आज एक बहुत बड़ा प्रश्न ये उठता है कि इस दुनिया में सभी लोग कहते हैं कि हम मेडिटेशन करते हैं, हम योग करते हैं। लेकिन मेडिटेशन और योग इन दोनों को समझने के लिए इस बात पर बहुत गहन विचार करने की आवश्यकता है कि इस दुनिया में जो भी योग की पद्धतियां डेवलप(विकास) की गईं, बनायी गईं कुछ न कुछ ऐसी बातें हैं जो किसी बात को लेकर कभी आलोचना करती है, कभी कहते ये सत्य है, कभी कहते ये सत्य नहीं है। जैसे कहा जाता है कि हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना हुआ है और शरीर के पाँचों तत्व स्थिर नहीं हैं, अस्थिर हैं। निरन्तर गतिमान हैं जिसको अगर और ज्य़ादा इलेक्ट्रॉनिक भाषा में कहा जाये तो न्यूट्रॉन, प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन की जो लैंग्वेज है उसमें ये फुल टाइम चारों तरफ ये कण एक कक्षा से दूसरी कक्षा में घूमते रहते हैं। इसका मतलब ये है कि फुल टाइम हमेशा जितने भी तत्व हैं वो मूव कर रहे हैं, गतिमान हैं, आगे बढ़ रहे हैं।
अब इस दुनिया में जब भी कोई मेडिटेशन की बात करता है तो ये कहता है कि मैं किसी देवी के सामने जाकर योग लगाता हूँ, किसी देवता के सामने, किसी मूर्ति के सामने, किसी गुरु के सामने या फिर प्रकृति के बीच बैठ के योग लगाता हूँ। तो आपको और हमको तुरंत एक बात पर विचार करना चाहिए कि जो चीज़ इस दुनिया में प्रकृति से बनी हुुई है वो तो निरंतर गतिमान है, निरंतर आगे बढ़ रही है, इधर-उधर घूम रही है। तो जो चीज़ घूम रही है, जो चीज़ अस्थिर है, जो चीज़ बदल रही है उसके साथ हम योग कैसे लगा सकते हैं! उसके साथ हमारा जुड़ाव कैसे हो सकता है! आप कभी भी किसी मूर्ति को या किसी भी पत्थर को या किसी भी ऐसी चीज़ पर अपने आप को स्थिर करके देखो तो आपकी आंखें इधर-उधर भागती हुई नज़र आयेंगी। आप उसको एकटक तरीके से नहीं देख सकते कभी भी। कारण उसका क्योंकि यहाँ सबकुछ अस्थिर है। सबकुछ मूव कर रहा है। एक हमारी ऊर्जा है फिजि़कल एनर्जी (शारीरिक ऊर्जा) इसको भी अगर आप सूक्ष्मदर्शी से देखेंगे तो चारों तरफ ये सारे कण घूम रहे हैं। तो प्रश्न उठता है कि इस दुनिया में कोई मेडिटेशन नहीं करता है क्या? तो जवाब ये होगा कि शायद नहीं करता है। क्योंकि अगर वो मेडिटेशन करता तो वो स्थिर होता चला जाता।
आज बड़े-बड़े जो अपने आपको तपस्वी कहते हैं, बड़े-बड़े ध्यानी, योगी कहते हैं वो भी छोटी-छोटी बातों में या बड़ी बातों में परेशान हो जाते हैं। किसी बात को लेकर या यहाँ की दुनिया को लेकर कुछ उनका जाता है तो उसके लिए बहुत दु:खी होते हैं। लेकिन योग की परिभाषा जो परमात्मा ने हमें बताई वो शरीर से बिल्कुल भिन्न है, प्रकृति से बिल्कुल भिन्न है, प्रकृति के तत्वों से बिल्कुल अलग है। उन्होंने बताया कि इन पाँच तत्वों से जो पार दुनिया है जिसको हम छठा तत्व कहते हैं, या ब्रह्म तत्व कहते हैं, जहाँ पर परमात्मा का निवास स्थान है। उसके साथ वो स्थिर है और वो स्थान भी स्थिर है और हम सबको स्थिर बनना है। जब स्थिर चित्त से परमात्मा के साथ हमारा जुड़ाव होता है तो उसको हम वास्तविक योग की उपाधि दे सकते हैं। और है भी वही वास्तविक योग। तो योग का मतलब है कि जो हमको स्थिर करे। लेकिन आज हम योग