हम सभी जिस मार्ग पर हैं उसे अध्यात्म का मार्ग कहा जाता है और ये अध्यात्म का मार्ग बहुत आसान भी है और बहुत कठिन भी। इसलिए है क्योंकि जब अध्यात्म की गहरी समझ हमें मिल जाती है तो वो समझ मिलने के बाद हम सभी इस मार्ग को आसान बना सकते हैं। इसकी समझ किसी एक तपस्वी को मिली1936-37 में, जिनके आगे कोई भी ऐसा आदर्श नहीं था, कोई ऐसा मिसाल नहीं था और कोई भी इस बात को तुरंत स्वीकार करने वाला भी नहीं था, लेकिन वो अन्दर की गहरी समझ और दूसरा परमात्मा पर गहरा विश्वास। उन दोनों के बल पर उन्होंने इस मार्ग को चुना।
इसमें एक कहावत के रूप में इसको ऐसे समझ सकते हैं या समझाने के आधार से ही मैं बोल रहा हूँ कि जैसे सबकी परमात्मा के प्रति आस्था ज़रूर है लेकिन पूरी तरह से विश्वास नहीं है। ये लाइन सिर्फ लाइन नहीं है, इसको समझना बहुत ज़रूरी है। हम सभी बाबा को जानते हैं, समझते भी हैं, आस्था है ब्रह्माकुमारीज़ के लिए, शिव बाबा के लिए, इस ज्ञान के लिए लेकिन सम्पूर्ण विश्वास न होने के कारण हमको स्वीकार नहीं होता। इसका दूसरा पहलू ये भी है कि अगर स्वीकार होता तो मैं वो सारे कार्य करता जो अध्यात्म से जुड़े हुए हों।
उदाहरण के लिए सब लोग ज्योतिषी का भी सहारा ले रहे हैं, वास्तु का सहारा ले रहे हैं, और-और चीज़ों का सहारा ले रहे हैं।
जितने भी त्योहार आते हैं उनको उसी हिसाब से सेलिब्रेट करते हैं, मनाते हैं। और-और जो भी टोने-टोटके, सोमवार, मंगलवार, बुधवार दिन सब चीज़ें वही करते जा रहे हैं जो भक्ति में, और-और चीज़ों में करते आये। माना मान्यताओं को तोडऩे की हिम्मत नहीं है, ताकत नहीं है। अंधविश्वास को तोडऩे की हिम्मत और ताकत नहीं है, सिर्फ आस्था है। पूरी तरह से विश्वास अगर होता परमात्मा पर तो हर दिन हमारा शुभ होता। ये नहीं कि सिर्फ एक दिन शुभ है। हर दिन हमारे लिए शुभ है। हर दिन हमारे लिए एक नया जीवन है। इसी तरह से परमात्मा के प्रति हम सबकी श्रद्धा आवश्यक है और वो है भी सत्य, लेकिन पूरी तरह से समर्पण नहीं है। तो जब तक श्रद्धा है, श्रद्धा माना कैज़ुअल एप्रोच, कैज़ुअल एप्रोच का मतलब मान लिया कि थोड़ी-सी श्रद्धा है, लेकिन समर्पण का मतलब होता है पूरी तरह से हम उसको अपने आपको नहीं दे पाते उसका रिज़न क्या है कि हम पूरी तरह से उसको नहीं मानते।
तो मात्र एक ब्रह्मा बाबा जिनको मैंने शुरू में आपके सामने उदाहरण के रूप में रखा। उनके अन्दर ये चारों चीज़ें थी- आस्था भी थी, सम्पूर्ण विश्वास भी था, श्रद्धा भी थी और समर्पण भी था। इसके आधार से बाबा पूरी तरह से उन कार्यों को करने में तत्पर रहे और अपने तपस्वी जीवन को पूरी तरह से सबके सामने रखा भी। सिर्फ एक आधार आस्था ही नहीं, विश्वास भी। श्रद्धा ही नहीं, समर्पण भी। तो श्रद्धा, समर्पण और विश्वास ये चीज़ें ऐसी हैं जो हमको परमात्मा के साथ जोडऩे में मदद करती है। और इससे हमारी सम्पूर्णता भी ज़ाहिर होती है। आगे आती है और हम आगे भी बढ़ते हैं उससे। इसका दूसरा उदाहरण आप ऐसे भी ले सकते हैं कि बाबा ने जब पालना की और जब वो तपस्या कर रहे थे तो बहुत सारी दादियां उनके साथ थीं। बहुत सारे बाबा के बच्चे उनके साथ थे लेकिन बाबा ने सबकी पालना भी वैसी की। इतना ज्ञान को भरा शरीर को भूलने के लिए कहा, शरीर से सम्बन्धित जितनी भी चीज़ें हम करते हैं उन सबको बाबा ने अनर्गल और बेकार कहा। इतना ज्य़ादा भरा और यही तपस्या है। तपस्या का मतलब है जो हमारा नहीं है हमने जिसको लिया है लोन पर उसको भूलना है, सबसे बड़ी तपस्या यही है। और आज हम उसी के लिए दिन-रात सोच रहे हैं। चाहे रहने का हो, खाने का हो, सोने का हो, उसी के प्रति बहाना है। उसी का बहाना लेकर कार्य न करने का बहाना है। तो ये सारी चीज़ें हमारी तपस्या में बाधा है।
तो हमारे एक तपस्वी, सिर्फ एक तपस्वी इस धरती का, जो इतना ज्य़ादा शक्तिशाली थे, जिन्होंने इन दोनों को पूरी तरह से अपने अन्दर धारण किया और बोला शरीर हमारा एक वस्त्र है, शरीर नश्वर है, शरीर का भान देह अभिमान को तोडऩा ही हमारा परमात्मा से कम्पलीट मिलने का आधार है। बाकी जितने भी कर्मकांड हैं, रिचुअल्स(रिवाज़) हैं, जो भी हम करते हैं ये थोड़ी देर के लिए हैं। तो ऐसे तपस्वी ब्रह्मा बाबा को समझने के चार आयाम हैं श्रद्धा, समर्पण, आस्था और विश्वास। इन चारों कसौटी पर हम सबको खुद को परख कर देखना है कि क्या हम ऐसे हैं? अगर ऐसे हैं तो पूरी तरह से फॉलो करके दिखाएं और अगर नहीं हैं तो हम भी लोगों के प्रति ये भी कर रहे हैं, वो भी कर रहे हैं। इससे सम्पूर्णता थोड़ी हमसे अभी दूर ही रहने वाली है। तो अगर फिर से हम उसके नज़दीक जाना चाहते हैं तो उसको नज़दीक ले आने के लिए ये कार्य करना है।