हमारा चेहरा हो खुशी वाला, सोच वाला नहीं…

0
212

जब हमारी अवस्था ठीक होती है तो सब अच्छा लगता है। जब अवस्था थोड़ी भी नीचे-ऊपर होती है तो अच्छा भी बुरा लगता है। उस समय मन समझ नहीं सकता कि यह अच्छा है या बुरा? उस समय समझ भी कम हो जाती है क्योंकि हमने छोटेपन से सब प्रकार के अनुभव देखे हैं, छोटों का भी, बीच वालों का भी, अभी फिर वही बड़े हुए तो उन्हें निमित्त बड़ा कहते हैं, उनको भी देखा है। तो अनुभव तो भिन्न-भिन्न हैं। कोई हैं जो बहुत साधारण चलते हैं,ऐसा भी अनुभव है। तो सभी खुश हैं? शक्ल पर खुशी ज़रूर होनी चाहिए। शक्ल सोचने वाली न हो, ऐसे नहीं जहाँ बैठें वहाँ सोच में चले जायें, ऐसा नहीं हो। बात, बात से भले करें लेकिन खुशी नहीं जाये। खुशी छोड़के और फिर सोचते हैं तो रिज़ल्ट क्या हुई? खुशी तो चाहिए ना, सब इस बात में तो ठीक है ना! तो जिस बात में खुशी कभी गुम होती है उसका पुरुषार्थ करो क्योंकि हरेक का स्वभाव, हरेक का वर्क अपना-अपना है। उसके अनुसार जैसा डायरेक्शन मिले, वैसा करना चाहिए। इसमें कभी-कभी पूछना भी पड़ता है। बाकी हैं ठीक, जनरल क्या कहेंगे, ठीक है! ठीक है! ठीक होना ही चाहिए। कोई प्रॉब्लम हो तो उसे पुराना नहीं करो, कभी मिलेगा टाइम तो बता देंगे, नहीं, क्योंकि इसमें भी टाइम तो गंवाया वो कहाँ गया? वो तो खुशी कम हुई ना! हम तो देखते हैं बाबा ने हमारे लिए क्या नहीं सोच के किया है, हर छोटी बात को सोच करके यह रहने का स्थान बनाया है।
शुरू में ही हमने देखा है कि बाबा के अन्दर यही रहता कि बच्चों को कोई दु:ख नहीं मिले, तो अभी भी यह जि़म्मेवारी बड़ों की है और बताने वालों के ऊपर भी है, सहन करना समझे बहुत ज़रूरी है और सहन नहीं होता तो अन्दर संकल्प भी चलता है। दुविधा में रहते हैं कि करें, नहीं करें… तो वो लाइफ नहीं है। लाइफ माना खुशी। कोई सिर पर बोझ नहीं। कोई न कोई बीच-बीच में बोझ आता है, ऐसे नहीं। लेकिन उनको सोच-सोच के बड़ा नहीं बनाओ। परन्तु कोई की नेचर कैसी होती है, कोई की कैसी… मानों आपमें सहनशीलता की टोटली नेचर कम है और मैं आपको वो प्रोग्राम देती हूँ जो सहन करना ही है तो कैसे चलेगा! पहले समझना चाहिए जिसको देते हैं उनकी नेचर, उनके आस-पास रहने वाले साथी, यह सब पहचान करके पीछे वो काम देवें।
अभी के समय अनुसार मैं समझती हूँ, बाबा की रोज़ की मुरली ही हमारे लिए डायरेक्शन है, वरदान है। तो जो बाबा के इशारे होते हैं वो मुरली में ही होते हैं, अगर मुरली को आप पढ़ो उस ध्यान से, तो अगर कोई कमी है तो उस पर अटेन्शन ज़रूर देना है और कोई को भी निमित्त बनाने के बजाय बाबा ही निमित्त अच्छा है, लेकिन सिर्फ अटेन्शन देना।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें