चलो सोच का मैजिक देखते हैं….

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इस दुनिया में कई बार कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं, जिसको सुनने के बाद या उसको पढऩे के बाद हमारे मन में ख्याल आता है — अरे, सोच-से ऐसे कैसे हो सकता है? शब्दों से ऐसे कैसे हो सकता है? तो मैं आपको एक छोटी-सी स्टोरी से इस बात को बताता हूँ कि एक व्यक्ति को बहुत दिन से ख्याल था कि कहीं अपनी फैमिली को लेकर जाना है और उनको अच्छा-सा खाना खिलाना है, डिनर पर ले-जाकर। उसकी प्लैनिंग करने लगा। लेकिन, चूँकि वो मध्यम वर्गीय परिवार से था तो इतना पैसा नहीं था और रेस्टोरेंट बहुत महंगा था, तो वहाँ जाने की प्लैनिंग की। अब वहाँ फैमिली को लेकर जाना है तो सोच रहा था कि पहले टेबल बुक कराना होगा, तो टेबल भी बुक करा लिया और टेबल बुक कराने के बाद, कुछ दिन बाद प्लैनिंग हो गई तो वहाँ पहुँचा। पहुँचने से पहले की ये घटना है कि जब वो गाड़ी से जा रहा था तो बड़ा एन्जॉय करते जा रहा था, उसकी फैमिली भी साथ में बैठी थी, सब लोग बैठे थे। बहुत ही एन्जॉय करते जा रहा था। तो जिस रोड से वो जा रहा था उसके साइड वाले रोड़ से ही उसको किसी ने ओवरटेक किया और उसी समय किसी सामने वाले ने उसको क्रॉस किया और जाते-जाते उस दूसरे व्यक्ति ने उसको एक छोटा-सा शब्द बोल दिया —’मूर्ख हो क्या? गाड़ी चलानी भी आती है तुमको?’ उसके बाद इस व्यक्ति ने उसको बहुत बुरा-भला कहा, बहुत कुछ कहा… और उस बात को सुन कौन रहा था? उसकी पत्नी या उसके फैमिली के लोग। खैर, फिर पत्नी ने बोला कि जब भी आप हमें कहीं लाते हो ना तो बस आप ऐसे ही कोई बात कह देते हो। लाओ तो शान्ति से लाओ, ऐसे नहीं लाओ। तो उसमें फिर उसने इरिटेट होके बोला कि ‘ठीक है, तुम आगे से कैसे भी आओ, लेकिन मेरे साथ नहीं आओ।’ ऐसे लड़ाई-झगड़े शुरू हुए और बाद में फिर खाना खाया, घर गया, तो रातभर उसको नींद नहीं आई, सोचता रहा कि ऐसे तो हम बड़े ही प्लैनिंग से एन्जॉय करने के लिए गये थे लेकिन एकाएक बीच में ऐसा क्या हो गया कि हमारी स्थिति खराब हुई! तो सोचते-सोचते उसको वो शब्द याद आया कि उस व्यक्ति ने एक शब्द बोला — ‘तुम मूर्ख हो? तुमको गाड़ी चलाने नहीं आती?’ मेरा शीशा बन्द था। लेकिन मुझे वो शब्द सुनाई दे गया, तो मैंने उसको बहुत कुछ बोला उसको सुनाई नहीं दिया क्योंकि वह तो चला गया था। तो सुन भी मैं रहा था, सोच भी मैं रहा था, बोल भी मैं रहा था। तो एक छोटे-से शब्द ने हमारी सारी शान्ति, अशान्ति में बदल दी। मैं कितना आराम से जाकर भोजन करता, स्वीकार करता और शान्ति से आता। लेकिन सुन भी मैं रहा हूँ, बोल भी मैं रहा हूँ और सोच भी मैं रहा हूँ। कैसा? एक निगेटिव शब्द! एक निगेटिव बात! जिसने मेरा पूरा समय, पूरा जो सफर था उस समय का, उसको खराब कर दिया। अब आप बताइये कि एक छोटे से शब्द ने, चाहे वो निगेटिव ही शब्द था, नकारात्मक था उसको