अपनी इच्छा शक्ति से कोई भी मतलब कोई भी संस्कार बदल सकते

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वो मम्मी-पापा पूरा जीवन उसको समझाते रहते हैं- नहीं हम तुमसे ज्य़ादा और किसी से प्यार नहीं करते। लेकिन वो गर्भ में उसके ऊपर जो रिकॉर्डिंग हो गई, मुझे ये नहीं मुझे वो चाहिए। कितनी जि़म्मेवारी बनती है हम सबकी!

तीत का जीवन जैसी कोई अवधारणा है ही नहीं। मैं आत्मा हूँ, ऊर्जा हूँ, मैंने ये शरीर लिया, कर्म किया। एक दिन ये शरीर खराब हो गया मैंने शरीर बदल लिया। ये तो हम अपनी भाषा में उसको अतीत का जीवन, पहले की जि़ंदगी कहते हैं लेकिन आत्मा के लिए ये कुछ नहीं है। जैसे ही आत्मा के जाने का समय आता है कोई न कोई परिस्थति आ जाती है। आत्मा चली जाती है अपने आप। सबकुछ पीछे छोड़कर जाती है। जिसके लिए हम सारा दिन मेहनत कर रहे हैं। एक क्षण आने वाला है, जिस दिन आत्मा शरीर छोड़ देेती है। सबकुछ मतलब पढ़ाई भी पीछे, फिर से नर्सरी में जाना पड़ता है। वापस फिर से इतनी मेहनत करके सीखना पड़ता है सारा कुछ लेकिन बच्चे के संस्कार शुरू हो जाते हैं पहले वाले। एक सेकंड में शरीर छूटता है और सारी पढ़ाई डिलीट। लेकिन संस्कार वैसे के वैसे होते हैं।
तो फिर इस जीवन में अगर हमें ये सच्चाई पता हो कि ये सबकुछ जो हमारे पास है बहुत महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह एक निश्चित समय के लिए है। उस तयशुदा समय के बाद जो मेरे साथ जाएगा, वो सिर्फ मेरे संस्कार हैं, बाकी सबकुछ पीछे छूट जाएगा। एक ही चीज़ है जो स्थाई है, बाकी सब अस्थाई… सब शॉर्ट टर्म के लिए है। अब एक चीज़ सोचिए, आज अगर सारा दिन आपने किसी के लिए गलत प्रतिक्रिया की, किसी के लिए गलत सोच लिया, किसी की निंदा की, किसी के बारे में दूसरे को भी सुना दिया। जब ये आत्मा शरीर छोड़ेगी, तो ज़रा चेक करिए कि क्या रह जाएगा और क्या साथ में जाएगा। जिनकी हमने निंदा की, वो भी पीछे रह जाएंगे। वो संस्कार जीवन की किसी भी उम्र में सक्रिय हो जाएंगे।
जब आत्मा गर्भ में है तो कितना ध्यान रखना चाहिए कि क्या रिकॉर्डिंग हो रही है। और हम अपना सामान्य जीवन जी रहे होते हैं और बच्चे के ऊपर रिकॉर्डिंग हो रही होती है। हम बैठकर बातें कर रहे होते हैं कि मुझे बेटी चाहिए, मुझे बेटा चाहिए। अंदर जो बैठा है वो सुन रहा है कि इनको मैं नहीं चाहिए। वो उस बच्चे के मन में रिकॉर्ड हो जाता है। जीवनभर वो महसूस करता रहता है कि लोग मुझसे प्यार नहीं करते। मेरे मम्मी-पापा मुझे नहीं चाहते। वो मम्मी-पापा पूरा जीवन उसको समझाते रहते हैं- नहीं हम तुमसे ज्य़ादा और किसी से प्यार नहीं करते। लेकिन वो गर्भ में उसके ऊपर जो रिकॉर्डिंग हो गई, मुझे ये नहीं मुझे वो चाहिए। कितनी जि़म्मेवारी बनती है हम सबकी!
दूसरा फोल्डर है- माता-पिता के संस्कार, परिवार के संस्कार। ये सब अच्छी तरह से चेक कर लेना, क्योंकि इसके बाद आप अपने आस-पास के लोगों को देखेंगे तो आपका मन कभी नहीं कहेगा ये ऐसे क्यों हैं। ये ऐसे कैसे हो सकते हैं, क्योंकि उनके सारे फोल्डर पता होने चाहिए। एक फोल्डर तो वो अतीत से लेकर आए हैं। दूसरा फोल्डर उनको उनके परिवार से मिला है। उसमें से भी बहुत सारे संस्कार जब वो गर्भ में थे, तब रिकॉर्ड हो गए।
तीसरा फोल्डर माहौल, वातावरण संग। फिर हम किस शहर में रह रहे थे, किस स्कूल में जा रहे थे, किस मोहल्ले में रह रहे थे, फिर कौन मेरे दोस्त थे। आजकल तो एक और माहौल है फोन, टीवी का संग है। वो भी तो संग है ना। संग का रंग लगता है। उससे भी संस्कार बनते हैं। मीडिया से बहुत सारे संस्कार बनते हैं। मीडिया से भाषा बनती है हमारी, जो हम सुन रहे हैं, पढ़ रहे हैं। संग का रंग तीसरा फोल्डर।
चौथा फोल्डर बहुत महत्त्वपूर्ण फोल्डर है। हम अपने अतीत से कोई भी संस्कार लाए हैं। परिवार से कोई भी संस्कर मिला हो। संग के रंग से आपका कोई भी संस्कार बना हो, क्या हम उस संस्कार को बदल सकते हैं? कई लोग कहते हैं मेरा डीएनए ही डिफेक्ट है, मैं पैदा ही ऐसे हुआ था। ये कहने से क्या होता है? हम सिर्फ कह रहे हैं मुझे बदलाव नहीं करना है बस।
सवाल है कि क्या हम कोई भी संस्कार बदल सकते हैं। जवाब है, हां। जो चौथा फोल्डर है, वो है विल पॉवर यानी इच्छा शक्ति का फोल्डर। मतलब इस तीन में से कोई भी संस्कार लाए हों, हम अपनी इच्छा शक्ति से कोई भी मतलब कोई भी संस्कार बदल सकते हैं। अपने भी और दूसरों के भी।

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