माया आने का कारण है अहम् अर्थात् स्वयं का अहंकार

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नशा विरोध पैदा करता, एकता को तोड़ देता और अपनी स्थिति को नीचे गिराता है क्योंकि उल्टे नशे वालों की बुद्धि में रहता कि ”मैं”। अभी इस ”मैं” अर्थात् अहम् का त्याग करो। यही बहुत बड़ा त्याग है।

हमारे इस रथ का सारथी स्वयं शिव बाबा है। इसलिए हम सभी बेफिक्र बादशाह हैं। सारथी जहाँ और जैसे रथ को चलाये, खड़ा करे, इशारा करे, उसी प्रमाण चलना है। दूसरा, मैं हमेशा समझती हूँ कि मुझे हे अर्जुन बनना है। आप हरेक हे अर्जुन हो ना! शिरोमणि गीता मशहूर ही है हे अर्जुन से। हे अर्जुन अर्थात् जिसको यह श्रीमत मिली। अर्जुन को जब साक्षात्कार हुआ तब निश्चय हुआ और बोला, हे भगवन जो आज्ञा। और आज्ञा पर चलते वह सदा आगे बढ़ते विजयी हुआ। तो आप हरेक वास्तव में हे अर्जुन हो और अर्जुन की बुद्धि में एक भगवान है। दूसरी स्टोरी यह बताते हैं कि दुर्योधन और अर्जुन जब दोनों भगवान के सामने आये, तो दुर्योधन ने भगवान से उनकी पूरी सेना मांगी, माया मांगी और अर्जुन ने कहा मुझे सिर्फ आप चाहिए। आप मिले सब कुछ मिला। फिर बताते हैं कि दुर्योधन ने कहा कि पहले तो मैं आया था लेकिन आपने अर्जुन से पहले क्यों पूछा। तो इशारा मिला कि तुझे अभिमान है जो सिर के पास खड़े हो और अर्जुन में नम्रता है जो चरणों के पास खड़ा है। तो एक अभिमान के कारण सबकुछ प्राप्त होते भी उसकी हार हुई और नम्रता के कारण अर्जुन की जीत हुई – यह है महाभारत का दो शब्दों में वास्तविक सार। तो पहले निश्चय हो कि बाबा मेरा साथी है और बाबा ही मेरा सारथी है और उनकी श्रीमत पर कदम-कदम चलने में ही मेरा कल्याण है, विजय है। चाहे दुनिया खत्म हो जाये, अर्जुन के देखते-देखते सब मारे गये लेकिन अर्जुन सदा अडोल रहा। दुर्योधन ने अपना अभिमान बहुत दिखाया, लेकिन उनकी सारी अक्षोणी सेना खत्म हो गयी। अर्जुन को था निश्चय, इसी पर अडोल रहा, तो उसकी जीत हुई। और दुर्योधन की माया के कारण, देह अभिमान के कारण हार हुई। जिसकी बुद्धि में माया आयी और वैर आया तो समझो कि एक ना एक दिन सर्वंश नाश हो ही जाता है जैसे कि दुर्योधन का हुआ। कहने का मतलब कि बाबा हमें कहते कि हे अर्जुन तुम सदा प्रीत बुद्धि रहकर श्रीमत पर चलो और अपनी स्थिति को ऐसा अचल-अडोल बनाओ जो कभी तुम्हें माया हिला नहीं सके। अभी यह वक्त है ही अपने देह अभिमान को तोडऩे का। इस देह अभिमान के नशे के कारण ही आपस में विरोध होता इसलिए बाबा कहते कि कभी भी अपना नशा नहीं दिखाओ। नशा विरोध पैदा करता, एकता को तोड़ देता और अपनी स्थिति को नीचे गिराता है क्योंकि उल्टे नशे वालों की बुद्धि में रहता कि ‘मैं’। अभी इस ‘मैं’ अर्थात् अहम् का त्याग करो। यही बहुत बड़ा त्याग है। हम शुरु से देखते आये हैं कि जब भी किसी को माया आयी है तो उसका कारण है अहम(स्वयं का अहंकार) अहम में सब आ जाता है। चाहे अपने बुद्धि का, अक्ल का, अपनी होशियारी का या कोई भी कार्य का, धन का नशा है, सर्विस का या जॉब का नशा है, प्राप्तियों का नशा है, लौकिक पढ़ाई का नशा है – यह सब नशे बड़े नुकसान कारक हैं। तो यह जो देह अभिमान के अनेक