इस जीवन को इतना महत्त्वपूर्ण समझते? एक-एक कन्या लाखों की माँ है। एक दुर्गा अनेकों की भावना पूर्ण करने वाली है। एक दुर्गा के ही लाखों भक्त हैं।
हम सब बच्चों को, उसमें भी विशेष कन्याओं-माताओं को, जो कर्मबन्धनों से मुक्त हैं उन्हें बाबा ने बहुत बड़ी जि़म्मेदारी दी है, सेवा दी है, वरदान दिया है। बख्तावर बाबा ने हमारी तकदीर बनाई है। हम सब यह जानते हैं कि हमारे जीवन की जो घडिय़ां हैं वह स्वयं भगवान ने हमारी रेखायें बनाई हैं। हमारी रेखाओं में बाबा ने विश्व की सेवा के साथ महादानी, वरदानी मूर्त बनाया है। क्या सचमुच हरेक स्वयं को इतना भाग्यवान समझ अमृतवेले आँख खोलते ऐसा अनुभव करते हो? जीवन दाता ने हमारे जीवन की एक-एक घड़ी स्वयं की और अन्य की जीवन बनाने के लिए दी है। हमारा जीना किसके लिए है? स्वयं के लिए या विश्व के लिए? लोग कहते जीवन है खाना, पीना, मौज करना। दूसरे कहते देश भक्ति के लिए, तीसरे कहते हमारा जीवन भगवान के लिए है। लेकिन आप सबका जीना किसके लिए है? यह कुमारी जीवन इस संगम पर बहुत-बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस जीवन को इतना महत्त्वपूर्ण समझते? एक-एक कन्या लाखों की माँ है। एक दुर्गा अनेकों की भावना पूर्ण करने वाली है। एक दुर्गा के ही लाखों भक्त हैं। संतोषी माँ, काली, सरस्वती, लक्ष्मी के अनेकानेक भक्त हैं… तो आप सब इतना पूज्य अपने को समझती हो? वह एक कन्या कौन है? वह एक कुमारी कौन है?
हम कई बार सोचती हूँ कि भोजन की जो एक ग्राही खाते वह किसलिए खाते? टेस्ट के लिए या इस रथ से सेवा करने के लिए? हम खुद के लिए हूँ या खुद की खुदाई के लिए हूँ? मैं दुर्गा हूँ, गायत्री व संतोषी माँ हूँ, क्या स्वयं को ऐसा समझते? मैं भारत की माँ हूँ या विश्व की माँ हूँ। बाबा ने मुझे स्वयं ही भाग्य खींच कर दिया है। बाबा ने कहा है तू एक-एक शक्ति हो। क्या ऐसा स्वयं को समझते हो? मैं 500 कमाने वाली नौकरानी हूँ या विश्व की सेवाधारी हूँ? मेरे प्राण, मेरे श्वास, मेरे संकल्प विश्व के लिए हैं या स्वयं के लिए हैं? बाबा के लिए हैं या स्वयं के लिए? बाबा के साथ विश्व है। यदि स्वयं को विश्व सेवाधारी नहीं समझते तो मैं किसलिए जि़ंदा हूँ, मैं किसलिए हूँ?
जीवन में सुख किस बात में है? शादी करूं, प्रवृत्ति बनाऊं, गृहस्थी बनाऊं या अनेक आत्माओं की दुआयें लूँ? कृपा की, भाग्य बनाने के सेवा की पात्र बनूँ? यह निर्णय करो कि मैं स्वयं किसलिए हूँ? स्वयं को डायमण्ड बनाकर औरों को डायमण्ड बनाने के लिए हँू या ऐसे ही? खुद से पूछो कि मेरी तकदीर का सितारा किसने जगाया है? अपनी तकदीर पर मुझे नाज़ है? निश्चय के आधार पर स्वयं पर नाज़ है? मैं छोटी नहीं हूँ। पहले खुद से पूछो निर्बल हूँ या बलवान? बकरी हूँ या शेरनी? विश्व कल्याण की सेवा के लिए हूँ या हिलती हूँ? निर्भय हूँ या भयभीत? हरेक ने अपना फैंसला क्या किया है?
बाबा ने मुझे सेवा का ताज अभी दिया है। कल्प में फिर यह ताज नहीं मिलेगा। अभी ताज नहीं पहना तो कभी नहीं पहन सकेंगी। यदि ताज तख्त को छोड़ा तो तख्ते पर बैठना पड़ेगा। ऐसा तो खुद को नहीं बनाना है ना! कई कहते हैं पैरेन्ट्स हैं, सम्बन्धी हैं। लेकिन सितम तो सभी को सहन करना पड़ता है। प्यार किया तो डरना क्या! प्यार किया है कोई चोरी तो नहीं की है ना! किसी लड़के से प्यार किया तो पाप है। जिसे दुनिया पुण्य कहती, उसे बाबा पाप कहता है। बाबा ने अजामिल जैसे हम पापियों का उद्धार किया। ज्ञान से पहले भी जो पाप हुए, उसे भी बाबा बख्श देता(खत्म कर देता) परन्तु बाबा यह भी कहता अब अगर मेरे होकर नहीं रहेंगे तो पापों का बोझ भुगतना पड़ेगा। मेरा बनेंगे तो चौपड़ा साफ हो जायेगा। अब कोई पाप कर्म नहीं करो, यदि अब भी उधर बुद्धि जाती है तो एक का सौगुणा भोगना पड़ेगा। बाप का बनना अर्थात् जीवन से मरना।