सोच को साध लिया तो खुशी मिल ही जायेगी

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हमारी बहुत सारी समस्याएं और चिंताएं हमारी बेकार की सोच से उत्पन्न होती है। सोच को अगर साध लिया तो जीवन में खुशी, शांति और प्रेम की कमी नहीं रहेगी।

शब्दों के अर्थ को समझें
हमारे विचार ही नहीं बल्कि हमारी सोच ही हमारे तमाम समस्याओं के मूल में है। इस अंतर को समझना ज़रूरी है। सामान्यत: थॉट्स और थिंकिंग यानी विचार और सोच को एक ही समझ लिया जाता है, जबकि ऐसा है नहीं। विचार यानी कि हमारा एक तरह से मत है, अभिप्राय है, कन्क्ल्यूजि़व अप्रोच है। जबकि सोच, ये हमारे मन-मस्तिष्क में निरंतर चलती रहती है। अगर उसपर लगाम नहीं तो फिर वो सोच हमारी आदत बन जाती है। यह अच्छी भी हो सकती और बुरी भी। ऐसा ही अंतर पेन(कष्ट) और सफरिंग(पीड़ा) के बीच में भी है। हमें इन सूक्ष्म अंतरों को समझना होगा।

नकारात्मकता की जड़
विचार संज्ञा है और सोचना क्रिया। संज्ञा होती है लेकिन क्रियाओं का नियंत्रण हमारे हाथों में है। ये हम ही हैं जो किन्हीं विचारों में अपने समय, ऊर्जा और निष्ठा का निवेश करते हैं। जब भी आप नकारात्मकता का अनुभव करें, सचेत होकर देखें, आप पायेंगे कि ये आपकी सोच का ही परिणाम है। इस बारे में जागृत होना बहुत ज़रूरी है।

प्रतिक्रिया देना हमारे हाथ में
जीवन है तो कष्ट तो होगा ही। लेकिन पीड़ा का होना, न होना हमारे हाथ में है। परिस्थितियां कभी भी पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में नहीं होती हैं। लेकिन परिस्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया देना है और उन्हें कैसे हैंडल करना है, यह अंतत: हमारे ही हाथ में है। एक बार हम इस बात को समझ जायें तो तमाम तरह की परिस्थितियों के लिए अपने को अनुकूल बना सकते हैं।

खुद से पूछते रहें सवाल
अपने आप से निरंतर प्रश्न पूछते रहें कि क्यों? आप जो भी करते हैं, वो क्यों करते हैं? पैसा कमाने के लिए? पैसा आप क्यों कमाना चाहते हैं? यात्रा करने के लिए? यात्राओं का क्या प्रयोजन है? नये-नये लोगों से मिलना और अनुभव अर्जित करना, लेकिन क्यों? क्योंकि इससे खुशी मिलेगी। इस विचार प्रक्रिया को अपनायें। आप करके देखें। आप एक दिन इसे ज़रूर करके देखें और अपना अनुभव स्वयं से साझा करें।

क्या आपको खुशी मिली?
आप जो कुछ भी करते हैं, उसका प्रयोजन यही है कि आपको खुशी, प्यार और शांति मिले। तब सवाल उठता है कि जब सारा उद्यम कुल मिलाकर इन्हीं चीज़ों के लिए है तो आप इनकी खोज सामान्य जीवन की छोटी-छोटी बातों में क्यों नहीं करते? उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि आप जीवन में जो कर रहे हैं उससे ये आपको मिल रही है? इसका मतलब कि जो हम चाहते हैं वो हमारे हाथ में है। तो हम इसे रोज़मर्रा की जि़न्दगी में शामिल करें।

प्रेम क्या है इसे समझें
खुशी और शांति तो समझ में आती है, प्रेम को समझना ज़रूर थोड़ा कठिन है। प्रेम को सीमाओं, शर्तों, बाध्यताओं और परिस्थितियों के अधीन नहीं बनायें। उसे परिभाषित भी नहीं करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो वह प्रेम नहीं रह जायेगा। तब तो कहते हैं, अन-कंडिशनल लव। प्रेम का अस्तित्व तमाम बाहरी फैक्ट्रों के बावजूद भी रहता है। अगर हम उसे नहीं समझेंगे तो खुशी और शांति को भी अपने जीवन से गंवा देंगे।

कोशिश करें पर कमतर न समझें
हम मनुष्य हैं और मनुष्य कभी परफेक्ट नहीं होते। मनुष्य हैं तो भूलें भी होंगी और गलती भी होंगी। आप अगर अपना बेस्ट वर्सन बनने की कोशिश कर रहे हैं तो सब ठीक है। कोशिश करने का महत्त्व ही सर्वाधिक है। परिणाम तो देर-सवेर मिल ही जायेंगे। लेकिन परिणामों की खोज में कभी खुद को नीचा न दिखायें या किसी से कमतर न समझें। ”लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती” महत्त्व कोशिश का है।

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