज़ाम्स पर, कॉम्पिटीशन्स पर या भविष्य में जो हम अपना करियर बहुत अच्छा बनाना चाहते हैं उस पर पड़ता है। आज हम विद्यार्थियों की यह समस्या ले रहे हैं। अब विद्यार्थी काल एक ऐसा काल होता है जब उसके अंदर बहुत मेच्योरिटी तो नहीं होती, कोई भी चीज़ उस पर ज्य़ादा इफेक्ट कर देती है। वह किसी भी तरफ बहने लगता है, उसके पास अपना विवेक बहुत ज्य़ादा नहीं होता। यद्यपि कई स्टूडेंट अपने को बहुत समझदार, बुद्धिमान, मेच्योर भी समझते हैं परंतु ऐसा होता नहीं। 20-22 साल की आयु तक मनुष्य बहुत कुछ सीखता ही जाता है और उसे सीखते ही रहना चाहिए। अपनी गलतियों से सीख लेना चाहिए, अपनी हार से भी सीख लेना चाहिए। तो पहली एक बात हम ले रहे हैं, एक विद्यार्थी अपने एग्ज़ाम में सरटेन परसेंटेज लाना चाहता है। बहुत मेहनत करता है। सबको पता है यह बच्चा बहुत होशियार है, यह लड़की बहुत होशियार है और इतने माक्र्स तो इसके आने ही चाहिए। लेकिन मान लो थोड़े-बहुत कम रह जाते हैं। कई चीज़ें होती हैं इसमें। एग्ज़ाम देने के समय आपकी स्थिति, कॉपी चेक करने के समय एग्ज़ामिनर की मनोस्थिति, सब चीज़ें सामने रहती हैं। अब आपके माक्र्स थोड़े कम आ गए, कई बच्चे बिल्कुल उदास हो जाते हैं, कइयों को तो हमने यह सोचते और कहते देखा कि इतनी मेहनत की, कुछ नहीं मिला, बेकार है सब कुछ। भगवान भी हमारी नहीं सुनता, देखा! फलाने-फलाने जो हमसे जूनियर थे या कम होशियार थे, वो इतना अच्छा कर गये और हम नहीं कर पाये। उनको ये भी लगता है कि समाज में हमारी बदनामी होगी। ऐसा होता नहीं है।
हमें एक चीज़ अपने जीवन में सीख लेनी चाहिए, वह है कि हमें अपने टारगेट तो बहुत हाइएस्ट रखने ही चाहिए, मेहनत भी अच्छी करनी चाहिए, एक्स्पेक्टेशंस सदैव बहुत सुंदर होने चाहिए पढ़ाई में, लेकिन जो कुछ प्राप्त हो जाए किसी भी कारण या अकारण से, उसे स्वीकार करके आगे बढऩा ही चाहिए। अब यह नहीं हुआ, फिर होगा। मैंने स्टूडेंट्स को देखा था अपने साथियों को, इंजीनियरिंग में उनका सिलेक्शन नहीं हुआ। हमारे यहां रुड़की यूनिवर्सिटी फेमस होती थी, वेल नॉन थी वो एशिया में नम्बर वन। उसमें बहुत बच्चे जाना चाहते थे। हमारे से सीनियर एक हमारे ही साथी थे लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बीएससी में एडमिशन ले लिया। हमारे यहां यूपी में बीएससी का कोर्स दो साल का था उन दिनों। पहले साल में होते फिर उन्होंने कॉम्पिटीशन दिया, सिलेक्शन हो गया। बहुत अच्छी स्थिति रही। हार नहीं मानना चाहिए। ऐसे अनेक विद्यार्थियों की बातें हैं। कोचिंग करते हैं,एक साल नहीं होता तो दूसरे साल करते हैं, हो ही जाते हैं। अपने को पॉजि़टिव रखना, अपने को सदैव खुशी में रखना, होपफुल होकर रहना यह जीवन में बहुत आवश्यक है। नहीं तो समय की धारा ऐसी है, इफेक्ट ऑफ द टाइम, इफेक्ट ऑफ द पीरियड वो ऐसा होता है कि मनुष्य को निगेटिव दिशा में ले जाता है। परंतु उससे हमारा बहुत नुकसान होता है।
सभी विद्यार्थियों को विशेष रूप से यह गुह्य बात ध्यान में रखनी है कि मन में यदि संकल्पों का तूफान चलता रहेगा तो बुद्धि की शक्ति कमज़ोर पड़ती जाएगी। और फिर एजुकेशन को, ज्ञान को, पढ़ाई को जो धारण करती है वह है हमारी बुद्धि, इसमें क्या होता है फिर एग्ज़ाम के समय नर्वस होते हैं। रिज़ल्ट आ रहा है तो भी बहुत परेशान रहते हैं। दो-चार दिन पहले से ही, पता नहीं क्या होगा, यह होगा, वह होगा, उल्टे-सीधे व्यर्थ संकल्पों से अपनी खुशी को गुम कर लेते हैं। लेकिन अगर मन भी पॉवरफुल होगा और बुद्धि भी बहुत अच्छी होगी तो हम हार-जीत, सफलता-असफलता दोनों को स्वीकार करके आगे बढ़ेंगे। न एग्ज़ाम के समय नर्वस होंगे, न रिज़ल्ट आने के दिन परेशान होंगे। सभी विद्यार्थी ध्यान दें कि निराशा को अपने द्वार पर नहीं आने दें। सदैव पॉजि़टिव रहेंगे, चैलेंजेज़ से जूझने का बल अपने पास रखेंगे, हार मान कर बैठ नहीं जाएंगे, यह सुंदर संकल्प रखेंगे तो विजय, सफलता निश्चित आपके चरण चूमेगी।

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