सम्पूर्णता की मदद हमको बाबा को देनी है

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बाबा का सत्य ज्ञान महत्त्वपूर्ण है वो हमें प्रत्यक्ष करना है। तो जितना आत्मभिमान का मैंपन और मेरापन प्रैक्टिस में लायेंगे वो देह भान का मैं और मेरापन खत्म होता जायेगा।

एक बार बड़ी दीदी ने हमें बताया था। बड़ी दीदी से पूछा कि आप लोग तो कॉन्सटेंट एक के बाद एक कार्य में बिज़ी रहते हैं तो बाबा को कब याद करते हैं। तो बड़ी दीदी ने बड़ा अच्छा बताया था कि एक पार्टी से मिलती हूँ, वो जाती है फिर दूसरी से मिलती हूँ उस बीच में मैं फिर से अपने आप को बाबा से जोड़ लेती हूँ। ये भी मैंने बहुत प्रैक्टिस किया। कोई मिलने आते हैं तो मैं और अन्दर से डिटैच हो जाती हूँ। अन्दर से और न्यारा हो जाना या आत्म स्मृति में या जो हमारे स्वमान, टाइटल बाबा ने दिए हैं वो याद करना। बाबा भी देखो ज्ञान में आये पहले सबको कमल फूल बनाया। कितनी बार बाबा कहते हैं भल घर में रहो पर कमल फूल समान बनो। कमल की क्या विशेषता है डिटैचमेंट, न्यारापन फिर बाबा ने आगे बढ़ाया कि कितने भी सतकर्म करो सेवा करते हैं ना हम सब तन-मन-धन लगाते हैं, मन-वचन-कर्म लगाते हैं कितने भी सतकर्म करो, ट्रस्टी(निमित्त)। श्रीमत पर कारोबार करते हैं।
ट्रस्टी सबकुछ करता है पर मालिकपन नहीं आता है। हमें सबकुछ करना है पर मालिक बाबा है। तो मालिक के नियमानुसार करना होता है ना, तभी ट्रस्टी कहा जाता है। और अब फरिश्ते। सतकर्मों में भी, करते हुए भी आसक्ति नहीं। ऊपर की ऊंची लाइट-माइट की स्थिति है। अब बाबा कहते हैं खुद को क्या समझो फरिश्ता। कितना भी महान बन जायें, आगे बढ़ जायें, अनन्य हो जायें, सर्विसएबुल बन जायें परन्तु न्यारापन। कितना भी महारथी बन जायें परन्तु मैं बाबा का बच्चा हूँ कोई अभिमान नहीं। और अभिमान न रहने की निशानी बड़ी दादी ने हमें बतायी निमित्त भाव, निर्मान भाव। मैंपन तो क्या बहस करना भी नहीं आयेगा आपके जीवन में। निर्मान भावना और निर्मल वाणी। अहंकार नहीं आयेगा। वाणी में अहंकार नहीं आयेगा। कितना भी सहयोगी बन जायें दिखावा नहीं आयेगा। बाबा ने मौका दिया हमारे तन-मन-धन को सफल करने, बाबा कहते हैं ना कि कभी संकल्प में भी न आवे कि दिया। जानते हैं पदम गुणा रिटर्न मिलना है तभी तो बाबा पर बलिहार जा रहे हैं। यज्ञ में कोई चीज़ लाकर दी, दे दिया माना हमारा कोई अधिकार नहीं। फिर सोचना नहीं है जो अलमारी दी थी वो कहाँ गई दिखाई नहीं देती। बहन जी ने बेच दी या क्या किया? नहीं। इसका मतलब हमने अभी तक पकड़ के रखा है, तो जमा तो हुआ ही नहीं। सफल किया पर जमा नहीं हुआ। ये दो हिसाब अलग-अलग हैं। बाबा के कार्य में,सेवा में लगाना सफल करना है। पर अगर बुद्धि में चला, वर्णन किया बार-बार भई ये पंखे आपको पसंद आये? कहेंगे हाँ बहुत अच्छे हैं। तो हम कहेंगे मैंने लगवाये थे। इसलिए बाबा कहते हैं जमा कितना होता है और माइनस कितना होता है मैंपन और मेरापन करने से। इतना सत्य ज्ञान देने के बाद भी बाबा ने हमारे पर अधिकार नहीं किया। गीता में भी सबकुछ कह दिया लेकिन उसके बाद भी अर्जुन डिसकस करता रहा, आगर्यूमेंट(बहस) करता रहा। तो भगवान ने क्या कहा क्रयथेच्छसि तथा कुरूञ्ज तुमको जो चाहिए वो करो। मैंने अपना कार्य कर दिया। बाबा ने हमें कभी कुछ भी नहीं कहा।
एक बार प्रोग्राम में एक मेहमान हमें कहने आये कि ये आये हुए मेहमान कितना भोजन फेंकते हैं आप लोग क्यों नहीं इन लोगों को कहते हो। तो हमने कहा कि पहले ही दिन हरेक की फाइल में सूचनाओं का कागज होता है, सबको सूचना दे दी जाती है। उसके बाद भी क्लास में एनाउन्स किया जाता है। आपके घर कोई मेहमान ऐसा करे तो आप लड़ेंगे थोड़े उनके साथ! समझायेंगे। बाबा हमें रोज़ बार-बार समझाते हैं। दादियों को हम सबने देखा है तो ये हरेक की अपनी जागृति हो कि मुझे देह भान का मैंपन और मेरापन नहीं लाना है। बाबा ने एक बार कहा था कि बच्चों का मैंपन और मेरापन ही प्रत्यक्षता के होने में पर्दा हो जायेगा। आयें हैं बाबा को प्रत्यक्ष करने और लगे हैं अपनी प्रत्यक्षता करने। हमें अपनी प्रत्यक्षता नहीं करनी है बाबा की प्रत्यक्षता करनी है।  बाबा का नाम बाला करना है। यज्ञ का नाम बाला करना है। यज्ञ का नाम रोशन करना है। हमें व्यक्तिगत अपनी महत्ता नहीं बढ़ानी है। बाबा, बाबा का सत्य ज्ञान महत्त्वपूर्ण है वो हमें प्रत्यक्ष करना है। तो जितना आत्मभिमान का मैंपन और मेरापन प्रैक्टिस में लायेंगे वो देह भान का मैं और मेरापन खत्म होता जायेगा। और इस आत्मभिमानी स्थिति में, बाबा की याद में इतना सुख और आनंद अनुभव होता है और अपने आप हमारे अन्दर वो अलौकिकता, रूहानियत आती है कि हम गुप्त रहकर भी प्रत्यक्ष हो जाते हैं। अपने आप अनुभव होता है लोगों को। हमें देखें तो बाबा याद आवे, हमें देखें आत्मभिमानी बन जाये, व्यक्त भाव वाला अव्यक्त हो जाये। यही तो सेवा करनी है हमें। हमें अपने आप से पक्का करना है कि बाबा ने जो कहा है वो बनना है या नहीं बनना है। अब बाबा को हमसे कौन-सी मदद चाहिए? हमारी स्थिति की मदद चाहिए। करना है ना! अब बाबा को जो मदद चाहिए वो मुझे करनी है। हमारी स्थिति की मदद, हमारी सम्पन्नता की मदद, हमारी सम्पूर्णता की मदद चाहिए।

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