बाबा ने कहा दान वो करता है जो श्रीमत पर चलता है। दानी, महादानी, फिर वरदानी। पहले बनो दानी, जिसको दानी बनने की आदत पड़ जाती है वो फिर छिप के भी दान करता है। आवाज़ में नहीं आता है। गुप्त का महत्त्व समझता है। ज्ञान भी गुप्त, योग भी गुप्त, फिर धारणा भी है गुप्त। ज्ञान बाबा ने दे दिया है, यह सच है, यह झूठ है। यह पाप है, यह पुण्य है। बाबा आपने मुझे यह बताया किसी और ने नहीं बताया। ज्ञान मिला माना समझ आई, योग लग गया। अगर बुद्धि और बातों में फंसी होगी तो योग लगेगा नहीं।
अभी भी सभी जगह आधे लोगों को क्लास में नींद आ जाती है। क्लास में नींद आना, सिर भारी होना, योग न लगना, यह फल है। अगर अपने आप को आँख नहीं दिखायेंगे तो कमज़ोरी दिखाई नहीं देगी इसलिए बाबा कहता है अपना मास्टर स्वयं बनो। मैं आपकी सब बातें जानता हूँ, पर तुम मेरा बच्चा समझकर अपने को चेक करो। दूसरे के बारे में सारी बातें पता होंगी, पर मेरे में क्या कमज़ोरी है- यह नहीं पता रहेगा। मेरे में क्या है, जब तक यह नहीं समझा है, तो सिर भारी रहेगा। बाबा खुशी से याद आये, मैं याद न करूँ पर वो स्वयं सामने आ जाये। वो तब होगा जब धारणा पर ध्यान होगा। ज्ञान-योग फिर आ गयी धारणा अर्थात् जीवन। जीवन हमारी आज्ञाकारी है, वफादार है, ईमानदार है। ऐसा गुप्त पुरुषार्थी, सच्चा पुरुषार्थी है, सच्चे की लगन लगी हुई है। ज्वालामुखी स्थिति हमारी ऐसी हो जो दूसरे को रोशनी मिले। जीवन गुणों में सम्पन्न हो, सदा ही चढ़ती कला से औरों का भला होता रहे। कहाँ किसी हालत में रुकती कला हुई नहीं है, न कोई रोक सकता है। रोकने वाले रोकेंगे, पर जाने वाला सच की नईया में बैठकर जा रहा है।
बाबा ने सच्चा बनना हमको सिखाया है। सच्चा उसको अच्छा लगता है। सच की इतनी वैल्यू हो, जिसके पास सच की वैल्यू है उसमें शक्ति आती है मायाजीत बनने की।
अभी भी आँखे नहीं खुलेंगी तो जब धर्मराज सामने आयेगा तब तो आँखें खुलेंगी, वरदाता ने वरदान दे दिया। ब्रह्मा बाप भी कहेगा मात-पिता, शिक्षक, सखा सब पार्ट पूरा कर दिया। अभी तुम अपने सत्य धर्म में रहो, शान्त रहो, सच्चाई से काम करो। सच्चाई से रहने में शक्ति आती है। ईश्वरीय सेवा है, सबका भला होने वाला है, हुआ ही पड़ा है। मुझे क्या करना है, धारणा में सच्चाई इतनी जो औरों को बल मिले। मास्टर बनकर अपनी इतनी चेकिंग करनी है। मेरे में कोई कमी न हो। मैं आत्मा साक्षी बनकर, देह से न्यारी रहूँ। जो सच्चा है उसे कोई चिन्ता नहीं, उसको कोई सबूत नहीं चाहिए। भगवान उसका सबूत देता है फिर दुनिया देती है।
कुछ भी माथा चलाने से नहीं होगा। दिमाग ठण्डा, दिल सच्चा, स्वभाव मधुर रहे। कराने वाला करा रहा है, चलाने वाला चला रहा है। उसको जो नहीं जानता है वो खुद अपना भाग्य, भाग्य विधाता से नहीं लेता। बाबा ने कहा है अपना ऐसा रिकार्ड अच्छा रखो, चरित्र इतना ऊंचा हो तब योग अच्छा हो।
यह मेरी भावना है कि सबका भला हो, अगर बुरा देखने सुनने बैठ गये, सुना फिर बुद्धि में रखा फि र किसी को सुनाया तो कौन से खाते में गया! इसमें फिर सिर भारी होता है, फि र कर्म का खाता बन जाता है। पुराने तो खत्म हुए नहीं, नया बन गया। इससे मेरी कमाजोरी अन्दर दब गयी और ही दूसरी कमजोरी आ गयी। जो सबके पास और कुछ देखने, सुनने का टाइम ही नहीं है।
कान और आँख को देखो। सिर्फ यही चेक करो कि यह सुनते क्या हैं और ये देखते क्या हैं। दोनों कानों से जो आवाज अन्दर जाता है, फि र दिमाग में गया, फिर दिल को लगा फिर मुख चला। यहाँ से ही सारा परिवर्तन होता है। सिर्फ दो कान और आँख देख लो। अन्तर्मुखी बन जाते हैं तो आँखे क्या देखें, खुली है पर क्या देंखें, क्या सुनें, काम की बात ही नहीं है। आँखें, कान बन्द हैं तो मुख मुस्कराने लगता है।
आजकल तो पुरानी बात मिटाते ही नहीं हैं, कल की भी बात मिटा दो। गलत लिखकर फि र मिटाना भी रांग है। इतना अक्ल होना चाहिए, हमारी पढ़ाई इतनी अच्छी है। हर कर्म ऑटोमेटिक लिखता जाता है। अच्छा, जरा सा हो भी जाये तो उसे तुरन्त मिटा दो। स्टूडेन्ट अगर स्टडी में सुस्ती करता है, तो वो पास कैसे होगा। तो बाबा ने जो सुनाया, सारा दिन उसे पहले अपने को सुनाओ फिर औरों को सुनाओ। राजाई लेनी हो तो इन आँख और कान द्वारा लेंगे, गँवायेंगे भी इनके द्वारा। अन्तर्मुखी सदा सुखी रहेगा।
स्थिति ऐसी रहे, समर्पण जीवन है, मेरा कुछ नहीं है, सफल हुआ पड़ा है। जब आप चढ़ती कला में होंगे तब सर्वगुण आयेंगे फिर 16 कलायें भीआ जायेंगी। सबके सहयोग से बाबा का कार्य सफल होगा फिर उड़ती कला हो जायेगी।