जैसे हम किसी बीमारी का इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो क्या करता है। वो दवा देता है और साथ में परहेज बताता है। उसी प्रकार ज्ञान भी एक दवा है जो हमारे मन की बीमारी का इलाज करती है। आपने अपने जीवन में सच्चा ज्ञान लेना शुरू किया। मानो कि आपने दवा लेना शुरू किया।
हमें जीवन में कभी भी किसी भी चीज़ के लिए यह नहीं कहना चाहिए ”मैं कोशिश करूंगा”। परमात्मा कहता है ”सिर्फ हाँ जी’ करो और बाकी काम वो स्वयं कर लेगा। जब आपका बच्चा आपको किसी चीज़ के लिए ”हाँ जी” करता है, तो आपसे उसको कितनी दुआएं और आशीष मिलती है। ब्लेसिंग्स वो चीज़ है, जो असंभव को भी संभव कर देती है। जीवन के बड़े से बड़े विघ्न को समाप्त कर देती है। व्यक्ति के भाग्य को बदल सकती है। ये तो मनुष्यात्माओं की ब्लेसिंग है। सोचिए, अगर हमें परमात्मा की ब्लेसिंग मिलेगी तो जीवन में क्या परिवर्तन आ जाएगा। आप अभी तक जिन-जिन चीज़ों के लिए कह रहे थे ठीक है, सोचते हैं, कोशिश करेंगे…। आज से उसको बदलते हैं और कहते हैं वो(परमात्मा) करा रहा है। इससे सारा कार्य सहज हो जाता है। इसे लाखों लोगों ने अपने जीवन में अपनाया है। अभी हम डार्क सर्कल में जी रहे थे। अब हमें उससे निकलकर व्हाइट सर्कल की ओर आना है। अगर हमने कुछ भी ऐसा खाया, पिया, जिसका वायब्रेशन डार्क है, नकारात्मक ऊर्जा है, तो फिर मेहनत ज्य़ादा लगती है और रिज़ल्ट कम मिलता है। यदि हमें खाने-पीने की चीज़ों को सात्विक बना लिया तो इससे जीवन में बहुत फायदे होते हैं। कई बार हम सोचते हैं कि बहुत नियम हैं ये नहीं करो, वो नहीं करो। दरअसल ये नियम नहीं हैं, ये हमारे फायदे के लिए परहेज हैं। जैसे हम किसी बीमारी का इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो क्या करता है। वो दवा देता है और साथ में परहेज बताता है। उसी प्रकार ज्ञान भी एक दवा है जो हमारे मन की बीमारी का इलाज करती है। आपने अपने जीवन में सच्चा ज्ञान लेना शुरू किया। मानो कि आपने दवा लेना शुरू किया। हम सबको पता है कि दवा के साथ परहेज भी ज़रूरी होता है तभी बीमारी जल्दी ठीक होती है। इसे सिर्फ तीन महीने के लिए एक्सपेरिमेंट करके देखना है। आपको ”हाँ जी” भी सिर्फ तीन महीने के लिए आपने आप से और परमात्मा से करना है। फिलहाल जीवर भर के लिए अभी ”हाँ जी” नहीं करना। हमें ऐसे ही कभी भी कोई बात नहीं माननी चाहिए। पहले प्रयोग। प्रयोग के बाद अनुभव। जब अनुभव हो जाएगा तब आपने आपको और परमात्मा को कहना जीवन भर के लिए ”हाँ जी”। तीन महीने के लिए हम रोज़ सुबह ध्यान करेंगे, सात्विक भोजन करेंगे और सात्विक चीज़ें ही पिएंगे। हमें ऐसी कोई भी चीज़ खानी-पीनी नहीं चाहिए, जिससे मस्तिष्क की ऊर्जा का ह्रास हो या डाउन होती हो। मोबाइल के विषय में भी बात करना ज़रूरी है। क्या ऐसा मुमकिन है कि हम सारा दिन फोन इस्तेमाल ही न करें? खुद से पूछें कि फोन हमसे क्या छीन रहा है? ये क्यों हमारे समय का नाश कर रहा है। असल में वो फोन नुकसान नहीं कर रहा है लेकिन उस पर जो सारा दिन हम देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं वही नुकसानदेह है। फोन को फोन की तरह यूज़ करना था लेकिन आज वो क्या बन गया? सूचनाओं का ज़रिया। और सूचनाओं की गुणवत्ता भी कैसी है। तो जो हम सुनेंगे, पढ़ेंगे, देखेंगे – वैसा हम बनेंगे। ये लॉ है। सारा दिन फोन पर जो सूचनाएं आ रही हैं। सिर्फ वही सुनना, पढऩा, देखना जैसा बनना है। कई बार लोग कहते हैं देखे बिना कैसे पता चलेगा कि अच्छी चीज़ है कि नहीं। मैं कहती हूँ कि देखे बिना पता चल जाता है कि कैसी वाली चीज़ है। अब हमें गॉसिप करने के लिए लोगों की भी ज़रूरत नहीं है। गॉसिप सारा दिन ऑनलाइन मिल रही है। ज़रा सोचिए, दिन की शुरूआत सुबह-सुबह गॉसिप सुनकर करेंगे, और फिर कहते हैं ना कि सुबह-सुबह किसका चेहरा देखा था। हम आजकल मोबाइल का चेहरा देखते हैं। अब सुबह-सुबह सबसे पहले परमात्मा का ज्ञान सुनें। जो सुनेंगे, पढ़ेेंगे, देखेंगे तो हम वैसा बनेंगे। ये बैलेंस वर्क में नहीं लाना है। ये बैलेंस हमें लाइफ में लाना है। लाइफ मतलब एनर्जी। वो लाइफ भृकुटि के मध्य में है। जब ये जीवन निकल जाता है तो ये सिर्फ शरीर रह जाता है। जीवन में संतुलन आएगा(आत्मा में) तो बाहर सब ठीक हो जाएगा।