‘ऑल इज़ वेल’ बोलना अपने मन को ठीक करने की दिशा में पहला कदम

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लोग विशेषताएं बताते नहीं हैं, कमज़ोरियां पहले सुना देते हैं। जब तक हम उनको उनकी विशेषताएं नहीं बताएंगे, उनमें विश्वास और एनर्जी को पैदा नहीं करेंगे, तब तक वो अपनी कमज़ोरी को ठीक नहीं कर सकेंगे

अगर हमें अपने जीवन में बदलाव लाना है, तो कहने के तरीके पर गौर करना होगा। अगर डर को सामान्य मानकर चलेंगे तो उसे दूर करने का पुरूषार्थ भी नहीं करेंगे। कभी किसी को न कहें कि डर सामान्य है। डर असल में भावनात्मक कमज़ोरी है। हम कमज़ोरी को भी सामान्य बोलने लगे हैं। बातें कहने का यह तरीका वाकई फर्क पैदा करता है।
आपके जीवन में अगर उथल-पुथल चल रही हो, तब भी परमात्मा का शुिक्रया अदा करें। आप अपने दिल से सिर्फ शुक्रिया शब्द उत्पन्न कीजिए। दिल से ग्रेटीट्यूड(कृतज्ञता) का भाव उत्पन्न कीजिए। यह बहुत ही हाई एनर्जी वाला शब्द है। अगर हम सिर्फ शिकायत करते रहेंगे तो हमारी बैटरी डाउन होती जाएगी। एक फिल्म में संवाद था ‘ऑल इज़ वेल’। अगर सबकुछ गड़बड़ हो तो भी दिल पर हाथ रखकर बोलो ‘ऑल इज़ वेल’। मतलब सबकुछ अच्छा हो जाएगा। इसका गहराई से अर्थ समझना होगा। बाहरी परिस्थितियां भले अनुकूल न हों, कोई बात नहीं, लेकिन पहले अपने मन को तो ठीक कर लो। ‘ऑल इज़ वेल’ बोलना अपने मन को ठीक करने की दिशा में पहला कदम है। जब अपनी मन:स्थिति ठीक होती है तो कठिन परिस्थिति से निकलना आसान हो जाता है।
किसी की निंदा करना सामान्य बात नहीं है। लोगों की सराहना करना, उन्हें प्रेरित करना ही अच्छा आचरण है। कभी किसी बच्चे से ऐसा नहीं कहें कि यह चीज़ आपके अंदर ठीक नहीं है, यह गलत है। आप उसको पहले अच्छाइयों के बारे में बताओ। लोग विशेषताएं बताते नहीं हैं, कमज़ोरियां पहले सुना देते हैं। जब तक हम उनको उनकी विशेषताएं नहीं बताएंगे, उनमें विश्वास और एनर्जी को पैदा नहीं करेंगे, तब तक वो अपनी कमज़ोरी को ठीक नहीं कर सकेंगे। उनके पास शक्ति नहीं आएगी। हम एक लाइन में तारीफ करके बात खत्म कर देते हैं, लेकिन गलती भर-भरके सुनाते हैं। जब आप किसी को उसके गुण या उसकी अच्छाइयों के बारे में बता रहे होते हैं, तो आप सामने वाले व्यक्ति में उच्च ऊर्जा का संचार करते हैं। आप खुद में भी वही ऊर्जा का उच्च स्तर पैदा करते हैं। इस प्रक्रिया में आपने उनकी बैटरी को चार्ज कर दिया और जाने अनजाने आपकी बैटरी भी चार्ज हो गई। फिर आपने कहा, ये एक बात भी ठीक कर लो। अब उसके पास उस एक चीज़ में सुधार करने की ताकत आ गई। लेकिन अगर हमने कहा, ‘ हाँ-हाँ आप बाकी सारे विषय में बहुत अच्छे हो लेकिन इस विषय में ये समस्या है, यह गलत है, आपने ऐसा क्यों किया, तुम ऐसे हो…’ फिर क्या होता है? यह सुनकर उनकी बैटरी डाउन हो जाती है। यहाँ कहने-कहने का फर्क है।
ऐसा नहीं है कि बच्चे को उसकी सिर्फ अच्छाइयां ही गिनानी हैं, लेकिन जब वो अपनी अच्छाइयों पर ध्यान देता है, तो खुद में सकारात्मक बदलाव लाना उसके लिए मुश्किल नहीं होता। लेकिन हम उनकी कमज़ोरियों पर ज्य़ादा ज़ोर देने लगते हैं। माता-पिता, टीचर्स सबके इरादे अच्छे हैं। लेकिन हमारे गलत तरीके से कहने से उसकी शक्ति घट जाती है।
अपने कहने के तरीकों की सूची बनाते जाएं। किसी की सराहना करना इमोश्नल हेल्थ है, आलोचना करना इमोश्नल इलनेस। उम्मीद करना इमोशनल इलनेस है। स्वीकार करना इमोशनल हेल्थ है। दूसरों को दु:ख पहुंचाना इमोशनल इलनेस है और प्रशंसा करना इमोशनल हेल्थ है। रोज़ रात को सोने से पहले क्षमा ज़रूर करें। सारे दिन में अगर किसी ने भी कुछ ऐसा व्यवहार किया हो जो हमें पसंद नहीं आया हो। तब भी हमें रात को सोने से पहले उन्हें क्षमा करना है। अगर रात को कर दिया तो हमारे मन में कोई बात रहेगी ही नहीं। क्योंकि जब हम सोते हैं तब हमारे अवचेतन में दिमाग खुलता है। और सारे दिन की बातचीत अंदर चली जाती है। कई चीज़ें हमारे जीवन में हैं, हम कहते हैं कि भुलाए नहीं भूलती। न ही उन्हें माफ कर पा रहे हैं, न भूल पा रहे हैं। क्यों नहीं भूल रहे, क्योंकि हमने उस रात सोने से पहले उनको माफ नहीं किया था। जब हम सोए तो वो हमारे अवचेतन में चला गया। इसीलिए लोग कहते हैं जो भी झगड़े हों रात को सोने से पहले सुलझा लेने चाहिए। क्षमा करना सीखिए। यह आपकी अंदरूनी सेहत के लिए वाकई ज़रूरी है।

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