सभी शास्त्र और पुराणों ने भी माना परमात्मा का अवतरण

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शिव पुराण में कोटि रूद्र संहिता के 42वें अध्याय में लिखा है कि क्रमैं ब्रह्मा के ललाट से प्रकट होऊंगा।ञ्ज समस्त संसार को दु:खों से मुक्तकरने और नव युग की आधारशिला रखने के लिए परमात्मा शिव ब्रह्मा जी के ललाट से प्रकट हुए और उनका नाम रूद्र हुआ। यहां ललाट से तात्पर्य ज्ञान से है। परमपिता शिव परमात्मा को ज्ञान का सागर कहा जाता है। परमात्मा ज्ञान के सागर हैं तो हम आत्मायें उनकी संतान ज्ञान स्वरूप हैं। ज्ञान को शक्ति भी कहा जाता है। इसलिए दुनिया में ज्ञानी, महापुरुषों की महिमा और गायन है। जब परमात्मा ब्रह्मा जी के तन का आधार लेकर सच्चा गीता ज्ञान देते हैं।

गीता में भगवान के महावाक्य हैं, मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है। मैं सूर्य, चांद, तारागण के भी पार परमधाम का वासी हूँ। परमात्मा कहते हैं कि मैं प्रकृति को वश करके इस लोक में सत् धर्म की स्थापना करने और प्राय: लुप्त हुआ ज्ञान सुनाने आता हूँ। वत्स, तू अपने मन को मेरे में लगा। तो मैं तुझे सब पापों से मुक्त करूंगा। मैं तुम्हें परमधाम ले चलूंगा। अब सवाल उठता है कि यह लुप्त हुआ ज्ञान क्या है? यदि वर्तमान में दिया जा रहा ज्ञान सही है तो फिर परमात्मा को इस धरा पर क्यों आना पड़ता है? आखिर इस सृष्टि में सत्य ज्ञान क्यों और कैसे लुप्त हो जाता है? सत्य ज्ञान से मनुष्य दूर क्यों हो जाता है? इन सवालों के जवाब स्वयं परमात्मा परमशिक्षक बन हमें देते हैं।
परमात्मा कहते, वत्स! तू मन को मुझमें लगा। यदि भक्ति से भगवान मिलते तो फिर परमात्मा को यह बात क्यों कहनी पड़ती कि वत्स! तू अपने मन को मुझमें लगा! जैसे एक दिन में कोई विशाल पेड़ तैयार नहीं हो जाता, उसी तरह आत्मा पर जन्मों से चढ़ी विकारों, पापों की परत एक दिन में दूर नहीं होती है। इसके लिए हमें नियमित, निरंतर, परमात्मा का ध्यान करना पड़ता है। कर्म में ही योग को शामिल कर कर्मयोगी, राजयोगी जीवनशैली को अपनाना होता है। जब हम मन को एकाग्र कर खुद को आत्मा समझकर निरंतर परमात्मा को याद करते हैं तो उनकी शक्तियों से आत्मा पर लगी विकारों, पाप कर्मों की मैल धुल जाती है। धीरे-धीरे एक समय बाद आत्मा परमात्मा की शक्ति से सम्पूर्ण पावन, पवित्र और सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर लेती है। और मनुष्य की इस अवस्था को ही हम देवी-देवता कहते हैं।
रामायण में लिखा है कि – बिनु पद चलइ, सुनइ बिनु काना। कर बिनु कर्म करइ विधि नाना।। आनन रहित सकल रस भोगि। बिनु बाणि वक्ता बड़ जोगि(शिव के लिए)।।
वह निराकार परमात्मा (ब्रह्मलोक निवासी) बिना पैर के चलता है, बिना कान के सुनता है, बिना हाथ के नाना प्रकार के कर्म करता है, फिर भी हज़ारों भुजाओं वाला है। बिना मुंह के सारे(छाहों) रसों का आनंद लेता है। और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है। वही हमारा परमात्मा राम है।

  • मनुस्मृति में भी यही लिखा है कि सृष्टि के आरंभ में एक अण्ड प्रकट हुआ, जो हज़ारों सूर्य के समान तेजस्वी और प्रकाशवान था।
  • महाभारत में लिखा है कि सबसे पहले जब यह सृष्टि तमोगुण और अंधकार से आच्छादित थी तब एक अण्डाकार ज्योति प्रकट हुई और वह ज्योतिर्लिंग ही नये युग की स्थापना के निमित्त बना। उसने कुछ शब्द कहे और प्रजापिता ब्रह्मा को अलौकिक रीति से जन्म दिया। सभी वेद और शास्त्रों में कहीं न कहीं परमात्मा के अवतरण की बात कही गई है।

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