अगर हर रोज़ अपने को कहेंगे कि मुझे मेरे लिए टाइम नहीं है तो फिर अपने से रिश्ता नहीं जुड़ेगा और मन से रिश्ता नहीं जुड़ेगा। अगर मैंने उससे रिश्ता जोड़ा नहीं है तो वो मेरा कहना माने क्यों! कहना तो वही मानता है जिससे हमारा रिश्ता है।
अपने रिश्तों को सुंदर बनाने के लिए सबसे पहले अपने साथ रिश्ता जोडऩा होगा। जब तक मेरा रिश्ता अपने साथ नहीं है, तब तक औरों से रिश्ता जोडऩा बहुत कठिन है। जब तक मैं अपने से प्यार नहीं करूं, किसी और से प्यार करना मुश्किल है। जब तक मैं अपने लिए समय नहीं निकालूं, किसी और के लिए समय निकालना मुश्किल है। जब तक मैं अपने को नहीं समझूं, तब तक किसी और को समझना मुश्किल है। फिर हम आजकल कहते हैं कि हम उनको समझ नहीं पाते हैं। वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, वो ऐसा क्यो बोल रहे हैं, उनका व्यवहार ऐसा क्यों है मुझे समझ में नहीं आता है। चलो उनका समझ में नहीं आता है कोई बात नहीं। मैं ऐसा क्यों बोलती हूँ वो समझ में आता है? मेरा मन यहां-वहां क्यों जाता है वो समझ में आता है? जब तक अपना ही नहीं समझ आता, तब तक किसी और का समझना मुश्किल है।
जब हम अपने को समझ लेते हैं तो और लोग अपने आप समझ में आने लग जाते हैं। दूसरों को गुस्सा क्यों आता है मुझे नहीं समझ में आता, बात
कोई इतनी बड़ी नहीं होती है ऐसे ही शोर मचा देते हैं। लेकिन मुझे गुस्सा क्यों आता है ये समझ में आता है। जब मुझे ये समझ में आ जाएगा कि मुझे गुस्सा क्यों आता है, मेरे अन्दर उस समय क्या होता है, तो उनको समझना आसान हो जाएगा। इसलिए सबसे पहले अपने को समझना, अपने को जानना, अपने को पहचानना और अपने से रिश्ता जोडऩा। हम अपने लिए कितना समय निकालते हैं रोज़? अपने लिए तो कहेंगे हमारे पास टाइम नहीं है। जो लोग ज़रूरी होते हैं, जो रिश्ते हमारे लिए मायने रखते हैं, अगर हम हर रोज़ उनको कहें कि हमारे पास आपके लिए टाइम नहीं है तो रिश्ता कैसा हो जाएगा! अगर हर रोज़ अपने को कहेंगे कि मुझे मेरे लिए टाइम नहीं है तो फिर अपने से रिश्ता नहीं जुड़ेगा और मन से रिश्ता नहीं जुड़ेगा। अगर मैंने उससे रिश्ता जोड़ा नहीं है तो वो मेरा कहना माने क्यों! कहना तो वही मानता है जिससे हमारा रिश्ता है। जिसको हम प्यार करते हैं, जिस पर हम ध्यान देते हैं, जिसके साथ हम समय बिताते हैं वो हमारा कहना मानते हैं। मन को हम प्यार नहीं करते, उसके साथ समय नहीं बिताते, हर समय कहते हैं टाइम नहीं है और फिर हम चाहें कि हमारा मन हमारा कहना मानें तो ये होने वाला नहीं है। जैसे ही इसके साथ थोड़ा-सा समय बिताना शुरू किया, इसको प्यार से समझना शुरू किया, इसको प्यार से अनुशासित करना शुरू किया तो यह आपका कहना मानना भी शुरू कर देता है। सारा दिन में बीच-बीच में एक मिनट के लिए रूकें और सिर्फ अपने मन को देखें कि अभी इसमें क्या चल रहा है। और कुछ नहीं करना। सारा दिन विचार चल रहे हैं वो पता चल रहा है कि वो चलते हैं। क्या सोच रहे हैं। मानों सुबह उठे, शरीर बाद में उठता है मन पहले उठ जाता है। कई बार तो वो रात को सोता भी नहीं है। वो रात को भी चल रहा है। जिसको हम सपने कहते हैं, उनमें। जैसे ही सुबह उठते हैं नींद खुली, पहली चीज़ क्या चलना शुरू हो जाता है। जल्दी करो लेट न हो जाएं, पानी भरना है, नहीं भरा तो पानी चला जाएगा। फिर बच्चों को लेट हो जाएगा, उठना है तैयार करना है। ये सब क्या हो रहा है हमारा मन चल रहा है। ये हमारे विचार हैं जो हम बना रहे हैं।
अब हमें क्या करना है। एक सेकंड के लिए- एक मिनट भी नहीं लगता- सेकंड के लिए कौन-सा वाला विचार चल रहा था? चेक करना है क्या चल रहा है। अभी चेक करो क्या चल रहा है। कई बार हम मन के विचारों की तरफ ध्यान नहीं देते तो वो बहुत कुछ चलता जाता है। हमें पता ही नहीं होता क्या चल रहा है। जब पता ही नहीं है कि क्या चल रहा है तो फिर उसको चेंज करना तो संभव ही नहीं है। आप जैसे ही मन को देखेंगे अगर वो गड़बड़ वाले विचार कर रहा होता है तो तुरंत अटेंशन में आ जाता है। क्योंकि हमें तुरंत लग जाता है कि ये मैं क्या सोच रहा हूँ। सिर्फ देखना ही परिवर्तन कर देता है। ये करने में सिर्फ एक सेकंड लगेगा।