खुश रहने के लिए- हमेशा हमारे पास दो विकल्प मौजूद हैं, चयन आपका है

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जब कोई अपमान करे, इंसल्ट करे, गुस्सा करे तब हम क्या करें? जब हमारा कोई कसूर भी नहीं, गलती भी नहीं तो हम उनकी क्यों सुनें? हम क्यों उनके भले-बुरे बोल को सहन करें? क्या ऐसे समय पर हम अपने मन को शांत रख सकते हैं? – जिज्ञासु ने एक महान व्यक्ति के सामने अपनी बात रखी। महान व्यक्ति ने उत्तर दिया- आपके पास तब भी दो विकल्प मौजूद हैं, आप उसका चयन करके शांत भी रह सकते हैं या अपने को अशांत भी कर सकते हैं। जिज्ञासु ने कहा- कोई मेरी इंसल्ट करे और सभी के बीच में करे, बेवजह उल्टे-सुल्टे बोल कहे, तब भी क्या हमें शांत रहना चाहिए? अगर हाँ, तब तो वो हमारे सिर पर चढ़ जायेगा। और वो हमें भला-बुरा कहता रहे और हम सुनते रहें, तब तो हमें वो कमज़ोर समझेगा ना! महान व्यक्ति ने कहा- देखो, अगर आप शांत रहना चाहें तो शांत रह सकते हैं, ये आपके ऊपर निर्भर है और उसमें आपका फायदा ही है, आपका नुकसान हो ही नहीं सकता। ऐसा सुन जिज्ञासु को उत्सुकता पैदा हुई, वो कैसे!
महान व्यक्ति ने कहा, ऐसी परिस्थिति में हमारे पास दो विकल्प हैं, उसमें सही विकल्प को चुनकर सकारात्मकता को यथार्थ रूप में समझते हुए उपयोग करना चाहिए। मेरे पास यही एक विकल्प है कि सामने वाला अगर कुछ भी कहता है तो वो उसकी मनोदशा को दर्शाता है। लेकिन मुझे उस मनोदशा का शिकार होना या नहीं होना, ये विकल्प मेरे पास है। अब आप ही सोचो, अशांति आपको अच्छी लगती है या शांति? नि:संदेश शांति ना! ये तो ऐसा हुआ, कुछ गलत खाकर सामने वाले के पेट में खराबी है, जो पच नहीं रहा है, उसे उल्टी का ख्याल आ रहा है और वो उल्टी कर रहा है। और हम उसे अपने में ग्रहण कर रहे हैं। तो भला हम स्वस्थ रह सकेंगे! या हम भी बीमार हो जायेंगे। तो हमें क्या करना चाहिए? उल्टी को नहीं ग्रहण करना चाहिए ना। ठीक वैसे ही, मानसिक रूप से वो कमज़ोर है, उसका अपने में कंट्रोल नहीं है और हमपर गुस्सा करता है, हमें उत्तेजित करता है और हम उसकी बातों को अपने मन के अंदर प्रवेश करने देते हैं, तो हम भी कमज़ोरी का शिकार बन जायेंगे, हम भी उत्तेजना का व्यवहार करने लगेंगे। ऐसे वक्त पर सकारात्मक ऊर्जा को सामने रखते हुए अपनी स्थिति को विचलित होने से बचाये रखना ही हमारी पहली प्राथमिकता है। उसी में ही हमारा फायदा है क्योंकि गुस्से से कभी भी कोई काम सही और श्रेष्ठ हो नहीं सकता। तो निर्णय हमें करना है, ये विकल्प सदा ही मेरे सामने मौजूद रहता है, परंतु तुरंत रिएक्ट करने के आदी होने के कारण, सामने से आ रही नकारात्मकता के प्रभाव में आ जाने से हम भी उसको नकारात्मक ऊर्जा देने लग जाते हैं। झूठ का झूठ से प्रतिकार करने से क्या सही हो सकता है? साइंस का इक्वेशन है, निगेटिव+निगेटिव= निगेटिव। अर्थात् झूठ से सत्य की कामना करना बेमानी ही होगी।
किसी की कमज़ोरी की व निगेटिव बात जो सामने से आती है वो उसकी मनोदशा दर्शाती है। लेकिन मेरी मनोदशा सकारात्मक है तो हम उससे मुक्त रहेंगे। अन्यथा तो हम भी उसकी कमज़ोरी के शिकार हो जायेंगे। परमात्मा ने हमें हमेशा दो विकल्प दिये हुए हैं लेकिन आज हम उसका उपयोग नहीं करते हैं और परिणामस्वरूप चारों ओर निगेटिव का निगेटिव के रूप से फल ढूंढऩे की कोशिश करते हैं। इसीलिए हम दु:खी, अशांत होते हैं। हमें इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए चाहे कोई भी परिस्थिति हो, उसके प्रभाव से मुक्त रहना ही सही मायने में समाधान भी है और उसी में सुकून भी है। तो इसकी प्रैक्टिस को हमें बढ़ाना है और सफलता की ओर आगे कदम बढ़ाते रहना है।

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