मैंने सुना और उससेमेरा ये भाव बना। ऐसे पूरे दिन में अपने लिए जाने-अनजाने या किसी के कहे हुए शब्दों को हम सोचते हैं और उसको सोच-सोच के अपने अन्दर ले आते हैं। जैसे, मार्केट में कुछ ऐसी बीमारी आ गयी, आपने उसको बस सुना था और उसके लक्षणों को पढ़ लिया था; तो जैसे सुना, उसके लक्षणों को पढ़ा…, आपको ऐसे नहीं भी दिख रहा है, लेकिन थोड़ा भी ऐसा कुछ दिखा, तो आपने उस बात को सोच के अपने आप को भी बीमार कर लिया। तो इसका मतलब क्या हुआ! क्योंकि बीमार होने से पहले या बीमार अपने आपको देखने से पहले, आपने उसको सुना, पढ़ा और उसके बाद उसको सोचना शुरू किया। तो हम सब देखो जो सोच रहे हैं ना, वो हमारे अन्दर बैठता चला जा रहा है। और सोच किसके आधार से रहे हैं? जो इन आँखों से दिखाई देता है। उसी को देख रहे, उसी को सोच रहे हैं। जो कानों से सुनाई दे रहा उसी को सुन रहे, उसी को सोच रहे। लेकिन हमारे अन्दर इस बात की बुद्धि, इस बात की परख, इस बात की शक्ति नहीं है कि उसको समझ सकें कि ये गलत है। मतलब ज़रूरी नहीं है कि किसी को कोई रोग हुआ, किसी को कोई बीमारी हुई तो वो हमको भी हो। जैसे सितम्बर का महीना आया, या मच्छरों का कोई समय आया काटने का, इस समय सबको डेंगू होगा, इस समय ये होगा, अगर मच्छर काटेंगे तो सबको वही रोग होगा। अब ये सारे छोटे-छोटे संकल्प हैं, लेकिन जैसे आपको थोड़ा-सा भी ऐसा लक्षण दिखा, उसको सोच के वैसा लक्षण क्रिएट कर लिया। ये बड़ा ही प्रायोगिक और प्रैक्टिकल अनुभव है। इस अनुभव को जीवन में लाना बहुत ज़रूरी है, बहुत आवश्यक है। क्योंकि जब तक यह अनुभव हमारे जीवन में नहीं आयेगा तब तक हम इन सोच से और संकल्पों से बच नहीं पायेंगे। बस आपको इस बात को समझना है गहराई से बैठ के कि जो कुछ भी इस दुनिया में हम देख रहे हैं वो फिल्टर होके हमारे अन्दर नहीं जा रहा है। एज़ इट इज़(जैसा है वैसा) जा रहा है। और जो एज़ इट इज़ जा रहा है वो डेफिनेटली(निश्चित रूप से) नुकसान पैदा करेगा। जैसे मैं आपको एक छोटा-सा उदाहरण दूँकि अगर किसी मसाले के पैकेट पर क्रएमडीएचञ्ज लिखा है तो आप उस मसाले को खरीदते हैं क्योंकि उसके ऊपर लेबल लगा हुआ है। लेकिन उस क्रएमडीएचञ्ज के लेबल को हटा दो, तो आप उस मसाले को खरीदेंगे ही नहीं। ऐसे ही जो दुनिया में लोगों ने लेबलिंग की किसी-किसी के संकल्प को लेकर, सोच को लेकर, बात को लेकर, उसको हमने सुना, उसी को समझा और एज़ इट इज़ उसको रिसीव कर लिया। इसकी वजह से मैं हर पल तंग हूँ, हर पल-हर क्षण अपने अन्दर वो चीज़ क्रिएट कर रहा हूँ जो मैं नहीं चाहता हूँ। तो मैं स्वस्थ भी तो हो सकता हूँ ना, अच्छे-अच्छे विचारों को सोचकर! तो क्यों न इस सोच के मैजिक को समझ जायें और अपने आपको स्वस्थ और निरोगी बना लें….! तो चलो आज से इस कार्यक्रम में जुड़ जाते हैं, खुद को, अपने आपको जोड़ते हैं और आगे बढ़ते हैं।

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