सत् धर्म की स्थापना करने ‘मैं’ इस धरा पर आता हूँ…

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शिव पुराण, रामायण, महाभारत, यजुर्वेद, मनुस्मृति व श्रीमद्भगवद्गीता से लेकर कहीं न कहीं परमात्मा के अवतरण की बात की गई है। किसी भी धर्म ग्रंथ में परमात्मा के जन्म लेने की बात नहीं है। हर जगह प्रकट होने, अवतरण व परकाया प्रवेश की बात को ही इंगित किया गया है। क्योंकि परमात्मा का अपना कोई शरीर नहीं होता है। वो परकाया प्रवेश कर नई सृष्टि की रचना का दिव्य कत्र्तव्य कराते हैं। यहां तक कि शिव पुराण में तो स्पष्ट लिखा है कि मैं ब्रह्मा के ललाट से प्रकट होऊंगा।

काल चक्र की अंतिम वेला, घोर कलियुग के अंतिम चरण में जब अधर्म, पापकर्म, भ्रष्टाचार अपनी सारी सीमाएं लांघ चुके। विज्ञान ने विनाश की पूरी तैयारी कर ली। प्रकृति अपनी पूर्वावस्था पाने को लालायित। सम्बन्ध तार-तार हो रहे। तनाव-अवसाद ने हर मानव के मन-मस्तिष्क में अपना डेरा डाल लिया। धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट मनुष्य सच को न सुनना, न समझना और न उसपर चलना चाह रहा। बारूद पर लेटी धरती नव जीवन पाने की चाह में अंतिम श्वास की सिसकियां ले रही। इस दयनीय अवस्था से बाहर निकालना संसार के किसी भी बड़े से बड़े विद्वान, ज्ञानी, महापुरुष, साधक के वश की बात नहीं। ऐसे समय पर सिर्फ और सिर्फ एक सहारा परमात्मा ही सबको नज़र आ रहा, जो इन विनाशकारी, दु:खदायी अवस्था से हर मानव और प्रकृति को निकाल एक सुखदायी, आनंदमयी और सतोप्रधान अवस्था प्रदान कर सकते हैं। ये महापरिवर्तन केवल ईश्वरीय शक्ति ही कर सकती है। इसलिए आज स्वयं सृष्टि के रचयिता निराकार शिव परमात्मा की इस धरा पर अत्यंत आवश्यकता है।

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