गुप्त नशे हैं, यह सब बाहर से दिखाई नहीं पड़ते हैं इसीलिए कई बार आता है गोपी बनना अच्छा है क्योंकि गोपी बनने में नशा नहीं आता है और जब अपने को गोप समझते तो नशा चढ़ता है, इसकी भी गुह्य फिलॉसफी है। जैसे उधव माना नशा। गोपी माना बाबा के लव में लीन, बाबा के लव में प्रीत बुद्धि। तो आप कभी उधव नहीं बनना, प्लीज़। उधव बनेंगे तो ज़रूर कुछ नशा चढ़ेगा। हम सभी गोपियाँ हैं, भले आप लोगों को पाण्डव कहें परन्तु प्रैक्टिकल में हम सभी गोपियाँ हैं, चाहे भाई हो चाहे बहनें हो। गोपी बनने में बहुत आनन्द है, उधव बनेंगे तो आनन्द नहीं ले पायेंगे। हमें बाबा के सामने न उधव बनना है, न नशा दिखाना है। कहा जाता है बड़े सो बड़े छोटे शुभान अल्ला। बड़ों को तो फिर भी फिकरात होगी, छोटे बेफिक्र होते हैं। हमें कभी किसी के प्रभाव में नहीं आना है। सबसे सूक्ष्म माया है प्रभाव। प्यारे भले रहो परन्तु उतना ही न्यारे रहो। पहले न्यारा रहकर फिर प्यारे रहो। न्यारे हो करके प्यारे नहीं बनो, नहीं तो माया के प्यारे बन जाते, क्योंकि उस प्यार में न्यारेपन की शक्ति नहीं होती है इसलिए पहले न्यारा बनो फिर प्यारे बनो तब बैलेन्स बराबर रहेगा। बाबा ने हम सबको दो लेसन दिये हैं – एक बेहद के त्यागी बनो, दूसरा बेहद के वैरागी बनो। बेहद के त्याग में सभी सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों का त्याग हो जाता है। त्याग माना त्याग, त्याग में प्रभावित होने की बात नहीं आती है। अगर आती है तो वह भी माया है। बाबा को जिसका जिता भाग्य बनाना है उतना बनायेगा तो हम क्यों किसी के पीछे प्रभावित हों। किसी भी व्यक्ति पर व वैभव पर हम प्रभावित क्यों हों! कई फिर सेवा करके अपने को ही क्रक्रवाह रे मैंञ्जञ्ज समझते हैं अर्थात् मिया मिू बनते हैं। मिया मिू माना अपने को बहुत होशियार समझना। परन्तु बाबा ने हमें सिखाया है कि तुम कभी किसी बात में भी प्रभावित न हो। कैसी भी आकर्षण करने वाली बात तुम्हारे सामने आवे, अरे जिस पर दुनिया प्रभावित हो वह हमारे ऊपर कुर्बान है, हम क्यों किसी के ऊपर कुर्बान जायें। जिसको दुनिया पुकारे, वह हमारे ऊपर कुर्बान है, इससे बड़ा भाग्य और क्या चाहिए। तो इसके लिए हमें किसी के गुणों पर प्रभावित नहीं होना है। गुणवान है, गुण लो अच्छी बात है क्योंकि हमें सबसे अच्छे गुण लेना है। कोई की बुद्धि अच्छी है, उसकी बुद्धि का उपयोग करो। कोई का व्यवहार अच्छा है, उनसे कुशल व्यवहार की कला सीखो। किसमें लिखने का आर्ट अच्छा है, उससे वह आर्ट अपनाओ। सीखना हमारा फर्ज होता है परन्तु उसी पर प्रभावित होना, यह श्रीमत नहीं है – यह है माया। अच्छे का गुण भले गाओ, कोई गुण सीखना है वह भी सीखो, गुण चोर तो भले बनो परन्तु किसी के गुणों के ऊपर न्यौछावर नहीं हो जाओ। यह है ज्ञान की गहराई, इसीलिए हम आप सबको कहते – ना कभी नशा रखो, ना कभी अपना अभिमान रखो, ना कभी किसी पर प्रभावित हो, ना कभी किसी की आकर्षण में आओ। एक बाबा से सच्चे दिल की प्रीत हो, यही याद की यात्रा है। अगर किसी के भी नाम रूप से प्रीत हुई तो बाबा की याद में विघ्न ज़रूर पड़ेगा।

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