ब्राह्मण जीवन में आने वाले विघ्न और उनसे पार होने की युक्तियां

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जितने श्रीमत के बाबा इशारे देता, वह सब हमारे सामने क्लीयर आइने में होने चाहिए। उसी पर अपने को चलाओ।

दुनिया में कोई भी बच्चा नहीं जो सोचे मैं बहुत बड़ी अथॉरिटी का बच्चा हूँ, हम तो वल्र्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे हैं, हम बहुत बड़ी अथॉरिटी हैं। बाबा ने हमें बहुत बड़ी अथॉरिटी दी है, तो यह नशा रहता है कि हम वल्र्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे हैं। कोई-कोई हमसे अनेक सवाल पूछते हैं, मैं आज उनका जवाब देती हूँ, कोई कहते हमारी जीवन में यह-यह विघ्न आते हैं। मैं कहती यह दुनिया है ही विघ्नों की। दुनिया माना ही कदम-कदम में विघ्न। जहाँ चलो वहाँ कांटा ही लगेगा। कोई कहते यह बड़े सहयोगी हैं, भल सहयोगी हैं लेकिन बाबा को नहीं जानते। तो वह सहयोग देते ही कई रूप से विघ्न रूप बनते हैं। चाहे कोई ज्ञान के खिलाफ बोलेगा, कोई कहेगा मैं तुम्हारे उद्देश्य को नहीं मानता। चाहे कोई कहेगा कि हम तुम्हारे भाई-बहन के नाते को नहीं मानते। चाहे कहे हम तुम्हारी नीति को नहीं मानते। न मानना ही माना हमारे लिए कोई न कोई विघ्न है। चाहे अपने माँ-बाप हों, चाहे दोस्त हों, चाहे व्यवहार में कोई हो। सब विघ्न रूप बन जाते हैं। कहेंगे अगर तुम ज्ञान में चलोगे तो नौकरी नहीं देंगे। तो विघ्न अनेक हैं।
ब्राह्मण कुल में भी कोई-कोई एक दो के लिए विघ्न रूप बन पड़ते हैं। अगर आज मेरी कोई महिमा करते तो कल गाली भी दे सकते। आगे बढ़ता देखेंगे तो ईर्ष्या करेंगे, आगे नहीं बढ़ेंगे तो ग्लानि करेंगे, यह तो है ही जैसे बुद्धू। हसूंगी तो कहेंगे चंचल है, चुप रहूँगी तो कहेंगे बुद्धू है। अगर सेन्टर पर काम करूंगी तो कहेंगे सारा दिन सेन्टर ही याद आता, घरबार कुछ नहीं। अगर नहीं करूंगी तो कहेंगे यज्ञ स्नेही थोड़े ही है। अगर अपना तन-मन-धन सफल करेंगे तो कहेंगे कुछ तो फ्यूचर का भी सोचना चाहिए। अगर नहीं करेंगे तो कहेंगे मनहूस है। अगर ज्ञान के नशे में सब कुछ भूले हुए होंगे तो कहेंगे इतना नशा थोड़े ही होना चाहिए। अगर नशा नहीं तो कहेंगे इसको तो बाबा पर निश्चय नहीं है। दोनों तरफ मुश्किल ही मुश्किल है।
सिन्धी में कहावत है… चक्की का पुर नीचे का उठाओ तो भी भारी, ऊपर का उठाओ तो भी भारी। न उठाओ तो पीसूं। अगर सिम्पल रहते तो कहेंगे यह सन्यासी बन गया। अगर ठीक-ठाक रहो तो कहेंगे इसे वैराग्य ही नहीं आया। आखिर क्या करूं! कभी बाबा भी मुरली में कहता क्या नौकरी टोकरी करनी है, अगर नहीं करते तो कोई पूछता नहीं। अगर सीरियस रहते तो कहेंगे यह तो बहुत सीरियस है, अगर हल्के होकर रहते तो कहेंगे मर्यादा सीखो। ऐसे अनेक प्रकार की बातें डेली दिनचर्या में आती। मैं उसमें क्या करूं! अगर इस बहन की सुनता तो दूसरी को एतराज होता, बड़ी की सुनता तो छोटी नाराज़, छोटी की सुनता तो बड़ी डांटती। आखिर भी मैं क्या करूं! यह सभी के सवाल हैं – जो सदा से ही चले आते हैं।
जीवन भी एक नईया है, इसको चलाना होशियार मांझी(खिवैया) का काम है, इसके लिए पहली बात हमेशा समझो- जितना रुस्तम बनेंगे उतना रावण रुस्तम बनेगा। रावण क्या-क्या करता, आप उसकी सौ-सौ बातें लिखो। कभी कुदृष्टि लायेगा, कभी संस्कारों की टक्कर में लायेगा, कभी ईष्र्या में, कभी मेरे पन में, कभी जोश में उसकी 100 बातें कम से कम हैं। लेकिन हमें उसे सेन्ट परसेन्ट जीतना है। अब यहाँ चाहिए हमारी बारीक बुद्धि। अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुद्धि। उसके लिए हमारे सामने है श्रीमत। जितने श्रीमत के बाबा इशारे देता, वह सब हमारे सामने क्लीयर आइने में होने चाहिए। उसी पर अपने को चलाओ। हमें बाबा कहता- तुम्हें पावन बनना है, माना सतोप्रधान बनना है। तो पहले अपने को देखो हम बिल्कुल ही तमो थे, हमें सतो में आना है। मैं सत्व गुण में कहाँ तक दृढ़ होती जा रही हूँ! अपनी सत बुद्धि से, अपनी शीतलता की शक्ति से, सत श्रीमत से, बुद्धि साफ होने से, हम उनको राइट वे में सामना कर सकते हैं।

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