करने के लिए कहते हैं कि दिनभर योग करते हैं, मेडिटेशन करते हैं, ध्यान लगाते हैं तो ध्यान-योग करने वाला ध्यानी-योगी जो होगा वो कभी भी किसी बात से, किसी भी यहाँ की चीज़ों के जाने से परेशान नहीं होगा। अगर वो हो रहा है तो उसका निश्चित प्रकृति से योग है। समाज से योग है, स्थूल वस्तुओं से योग है और-और चीज़ों को प्राप्त करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाकर उससे अपने आपको जोड़ता जाता है, और कहता है कि हम मेडिटेशन कर रहे हैं।
मेडिटेशन दो ऐसी स्थितियों का वर्णन है जिसमें कहा जाता है एक जगह एक आत्मा और दूसरा परमात्मा। मतलब कहा जाता है कि दो ऐसे तत्व जो बिल्कुल ही इस दुनिया से अलग हैं। एक को आत्मा कहा और दूसरे को परमात्मा कहा। और दोनों सत्य हैं, दोनों अनादि हैं, दोनों हमेशा हैं, अन्तर ये है कि जो आत्मा है वो ऊपर से आई और इधर नीचे प्रकृति के साथ जुडऩे के बाद धीरे-धीरे तत्वों के साथ जुड़ती चली गई। और अपने आपको भूल जाती है लेकिन जो परमात्मा है वो निरन्तर स्थिर है। अनादि रूप से स्थिर है। हमेशा है, हर वक्त हर समय है। उसके साथ जब हमारा योग जुड़ता है तो हमारी बुद्धि स्थिर होती चली जाती है। अब वैज्ञानिक इस बात को नहीं मानते या कोई भी जो बहुत बड़ा इसका जिज्ञासु है या जो अपने आपको फिलॉसफी(दर्शन शास्त्र) के साथ जोड़ते हैं कि मैं इस बात को नहीं मानता। तो मान भी नहीं सकते उसका कारण ये है कि जितने भी वैज्ञानिक हैं या जितने भी रिसर्च करने वाले लोग हैं वो इन मूल तत्वों की बात करते हैं जो आज-कल प्रकृति में हैं। इससे ऊपर वो न कभी जा सकते हैं और न ही सोच सकते हैं। मैटर(पदार्थ) की बात करते हैं। मैटर मतलब जो निरंतर बदल रहा है, निरंतर गतिशील है। और जो चीज़ पहले से पृथ्वी पर मौजूद है उसी की वो खोज करते हैं, और उसी पर वो रिसर्च करते हैं। तो विज्ञान तो इसके ऊपर कभी सोच ही नहीं सकता। ना सोचने का मतलब ये नहीं कि योग की वो अवस्था जो वो बता देंगे वही सही है। लेकिन सही कुछ और है जो परमात्मा ने आकर स्पष्ट किया कि इस दुनिया के मनुष्य चाहे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों वो परमात्मा को तब तक नहीं समझ सकते जब तक वो खुद न आके बताये।
जो मैटर की बात कर रहा है, जो भौतिक शास्त्र की बात कर रहा है, जो भौतिकी में है उस पराभौतिक शक्ति को समझने के लिए उसको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। इसलिए स्थिर और अनादि एक परमात्मा शिव निराकार ज्योति बिन्दु ही है। उसके साथ आत्मा का योग ही हमको स्थिर बनाता है और वो ही हमारे मोक्ष की अंतिम अवस्था है। जब हम परमात्मा के साथ जुड़ते हैं तो यहाँ की सारी चीज़ों का नाश हो जाता है। इसी को कहा जाता है मोक्ष। मोक्ष का मतलब क्रमैंञ्ज का क्रक्षयञ्ज हो जाता है। क्रमैंञ्ज माना अहंकार और क्रक्षयञ्ज माना नष्ट होना। जैसे ही क्रमैंञ्ज का क्रक्षयञ्ज हो जाता है माना हमको मोक्ष मिल जाता है। और उसके साथ मोक्ष मतलब जुड़ाव हमको इस दुनिया में अलग बनाता है। इसलिए योग की सही विधि है एक स्थिर आत्मा बनके परमात्मा को जैसा है, वो जो है उसी रूप में याद करना। क्योंकि यही वास्तविक योग है, यही वास्तविक स्थिति है।