मिली… सुख की दुनिया

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एक शहर में एक नूह नामक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। उसका सम्बन्ध राजघराने से था फिर भी वह साधारण प्रजा की तरह रहता था। उसके भाई ही सारा राजकार्य सम्भालते थे। नूह बहुत धार्मिक और दान पुण्य करने वाला था जबकि उसके भाई ऐशप्रस्त थे और प्रजा पर अत्याचार करके धन इकठ्ठा करते थे।
एक दिन की बात है, सूरज निकलने से पहले जब नूह के घर में सभी सो रहे थे। नूह को आकाशवाणी हुई कि यह दुनिया अब जल्दी ही भारी बारिश से जल-मग्न होने वाली है। इसलिए तुमको दो काम करने हैं, एक तो सब को बताना है विनाश के बारे में, दूसरा एक बेड़ा तैयार करना है जिसमें सभी जानवरों, पंछियों और पेड़-पौधों का एक-एक जोड़ा और उनके लिए छह मास का अनाज और पानी उसमें भरना है। साथ में जो लोग इस बात को मानेंगे, उन्हें साथ ले करके उनके लिए भी पर्याप्त सामग्री भरनी है।
जब नूह ने यह सभी नगर वासियों को बताया तो कुछ लोग ही माने और जो माने वह नूह का साथ देने के लिए तन, मन और धन से लग गए। एक ऐसा बेड़ा तैयार किया और दुनिया भर से सभी जानवर, पंछी और पौधों की किस्में मंगवा कर उसमें भरना शुरू कर दिया।
दूसरी तरफ उनके भाइयों ने घमंड में आकर आसमान को छूने वाली इमारतें बनाईं और कहा कि जब बारिश होगी हम बच जायेंगे क्योंकि पानी इतना नहीं भर सकता जितनी ऊंची इमारतें हैं।
आखिर में प्रलय का दिन आ गया, बारिश शुरू हुई और देखते ही देखते इतना तूफान शुरू हो गया कि सभी इमारतें ताश के पत्तों की तरह पानी में बह गईं। उधर नूह का बेड़ा पानी में तैरने लगा। लगभग छह मास तक बारिश होती रही। फिर एक दिन बारिश समाप्त हुई। सूरज दिखाई देने लगा।
नूह ने बेड़े की छत पर जा करके देखा तो दूर एक छोटा-सा ज़मीन का टुकड़ा दिखाई दिया। पानी से चारों और घिरा हुआ ज़मीन का टुकड़ा और उसमें फल और पानी की भरपूरता थी। नूह अपने साथियों के साथ वहीं रहने लग गया। वहाँ हर तरह के ऐश्वर्य एवं सुख सबके लिए थे।
आध्यात्मिक भाव : यह कहानी कलियुग के अंत व सतयुग के आदि के संगमयुग का चित्रण है। जैसे नूह को आकाशवाणी हुई, उसी प्रकार परमात्मा द्वारा प्रजापिता ब्रह्मा(सृष्टि के रचयिता) को भी साक्षात्कार हुआ सुख-शांति वाली सृष्टि के निर्माण और दु:खों की दुनिया के अंत का। जैसे नूह की बात कुछ ही लोगों ने मानी, ठीक उसी प्रकार परमात्मा की बात को भी कुछ ही लोग समझ पाए। नूह को जो ज़मीन समुंदर में मिली थी वह स्वर्ग है। अभी जो इस ईश्वरीय कार्य में मददगार बने, वे ही इस सुख के हकदार बनते हैं और वे ही इस विषय सागर से पार, नई दुनिया में जाते हैं।

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