आखिर मृत्यु से भय क्यों लगता है…

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मनुष्य को जीवन में किसी न किसी बात का भय होता है। शायद ही कोई हो जो भय से छूटा हो। ग्रंथ साहिब में भी परमात्मा की जीवन महिमा है कि परमात्मा निर्भय है। और कोई भी नहीं है जो सदा व पूर्ण रूप से निर्भय हो। थोड़ा-सा धमाका हो तो व्यक्ति थिरक जायेगा, चाहे दूर खड़ा हो। मान लीजिये एक व्यक्ति ने सांप देख लिया तो सोचेगा— या तो यह दूसरा रास्ता ले या मैं लूँ। कहीं मुझे काट न ले। अत: गीता में भी कहा है मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो। हरेक चाहता है कि हमारी मृत्यु भयावह न हो, ठीक तरह से प्राण छूटें। कईयों को देखते हैं कि वे दवाईयों के सहारे, ऑक्सीजन के सहारे जी रहे हैं। कोई-कोई तो तड़प-तड़प कर मरते हैं। किसी-किसी के तो प्राण छूटते ही नहीं। कोई-कोई को तो शरीर छोडऩे में सालों साल लग जाते हैं। ये सब देख व्यक्ति को अपने प्रति भय लगता है कि हमारा अनागत (आगे आने वाला समय) क्या होगा!
मनुष्य को सिर्फ अनागत का नहीं, बल्कि आगत(अभी आया हुआ समय) का भी भय होता है। कोई हमारे सामने बन्दूक लेकर आ गया। लगता है कि बस अब शूट करेगा। बदन काँपता है, आवाज़ निकलती नहीं। गीता में भी यही लिखा हुआ है कि अर्जुन का गला सूख गया, हाथ शिथिल हो गये, तीर-कमान छूट गये कि इतनी सेना व बड़े-बड़े योद्धा मेरे सामने हैं! भय ऐसी चीज़ है जो झकझोर देता है जिसे बाबा, भय का भूत कहते हैं। बड़े-बड़े ताकतवर देश भी भयभीत हैं। इसलिए अपने गुप्तचरों को रखते हैं। हर देश के मंत्री अपने साथ सदा ब्लैक कैट, कमांडो जैसे अंगरक्षकों को रखते हैं क्योंकि डर है कि कहींं कोई गोली न मार दे। तो ये कलियुग है ही भय की दुनिया। किसी को आयकर का डर है, किसी को वाणिज्य कर का और किसी को चोर-लुटेरों का।
अब प्रश्न उठता है कि सूक्ष्म में भी हमारे मन में भय का संस्कार क्यों होता है? इस पर मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग किये हैं। किसी को पानी से डर लगता है, तो किसी को गोलीबारी से, किसी को आग से, चाहे कोई कारण भी सामने नहीं है।

  1. कहते हैं, भय जन्मजात है। कारण पूछो तो उनके पास उत्तर नहीं होता। लोग कहते हैं कि ये तो वहम करता है परन्तु सारे वहम तो नहीं होते। मनुष्यों ने इस पर तज़ुर्बे किये हैं। इस बात से हम पुनर्जन्म को सिद्ध करते हैं। पूर्वजन्म में कोई घटना घटी, वो दब गयी अब फिर उभरती है।
  2. या फिर उस व्यक्ति ने किसी को वह दु:ख भोगते देखा होता है। उदाहरणार्थ, कोई ट्रक के नीचे आ गया, पूरी तरह तड़प रहा है उस दृश्य को वह देख रहा है तो उसकी बुद्धि में बैठ जाता है कि मृत्यु बड़ी भयानक होती है। कहीं मेरा भी ऐसा हाल न हो। उसकी बुद्धि से वह बात मिटती ही नहीं चाहे वह कितनी भी कोशिश कर ले। मृत्यु-भय से दूर होने के लिए कई लोग मृत्युंजय मंत्र का पाठ करते हैं। कई ऐसे साधक भी हैं जो कहते हैं— हे भगवन्, हमें कुछ ओर नहीं चाहिए, हमारी मृत्यु ठीक हो।
  3. कई बार अपने ही किये हुए पाप कर्म भय के रूप में आते हैं, मन को खाते हैं। उदाहरणार्थ, चोरी की और पकड़े गये तो पिछली सारी चोरियाँ भी पता चलेंगी, तो जेल की हवा खाओ। इसलिए बाबा कहते हैं, क्रक्रसच तो बिठो नच।ञ्जञ्ज तुमने पाप कर्म किया ही नहीं, फिर भय क्यों हो? हमारा कौन क्या बिगाड़ेगा जब हमने किसी का कुछ बिगाड़ा ही नहीं?
  4. भय आने के लिए अनिश्चितता भी एक कारण बनता है। किसी बात का जब ठीक तरह से पता नहीं है तो व्यक्ति सोचता है कि मैं चल तो ठीक रहा हूँ, किसी को दु:ख नहीं दे रहा हूँ परन्तु मैं पक्का नहीं कह सकता। न भविष्य का पूरा पता है, न भूतकाल का। इसलिए थोड़ा बहुत भय रहता है।
    खास बात तो यह है कि मनुष्य देह-अभिमान में है। देह-अभिमान में आने से ही भय होता है। परन्तु जब देह से उपराम हो, भगवान की याद में तल्लीन हो तो भय नहीं होता। व्यक्ति को थोड़ा तो देह-अभिमान रहता है। देह नश्वर है इसलिए सूक्ष्म रूप में थोड़ा-सा भय आ जाता है। गीता में अर्जुन ने कहा है— हे भगवान, अपना मोहिनी रूप दिखाओ।
  5. जो असमर्थ होता है उसे भी भय होता है। वास्तव में दुनिया में सभी असमर्थ हैं। दु:ख-सुख के अधीन हैं इसलिए भय रहता है। जब हम उन बातों से भी उपराम हो जायें, देहभान से भी परे हो जायें, फिर भय नहीं रहता।

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