मंजि़ल बहुत ऊंची है…स्वयं को सम्भालो

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शुक्रिया बाबा आपका, जितना हम बाबा का शुक्रिया मानेंगे उतना अच्छा है। जो बाबा से पाया है, उससे दुनिया वालों को जब सुख मिलेगा तब उनकी भी दिल कहेगी शुक्रिया बाबा आपका। जो बाबा से पाया है उसको दिल में समाके रखो तो शुक्रिया निकलता है।
जो अभी बाबा के दिलतख्तनशीन बनते हैं उनकी प्रालब्ध भविष्य में भी बड़ी ऊंची होगी। बाबा के दिल में हमारे प्रति जो भावना है, वही हमारे दिल में है। ईश्वरीय परिवार में बाबा के बच्चे आपस में क्षीरखण्ड होके रहें यानी एक-दो को समझ करके दिल से एक-दो को रिसपेक्ट दें। कई हैं जो अपने को ही अच्छा समझते, दूसरों की अच्छाई पर इतना ध्यान नहीं देते हैं। कहेंगे हम जैसे हैं, अच्छे हैं फिर और अच्छा श्रेष्ठ बनना है, उसको सामने न रख करके जो श्रेष्ठ बने हैं उनको ही देख खुश होंगे। जैसा बाबा चाहता है वैसा मुझे बनना है, खुद ऐसा बनें यह उनसे नहीं होगा। बाबा तो सबको सबकुछ समान रूप से दे रहा है।
जो भाग्यवान हैं, सौभाग्यवान हैं, हज़ार भाग्यवान हैं, पदमापदम भाग्यशाली बनने वाले हैं, उनकी दो बातें देखने में आयेंगी। एक मात-पिता मेरे हैं तो सुख बहुत होगा। उनके पास दु:ख का नाम निशान नहीं होगा। दु:ख क्या चीज़ होता है, इसका अनुभव ही न हो और सुख क्या चीज़ है वो अनुभव बहुत हो। दूसरा सुखी कौन है? जिसको शान्तिधाम घर याद है। कहने में शब्द भी ऐसे निकलते हैं-सुख शान्ति। तो परमात्मा को मात-पिता समझने से एक तो सुख मिला और दूसरा परमधाम को अपना घर समझने से शान्ति मिली।
जो किसी को दु:ख नहीं देता है, क्षीरखण्ड होकर रहता है, श्रीमत पर एक्यूरेट चलता है वही दिलतख्तनशीन बनता है। जो मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट होते हैं वही एक्यूरेट चलते हैं। जिसको एक्यरेट बनना है, वही एक्यूरेट चलेगा। हमारे साथ चलने में किसी को कोई भारीपन नहीं लगेगा। तो हर आत्मा के प्रति हमारा कोई चिंतन, संकल्प न चले कि इनके साथ कैसे चलूँ? ख्याल भी किया तो दीवार आ जायेगी। जिसने बाप को समझा, शान्तिधाम को घर समझा, ड्रामा का अर्थ समझा, उसके लिए हर बात सहज है, कुछ भी मुश्किल नहीं है। उसके मुख से ऐसी भाषा नहीं निकलती कि इनके साथ रह करके तो देखो। ऐसी भाषा वाली सतयुगी आत्मा नहीं हो सकती। वह तो एक बाबा की याद मे मस्त रहती है। अगर चलते-चलते कहाँ किसी देहधारी से लगाव हो गया या कोई स्वभाव, संस्कार का टकराव हो गया तो सारी माक्र्स एकदम खत्म हो जाती। ज़रा-सा भी क्रोध आया तो फुल पास तो छोड़ो, पास माक्र्स भी नहीं मिलेगी इसलिए स्वयं को सम्भालो, मंजि़ल बहुत ऊंची है।

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