एक सेकण्ड में अपने को अपने सम्पूर्ण निशाने और नशे में स्थित कर सकते हो? सम्पूर्ण निशाना क्या है, उसको तो जानते हो ना। जब सम्पूर्ण निशाने पर स्थित हो जाते हैं, तो नशा तो रहता ही है। अगर निशाने पर बुद्धि नहीं टिकती तो नशा भी नहीं रहेगा। निशाने पर स्थित होने की निशानी है नशा। तो ऐसा नशा सदैव रहता है? जो स्वयं नशे में रहते हैं वह दूसरों को भी नशे में टिका सकते हैं। जैसे कोई हद का नशा पीते हैं तो उनकी चलन से, उनके नैन-चैन से कोई भी जान लेता है – इसने नशा पिया हुआ है। इसी प्रकार, यह जो सभी से श्रेष्ठ नशा है, जिसको ईश्वरीय नशा कहा जाता है, इसी में स्थित रहने वाला भी दूर से दिखाई तो देगा ना। दूर से ही वह अवस्था इतना महसूस करें – यह कोई ईश्वरीय लगन में रहने वाली आत्मायें हैं। ऐसे अपने को महसूस करते हो? जैसे आप कहाँ भी आते-जाते हो, तो लोग देखने से ही समझें कि यह कोई प्रभु की प्यारी-न्यारी आत्मायें हैं। ऐसे अनुभव करते हैं? भक्ति मार्ग में भी ऐसी आत्मायें होती हैं। उन्हों के नैन-चैन से प्रभु प्रेमी देखने आते हैं। तो ऐसी स्थिति इसी दुनिया में रहते हुए, ऐसी कारोबार में चलते हुए समझते हो कि यह अवस्था रहेगी या सिर्फ लास्ट में दर्शनमूर्त की यह स्टेज होगी? क्या समझते हो- क्या अन्त तक साधारण रूप ही रहेगा व यह झलक चेहरों से दिखाई देगी? व सिर्फ लास्ट टाइम जैसे पर्दे के अन्दर तैयार हो फिर पर्दा खुलता है और सीन सामने आकर समाप्त हो जाती है, ऐसे होगा? कुछ समय यह झलक दिखाई देगी। कई ऐसे समझते हैं कि जब फस्र्ट, सेकण्ड आत्मायें जो निमित्त बनीं वही साधारण गुप्त रूप अपना साकार रूप का पार्ट समाप्त कर चले गये तो हम लोगों की झलक फिर क्या दिखाई देगी? लेकिन नहीं। क्रसन शोज फादरञ्ज गाया हुआ है। तो फादर का शो बच्चे प्रैक्टिकल में लाने से ही करेंगे। क्रअहो प्रभुञ्ज की पुकार जो आत्माओं की निकलेगी व पश्चाताप की लहर जो आत्माओं में आयेगी वह कब, कैसे आयेगी? जिन्होंने साकार में अनुभव ही नहीं किया उन्हों को भी बाप के परिचय से कि हम बाबा के बच्चे हैं, यह कब मानेंगे कि बरोबर बाप आये लेकिन हम लेागों ने कुछ नहीं पाया? तो यह प्रैक्टिकल रूहानी झलक और फरिश्तेपन की झलक चेहरे से, चलन से दिखाई दे। अपने को और आप निमित्त बनी हुई आत्माओं की स्टेज को देखते हुए अनुभव करेंगे- बाप ने इन्हों को क्या बनाया! और फिर पश्चाताप करेंगे। अगर यह झलक नहीं देखते तो क्या समझेंगे? इतना समय ज्ञान तो नहीं लेंगे जो नॉलेज से आपको जानें। तो यह प्रैक्टिकल चेहरे से झलक और फलक दिखाई देगी। बाप के तो महावाक्य ही हैं कि मैं बच्चों के आगे प्रत्यक्ष होता हूँ। लेकिन विश्व के आगे कौन प्रख्यात होंगे? वह साकार में बाप का कत्र्तव्य था, प्रैक्टिकल में बच्चों का कत्र्तव्य है प्रख्यात होने का और बाप का कत्र्तव्य है बैकबोन बनने का, गुप्त रूप में मददगार बनने का। इसलिए ऐसे भी नहीं कि जैसे मात-पिता का गुप्त पार्ट चला वैसे ही अन्त तक गुप्त वातावरण रहेगा। जयजयकार शक्तियों की गाई हुई है और ‘अहो प्रभु’ की पुकार बाप के लिए गाई हुई है।