परमात्मा को पाने का सही माध्यम है क्या… !!!

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आत्मा और परमात्मा का मिलन, उससे कनेक्शन दिल से होता है, न कि शब्दों से। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि आज तक हम कितने श्लोक, कितनी आरतीयां गाते आये लेकिन कभी उसके दर्शन नहीं कर पाये, उसको कभी पा नहीं सके। पूरा जीवन हमने निकाल दिया लेकिन फिर भी उसके एक दर्शन की प्यासी आँखें उसको ढूंढती रहीं। लेकिन अब हम इस लेख के माध्यम से कहें या इस कहानी के माध्यम से हम समझेंगे कि परमात्मा को पाने का सही माध्यम है क्या!

एक बार की बात याद आती है, एक ग्वाल बाल था गऊ चराने वाला। और जब वो गायों को लेकर जाता था तो रास्ते में एक खुला मैदान आता था और वहाँ छोड़ देता था। जहाँ सभी गायें घास खाती थी और वो शांति से एक झाड़ के नीचे बैठ जाता था। जंगल में वो अकेला होता था। वो शांति से बैठकर मन ही मन भगवान से बातें करता रहता था। भगवान से कहता था कि हे प्रभु तू भी अकेला है और मैं भी यहाँ अकेला हूँ। थोड़ी देर के लिए तुम आ जाओ, यहाँ बैठेंगे और बातें करेंगे। ऐसे कभी क्या बात करता, कभी क्या बात करता।
एक दिन जब वो जंगल में गायों को घास चरने के लिए छोडऩे के बाद रोज़ की तरह शांति से झाड़ के नीचे बैठा तो उसके मन में विचार आया कि जैसे मैंने गायों को छोड़ दिया वैसे ईश्वर ने भी हमें इस संसार में छोड़ दिया है। हर कोई अपना-अपना कर्म कर रहा है। अब वो भी मेरी तरह कहीं अकेला ही बैठा होगा। तो मन ही मन भगवान से बात करता है कि हे प्रभु तू भी अकेला है, मैं भी अकेला हूँ। मुझे तो पता नहीं तू कहाँ है लेकिन तूझे तो पता है ना है कि मैं यहाँ हूँ। थोड़ी देर आ जाओ बात करेंगे, गपशप करेंगे। टाइम पास करेंगे, अकेला-अकेला बड़बड़ा रहा था। इतने में वहाँ से एक पंडित जी गुज़र रहे थे। पंडित जी ने देखा कि ये लड़का अकेला-अकेला बड़बड़ा रहा है। पूछा कि हे लड़के किससे बात कर रहा है? उसने कहा किसी से नहीं। पंडित जी बोले अरे तू बड़बड़ा रहा है, किससे बात कर रहा है? तो उसने कहा कि बस, भगवान से बातें कर रहा था।
पंडित जी को बड़ी जिज्ञासा हुई कि अच्छा भगवान से बात कर रहा था! क्या बातें कर रहा था? हम भी सुनें। लड़के ने अपने मनोभाव व्यक्त कर दिए कि बस उसको कह रहा था कि बस थोड़ी देर के लिए तुम आ जाओ, बैठेंगे बातें करेंगे। पंडित जी को बड़ा गुस्सा आया और कहा कि तू जानता भी है कि ईश्वर कौन है? वो कितनी ऊंची हस्ती है। वो क्या गपशप करने के लिए है! टाइम पास करने के लिए है! ये कोई सभ्यता है भगवान को याद करने की? लड़के ने हाथ जोड़कर कहा कि मुझे तो और कुछ नहीं आता, मैं तो हर रोज़ ऐसे ही बातें करता हूँ। कहा, गलत बात ऐसा नहीं करने का। बड़ा फील हुआ उसको और बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा कि पंडित जी क्या आप मुझे सीखा सकते हो? क्योंकि मैं रोज़ जंगल में अकेला होता हूँ। मेरा टाइम पास नहीं होता। आप मुझे सिखाइये, तो उस अनुसार मैं याद करूंगा।
पंडित जी ने कहा बैठो सिखाता हूँ। और उसको एक संस्कृत का श्लोक पक्का कराना शुरू कर दिया। अनपढ़ बालक उसको संस्कृत क्या मालूम! उसको एक-एक शब्द रटाते गये रटाते गये, दो घंटे लगे श्लोक रटाने में। सारा श्लोक रटने के बाद पंडित जी ने कहा रोज़ ऐसे ही याद करना अभी। तो कहा कि जी रोज़ ऐसे ही याद करूंगा।

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