हम इस समय प्यारे बापदादा की गोदी में खेल रहे हैं, पल रहे हैं। हमें उनका लालन-पालन मिल रहा है। हम ऐसे सर्जन के बच्चे मास्टर सर्जन हैं जो किसी के भी मन का रोग मिटा सकते हैं। मन से तन भी ठीक हो जाता है।
भाग्य विधाता, वरदाता बाप ने हम सभी बच्चों को अनेक वरदान दिये हैं। परन्तु उसमें पहला वरदान दिया कि तुम सभी शिव वंशी हो। एक शिवबाबा के वंश के हो। जिससे पहला-पहला नाता जोड़ा कि हम सब भाई-भाई हैं। दूसरा नाता जोड़ा कि हम ब्रह्मा की औलाद ब्रह्माकुमार कुमारी हैं। ब्राह्मण कुल के हैं। ऊंच धर्म के, ऊंच कुल के, ऊंच चोटी हैं। तो पहले हम संगम के इस वरदान पर खड़े रहते। भविष्य में तो ऊंच पद पाने का लक्ष्य है ही परन्तु अपने आपको पहले इस स्थिति पर रोज़ देखो कि हम शिव वंशी हैं। बाबा आया है हम बच्चों को गुप्त दान देने। सबसे पहले उसने हमें अपने समान बनाया फिर अपना राज्य भाग्य दिया। तो पहले खुद से हरेक पूछे कि बरोबर मुझे ये नशा है कि हम खुदा के बच्चे हैं। सिर्फ बच्चे हैं, नहीं। परन्तु हमें खुदा ने अपना बनाया है, रौरव नर्क में पड़े हुए को अपनी गोदी में बिठाया है। हम इस समय प्यारे बापदादा की गोदी में खेल रहे हैं, पल रहे हैं। हमें उनका लालन-पालन मिल रहा है। हम ऐसे सर्जन के बच्चे मास्टर सर्जन हैं जो किसी के भी मन का रोग मिटा सकते हैं। मन से तन भी ठीक हो जाता है। हमारी गाड़ी तीन इंजन से चल रही है। परम बाप, परम शिक्षक और परम सतगुरु के हम तकदीरवान बच्चे हैं। जब हम अपनी इतनी महान तकदीर रोज़ देखते तो अन्दर से निकलता वाह बाबा वाह! वाह ड्रामा वाह! जो मेरा भाग्य बना वह औरों का भी बनें। हम तो ऊंची चोटी पर बैठे हुए ऊंचे ते ऊंचे ब्राह्मण हैं। फिर ब्राह्मण कैसे कहेंगे यह माया आती, यह होता! जैसे कोई छोटी चीज़ का भय बैठ जाता, रस्सी को भी सांप समझ भयभीत हो जाते, वैसे माया है, यह भी भय के भूत का बड़ा सांप दिमाग में रख दिया है। अब सांप तो है ही सांप। वह तो है ही विषैला। वह तो ज़हर ही फूंकेगा। सांप से खेलो नहीं, उससे डरते क्यों हो, वह कोई खिलौना नहीं है। सांप है तो किनारा कर लो। 5 विकार भूत हैं लेकिन वह हैं ही भूत, है ही गन्दी चीज़। गन्दी चीज़ को देखेंगे, दृष्टि डालेंगे या उससे किनारा करके चले जायेंगे! उनके पास जायेंगे तो ज़रूर बदबू आयेगी। किनारे हो जाओ तो बदबू से बच जायेंगे। यह है ही छी-छी दुनिया। मैं अगर शौक से पिक्चर देखूंगी तो वह मुझे ज़रूर खींचेगी। मैंने देखा तो वह ज़रूर आकर्षित करेगी। मैंने अटेन्शन दिया तो उसने खींचा। अगर हम कहें यह तो डर्टी है, तो वह खींच नहीं सकती। ज़रा भी इन्ट्रेस्ट लिया तो खींच ज़रूर होगी। अगर मैं परचिंतन करूंगी तो दूसरा सुनेगा। बाबा ने कहा बच्चे, इस असार-संसार का समाचार न सुनो, न देखो और न वर्णन करो। यह बड़ी सुन्दर है, यह अच्छी लगती। यह चीज़ अच्छी है, ऐसे सोचा तो खत्म। बाबा की गोदी छोड़कर उतरते क्यों हो! गोदी में सदैव बैठे रहो, उनकी छत्रछाया के नीचे रहो तो कोई की ताकत नहीं जो मेरे पास आये। माया आती है इसका कारण तुम उसे देखते हो। बाबा की गोदी छोड़ते हो। भय का भूत बैठा हुआ है। निर्भय बनो तो माया आ नहीं सकती। निर्भय माना कोई भी विकार की शक्ति नहीं जो मुझे डरा सके। माया हरा नहीं सकती। मैं तो महावीर-महावीरनी हूँ। दुनिया की कोई भी शक्ति नहीं जो मुझे भयभीत करे या मुझे अपनी अंगुली दिखाये। आप चैलेन्ज करो कि कोई ऐसी ताकत नहीं जो मुझे हरा सके। यह कहने की बात नहीं लेकिन अन्दर में दृढ़ता हो, इतना मास्टर सर्वशक्तिवान बनकर रहो। अन्दर में थोड़ा भी आलस्य आया तो पूरा ही खा जायेगा। आज थोड़ा आलस्य आयेगा, कहेंगे चलो क्लास में लेट जाते, क्या फर्क पड़ेगा! धीरे-धीरे माया पूरा ही खा लेती। सर्विस की फील्ड में भी आलस्य के बस अनेक बहाने बनाते। दिल सच्ची नहीं तो अनेक कारण निकलते। दिल सच्ची हो तो कोई भी कारण नहीं। बाबा ने कहा बच्चे अपने संकल्पों को स्टॉप करने की प्रैक्टिस करो। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी निराकारी स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करो, इसके लिए नियम बनाओ। ड्रिल करो, अटेन्शन रखकर प्रैक्टिस करो तो बुद्धि शीतल और शक्तिशाली बन जायेगी। खुशी में रहेंगे।